Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

मनोविज्ञान से सुधार रहीं अपराधियों की प्रवृत्ति

Published - Thu 19, Mar 2020

डॉ. बीना चिंतलपुरी मनोविज्ञान के जरिए अपराधियों की प्रवृत्ति सुधार रहीं हैं। उन्हें अपने इस कार्य में बेहद सुकून मिलता है। उनके द्वारा सुधार के लिए चलाया गया उन्नति कार्यक्रम अब तेलंगाना राज्य की 10 जेलों में चलाया जा रहा है। अपने इस प्रयास से वह बेहद खुश हैं।

DR. beena

नई दिल्ली। डॉ. बीना चिंतलपुरी के अनुसार बीना वर्ष 2015 की बात है, तेलंगाना के जेल महानिदेशक ने मुझसे राज्य की जेलों में अपराधियों के लिए कार्यशालाओं का संचालन करने के लिए संपर्क किया, ताकि कैदियों के मन में सुधार के बीज बोए जा सकें। वहां मैंने कैदियों के पुनर्वास के लिए संज्ञानात्मक विज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग किया है। मैं तेलंगाना की रहने वाली हूं। पेशे से मनोवैज्ञानिक हूं और उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से सेवानिवृत्त हूं। कैदियों के लिए कार्यशाला शुरू करने से पहले मैंने इस बारे में सोचा कि अपराध कैसे हो जाते हैं।

जेलों में अपराध दोहराने वाले अपराधी अधिक दिखते हैं

अधिकांश जेलों में सामान्य प्रवृत्ति के अपराध दोहराने वाले अपराधियों का उच्च अनुपात दिखता है। ये ज्यादातर चोरी, डकैती, लूटपाट, संपत्ति अपराध, नशीले पदार्थ की बिक्री आदि के रिकॉर्ड वाले छोटे अपराधी हैं। जेल के रजिस्टरों से मुझे पता चला कि, जिनके लिए कार्यशाला चलानी है, उनमें से ज्यादातर युवा कैदी थे, जो जमानत पर बाहर जाते थे, अपराध की प्रवृत्ति को दोहराते थे और वापस जेल लौटते थे। कई लोगों के लिए, यह पैटर्न दिनचर्या में बदल गया था। मैं सितंबर 2016 में हैदराबाद की चंचलगुडा सेंट्रल जेल में गई, तो कैदियों को फर्श पर बैठने के लिए बोला गया, जबकि मुझे कुर्सी और मेज दी गई थी, साथ में चाय-बिस्किट भी दिया गया। कुछ हफ्ते बाद जब अधिकारियों ने मुझे फिर बुलाया, तो मैंने जाने से इन्कार कर दिया। मेरी शर्त थी कि कक्षा के सभी कैदियों को कुर्सियां, मेज, चाय और बिस्किट के साथ ही एक पेन और पेपर भी उपलब्ध कराए जाएं।

समान व्यवहार पर जोर दिया

मैंने सभी के साथ समान व्यवहार करने पर जोर दिया। मैंने एहसास किया कि जब तक आप कैदियों के तर्क को नहीं बदलते, उनके प्रतिबिंब को निर्देशित करते हुए, आप समस्याओं को हल नहीं कर सकते। उनके विचारों को समझना है। हमें यह समझने के लिए उनके साथ समय बिताना होगा कि उनके भीतर क्या चल रहा है। अपनी समस्याओं को हल करने के लिए वे किस तरह का दृष्टिकोण अपना रहे हैं। मैंने कैदियों के लिए तीन सप्ताह का एक प्रशिक्षण कार्यक्रम उन्नति बनाया, जिसका प्रत्येक सत्र तीन से चार घंटे का था। सभी परीक्षणों के लिए हमने 30 कैदियों के एक बैच के साथ शुरुआत की। मैं उन कैदियों को चुनती हूं, जो लंबी सजा काट रहे हैं। इसके बाद ये कैदी अन्य कैदियों को प्रशिक्षित करते हैं। कार्यशाला में कैदी विभिन्न अभ्यासों में भाग लेते हैं, उनका लक्ष्य निर्धारण होता है, और यह उन्हें उनकी आंतरिक शक्तियों को समझने के लिए तैयार करता है। मैंने महसूस किया कि जेल की अपनी संस्कृति है। दीवारों के अंदर एक उदासी, अलगाव और अवसाद है। ज्यादातर कैदी भ्रमित होते हैं।

कार्यशाला के अंत में दूसरों को समझना व सराहना करनी होती है

कार्यशाला का अंतिम लक्ष्य उन्हें दूसरों को समझना और उनकी सराहना करना है। जब वे अपने किए गए अपराध को याद करते हैं, तो वह थोड़ा परेशान करता है। मेरा मानना है कि अपराध एक गलत प्रतिक्रिया है। अगर बाहरी उत्तेजनाओं का जवाब देने वाले व्यक्ति के पास अपनी प्रतिक्रियाओं की जांच करने के लिए उपकरण हैं, तो इसे समाप्त किया जा सकता है। इसी जगह पर संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का उपयोग किया जाता है। तेलंगाना की जेल में प्रयोग के रूप में शुरू किया गया उन्नति मॉडल अब राज्य की 10 जेलों में चलाया जाता है। उन्नति के माध्यम से राज्य में करीब 3,000 कैदियों को प्रशिक्षित किया गया है। परिणामस्वरूप उन जेलों में आने वाले कैदियों में अपराध पुनरावृत्ति की दर में गिरावट आई है। अब उन्नति के साथ ही भारतीय जेलों में अपराध पुनरावृत्ति की दर पर अंकुश लगाने के लिए आंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय के साथ जेलों के अंदर देश का पहला मास्टर्स ऑफ साइकोलॉजी कार्यक्रम भी शुरू किया गया है।