देवयानी लोगों को अपने घरों में लंबे समय से बेकार पड़े सामानों को दान करने के लिए प्रेरित करती हैं। फिर चैरिटी से मिले इन कपड़ों और अन्य घरेलू सामानों को अपने रीस्टोर पर बहुत ही कम कीमत पर बेचकर गरीब बच्चों की फीस भर देती हैं।
नई दिल्ली। किसी की मदद का जज्बा अगर आप में हो तो आप कोई न कोई रास्ता तलाश ही लेते हैं। गरीब बच्चों की मदद के लिए कुछ ऐसा ही पिछले पांच से कर रही हैं बेंगलुरू में रहने वालीं देवयानी त्रिवेदी। देवयानी लोगों को अपने घरों में लंबे समय से बेकार पड़े सामानों को दान करने के लिए प्रेरित करती हैं। फिर चैरिटी से मिले इन कपड़ों और अन्य घरेलू सामानों को अपने रीस्टोर पर बहुत ही कम कीमत पर बेचकर गरीब बच्चों की फीस भर देती हैं। उनकी इस पहल से जहां गरीब बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं हो रही है। वहीं, गरीब जरूरतमंदों को कम कीमत पर रोजाना इस्तेमाल के लिए अच्छा सामान भी मिल जा रहा है।
पांच साल पहले ऐसे शुरू हुआ सफर
देवयानी त्रिवेदी पांच साल पहले जब बेंगलुरू शिफ्ट हुईं तो उन्होंने देखा कि शहर की हाईराइज बिल्डिंगों के पीछे जगह-जगह झोपड़-पट्टी बसी हैं। यहां रहने वालों का जीवन स्तर बहुत ही दयनीय है। बच्चों के पास पढ़ाई के सीमित संसाधन हैं। वह चाह कर भी अच्छे स्कूलों में नहीं पढ़ पा रहे हैं। उनके अभिभावकों के पास भी रोजाना इस्तेमाल के लिए कपड़े समेत अन्य जरूरी सामानों का अभाव है। वहीं, दूसरी तरफ हाईराइज बिल्डिंगों में रहने वाले लोगों के स्टोर रूम पुराने और लंबे समय से इस्तेमाल न होने वाले सामानों से भरे पड़े हैं। यहीं से देवयानी को आइडिया मिला और उन्होंने लोगों से कपड़े समेत अन्य सामान जिनका उनके पास उपयोग नहीं है, उसे दान करने के लिए प्रेरित करने का फैसला किया। देवयानी बेंगलुरू की वाइटफील्ड सोसायटी में रहती हैं। इसी सोसायटी के पीछे विजय नगर नाम का एक छोटा सा गांव है। यहां के लोगों की माली हालत काफी खराब है। गांव की महिलाएं और पुरुष उनकी सोसायटी में काम करने आते थे। इस कारण देवयानी उनकी बदहाली को करीब से समझ पाईं। उन्होंने अपनी मुहिम को शुरू करने के लिए सबसे पहले विजय नगर को ही चुना और गरीब बच्चों की मदद के लिए लोगों को जागरूक करने में जुट गईं। उन्होंने वाइटफील्ड राइजिंग नाम का एक सोशल ग्रुप बनाया। इसमें अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों को शामिल किया। इसी ग्रुप की मदद से देवयानी ने एक क्लॉथ डोनेशन ड्राइव आयोजित किया।
किसी को हिचक या शर्म महसूस न हो इसलिए खोला री-स्टोर
देवयानी बताती हैं उन्होंने ग्रुप में ऐसे लोगों को जोड़ा जिन्होंने उन्हें कपड़े डोनेट किए। कुछ दिनों की कोशिश के बाद बड़ी संख्या में कपड़े इकट्ठे हो गए, लेकिन अब समस्या यह थी कि इन्हें जरुरतमंदों तक कैसे पहुंचाया जाए। देवयानी के मुताबिक वह यह नहीं चाहती थीं कि कपड़े लेने के लिए किसी को कतार में खड़ा होना पड़े या किसी को कपड़े लेने में हिचक और शर्म महसूस हो। लोगों के दिमाग में यह बात भी न आए कि ये कपड़े पहले किसी के इस्तेमाल किए हुए हैं। ये सब सोचने के बाद देवयानी ने चैरिटी में मिले कपड़ों में से उन्हें छांटकर अलग किया, जो नए थे या नए जैसे दिखते थे। फिर एक छोटी सी दुकान देखकर उसमें री-स्टोर खोल दिया।
स्टोर में कपड़े से लेकर फर्नीचर और किताबें तक मौजूद
री-स्टोर में डोनेशन के सभी सामानों को अलग-अलग कैटेगरी में रखा गया है। इनका मूल्य भी तय किया गया है। स्टोर से कोई भी 5 से लेकर 500 रुपये तक की चीजें खरीद सकता है। स्टोर में बच्चों से लेकर बड़ों तक के कपड़ों के अलावा स्टेशनरी, बच्चों के लिए गेम्स, किताबें, बर्तन और फर्नीचर भी मौजूद हैं। स्टोर से महिलाएं 30 से 40 रुपये में कुर्ती ले सकती हैं। जींस महज 80 से 100 रुपये में मिल जाती है। बच्चों के खिलौने यहां बड़ी संख्या में हैं। इस वजह से यह स्टोर बच्चों में काफी लोकप्रिय है। सामान के एवज में रुपये लेने के पीछे की मंशा भी देवयानी बताती हैं। उनका कहना है कि रुपये देने से एक तो गरीबों में हिचक और हीन भावना नहीं आती। वहीं, इन पैसों से गरीब बच्चों की फीस का इंतजाम भी आसानी से हो जाता है।
दान के सामान लेते समय इन बातों का रखती हैं ध्यान
देवयानी के मुताबिक उनका यह री-स्टोर कोई डंपिंग स्टोर नहीं है। किसी को अगर यह लगता है कि डोनेशन के नाम पर वह अपने फटे-पुराने कपड़े भी यहां पर दे जाएगा तो यह बिल्कुल गलत है। री-स्टोर में सिर्फ वही चीजें ली जाती हैं जो बिल्कुल सही और इस्तेमाल करने लायक हों। कई बार ऐसे मामले भी सामने आए जब लोग फटे-पुराने कपड़े स्टोर में देकर चले गए। देवयानी ने जब इन्हें चेक किया जो उन्हें काफी बुरा लगा। उन्होंने तुरंत ही उन कपड़ों को उस शख्स के घर वापस भेज दिया, जो उसे स्टोर पर छोड़ गया था।
बच्चियों का प्राइवेट स्कूल में कराया दाखिला, महिलाओं को दे रहीं रोजगार
स्टोर से बिकने वाले सामानों से जो कमाई होती है, उससे दुकान का किराया और यहां काम करने वाले कर्मचारियों का वेतन तो निकल ही जाता है। साथ ही जिस मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी यानि गरीब बच्चों की मदद वह भी हो जाती है। पांच सालों में देवयानी का परिचय गांव और बस्ती के बहुत से लोगों से हो गया है। किसी गांव वाले को किसी तरह की परेशानी होने पर वह उसकी मदद भी करती हैं। साथ ही घर पर ही रहने वाली महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई का काम कर देकर उन्हें रोजगार भी मुहैया करा रही हैं। स्टोर से होने वाली कमाई की बदौलत देवयानी ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाली तीन लड़कियों का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में कराया है। ये बच्चियां पढ़ने में काफी होशियार हैं। इनकी फीस का खर्च देवयानी इसी स्टोर की कमाई और कुछ अपने पास से देती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.