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ताकि चाय बागान में हाथी भी सुरक्षित महसूस कर सकें

Published - Wed 12, Jun 2019

मैं हाथियों के लिए एक स्पेस बनाना चाहती हूं। हर साल हम जंगल का दायरा बढ़ाते रहेंगे।

नई दिल्ली। मेरे चाय बागान नक्सलबाड़ी टी एस्टेट को ‘एलीफैंट फ्रेंडली’ पुरस्कार मिला है। यह पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में नक्सलबाड़ी गांव के पास 1,200 एकड़ में फैला हुआ है। यह बागान हर तरह से जानवरों और पेड़-पौधों के प्रति संवेदनशीलता और प्रेम का संदेश देता है। मैं जलपाईगुड़ी की रहने वाली हूं। प्रकृति के प्रति समर्पण और यहां के लोगों के लिए प्रेम का भाव मुझे विरासत में मिला। मेरी पढ़ाई-लिखाई विदेश में हुई, जहां करियर के बेहतरीन मौके उपलब्ध थे। पर मेरे मन में जमीन और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की इच्छा पल रही थी। इसलिए मैंने यहां आकर चाय की खेती करने का फैसला किया।
असम से लेकर बंगाल तक मेरे परिवार ने चाय के दर्जनों बागान लगाए। पर बदलते वक्त के साथ अधिकतर को बेचना पड़ा। उस समय हम कोलकाता में रहते थे। साल 1980 के आस-पास जब मेरे परिवार ने फैसला किया कि आखिरी चाय बागान नक्सलबाड़ी को भी बेच दिया जाए, तो मां ने आगे बढ़कर बागान को चलाने की जिम्मेदारी ली। उस समय उन्हें इस व्यवसाय का कोई अनुभव नहीं था। पर किसी भी व्यावसायिक लाभ से ज्यादा उन्हें यहां के पेड़-पौधों, जानवरों और कर्मचारियों के साथ उन मजदूरों की चिंता थी, जिनकी रोजी-रोटी इस बागान पर निर्भर थी। उन्होंने इस बागान में जान डाल दी और दार्जिलिंग के तराई क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ चाय बागानों की कतार में लाकर खड़ा किया। जब मैंने ‘ऑर्गेनिक खेती’ का कोर्स करके जैविक चाय उगाने की इच्छा व्यक्त की, तो उन्होंने बागान का लगभग 12 एकड़ हिस्सा मुझे दे दिया। हालांकि उनके सलाहकारों और कुछ रिश्तेदारों ने ऐसा करने से मना किया और कहा कि जैविक खेती में कोई लाभ नहीं है। इससे बागान को चलाने में दिक्कत आएगी। पहले दो साल मेरे लिए बहुत मुश्किल भरे रहे। बाद में मेरी ऑर्गेनिक चाय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने लगी। लगभग 4, 000 लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है। नक्सलबाड़ी बागान के पूर्वी और पश्चिमी दिशा में जंगल हैं और यह नेपाल बॉर्डर को भी छूता है। यहां हाथियों से किसानों को काफी परेशानी होती है। हाथी मौसम के हिसाब एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं। पिछले कुछ सालों में जंगलों से हाथियों का पलायन बढ़ गया है। नक्सलबाड़ी चाय बगान के पास जो खेत हैं, वहां किसान हाथियों को मारकर भगाते हैं, क्योंकि भोजन की तलाश में निकले ये हाथी उनकी फसल बर्बाद कर देते हैं। यह देखकर मैंने हाथी-साथी प्रोग्राम की शुरुआत की। मैंने अपने कर्मचारियों, चौकीदारों को जागरूक किया, फिर वन विभाग के अधिकारियों से बात करके उन्हें भी इसमें शामिल किया। अब हाथियों का निकलना शुरू होते ही गांवों में खबर फैल जाती है कि किस दिशा से इस बार हाथी आएंगे। वहां पर चौकीदार लगभग 400 गज की दूरी तक एक कॉरिडोर बनाते हैं, ताकि हाथियों के समूह को कोई परेशान न करे। अब मैं हाथियों के लिए एक स्पेस बनाना चाहती हूं। अपने बागान की सीमाओं पर तो मैंने वही घास उगाना शुरू किया है, जो हाथियों को पसंद है। इसके अलावा, बागान में लगभग 100 एकड़ में उनके लिए एक जंगल भी तैयार करना है। इसकी शुरुआत ढाई एकड़ से की गई है। हर साल हम जंगल का क्षेत्र बढ़ाते रहेंगे। मेरे इस अभियान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई, साथ ही, ‘एलीफैंट फ्रेंडली’ सर्टिफिकेट भी मिला। मेरा मानना है कि धरती अनमोल है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण के कारण मानव के साथ अन्य जीवों को अस्तित्व संकट में है। इसके लिए हमें हमें ही उपाय करने होंगे।
-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।