मुंबई की रहने वाली देवांगी दलाल दिव्यांग बच्चों की मदद करती हैं। वह कम सुन सकने वाले बच्चों को डिवाइस उपलब्ध कराती हैं। वह इस संबंध में लोगों को जागरूक भी करती हैं।
नई दिल्ली। पेशे से ‘ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट देवांगी दलाल मुंबई की रहने वाली हैं। उनकी मानें तो बचपन से डॉक्टर बनने का सपना पाले हुए मैंने मेडिकल की उच्च शिक्षा हासिल की और स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने लगी। मैं ऐसे लोगों का इलाज करती हूं, जो कि सुन नहीं सकते हैं। अपनी पढ़ाई के दौरान मुझे यह समझ आया कि कुछ दिव्यांग में सुनने की थोड़ी क्षमता होती है। यदि उन्हें सही समय पर सही तकनीक की मदद मिल जाए, तो वे न सिर्फ सुन सकेंगे बल्कि बोलेंगे भी। वर्ष 2004 के आसपास मैं एक अंतराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में गई। वहां एक बातचीत में मुझसे पूछा गया कि भारत में ऐसे कितने नवजात शिशुओं की जांच की जाती है, जिनमें जन्म से ही जो बीमारी या कमियां हैं, उनका पता चल सके? मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। मैंने वापस लौटकर, इस बारे में डॉक्टरों से बात की लेकिन, पता चला कि ऐसा कर पाना मुश्किल है। इसके बाद मैंने इस दिशा में काम करने और दिव्यांगों तक मदद पहुंचाने के उद्देश्य से जोश फाउंडेशन की शुरुआत की।
कॉन्फ्रेंस में आया विचार
कॉन्फ्रेंस से लौटकर जब मैंने अपने एक साथी डॉक्टर से बात की, तो उन्होंने मुझसे कहा कि इस क्षेत्र में जागरूकता लाने और ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए, हमें कुछ शुरुआत करनी चाहिए। काफी विचार-विमर्श के बाद, हमने मिलकर फाउंडेशन की शुरुआत की। इसके माध्यम से हम नवजात शिशुओं के चेकअप के साथ जरूरतमंद लोगों को सही तकनीक प्रदान कर रहे हैं।
शुरुआत यों हुई
इसकी शुरुआत मैंने बेहद कम फंड के साथ की। मैंने दिव्यांग बच्चों वाले स्कूलों से संपर्क किया। हमने ऐसे बच्चे जो बोल, सुन नहीं सकते थे, उन्हें उनकी जरूरत के हिसाब से मुफ्त में ‘डिजिटल हियरिंग एड (सुनने वाली मशीन)’ प्रदान करना शुरू किया। इस अभियान के तहत मुंबई के तकरीबन 12 विशेष व सामान्य स्कूलों के बच्चों को यह डिवाइस दी। इससे उनकी सुनने की क्षमता विकसित होती है।
सामान्य जीवन जी रहे
कई बार लोग मुझसे पूछते थे कि मैं इतनी महंगी डिवाइस क्यों दे रही हूं। पर हमारा मानना था कि जरूरत के हिसाब से, उपयोग की जाने वाली सही डिजिटल तकनीक ज्यादा कारगर होगी। इसी तरह अगर हम कम उम्र में ही बच्चों की सुनने की क्षमता पर ध्यान दें और उनकी सही जांच कराकर, उन्हें मदद दें, तो बहुत से बच्चे सामान्य जीवन जी सकेंगे।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.