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सात माह की गर्भवती होने के बावजूद मरीजों की सेवा में जुटी रहीं डॉक्टर प्रतीक्षा, कोरोना से गई जान

Published - Sun 27, Sep 2020

कोरोना काल में कई डॉक्टरों ने धरती का भगवान कहे जाने वाली बात को चरितार्थ किया है। इसके लिए इन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है। कई को क्रूर कोरोना से मरीजों को बचाते और अपने फर्ज को निभाते हुए जान की कुर्बानी तक देनी पड़ी। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं महाराष्ट्र की प्रतीक्षा वाल्देकर। आइए जानते हैं डॉ. प्रतीक्षा की सेवा और समर्पण के बारे में, जिसे निभाते हुए उन्हें अपनी की आहुति तक देनी पड़ी।

नई दिल्ली। कोरोना काल में कई डॉक्टरों ने धरती का भगवान कहे जाने वाली बात को चरितार्थ किया है। इसके लिए इन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है। कई को क्रूर कोरोना से मरीजों को बचाते और अपने फर्ज को निभाते हुए जान की कुर्बानी तक देनी पड़ी। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं महाराष्ट्र की प्रतीक्षा वाल्देकर। डॉ. प्रतीक्षा सात माह की गर्भवती होने के बावजूद कोरोना मरीजों की सेवा में दिन-रात जुटी रहीं। इसी दौरान वह खुद कोरोना वायरस से संक्रमित हो गईं। धीरे-धीरे उनकी हालत इतनी बिगड़ी की उन्हें ऑक्सीजन पर रखना पड़ा। इस दौरान उनके पेट में पल रहे बच्चे की भी मौत हो गई। कई दिनों तक कोरोना से जिंदगी की जंग लड़ने के बाद 20 सितंबर को डॉ. प्रतीक्षा यह लड़ाई हार गईं और उनकी भी मौत हो गई। डॉ. प्रतीक्षा की मौत के बाद स्वास्थ विभाग में उनके साथ काम करने वाली सभी साथी सदमे में हैं। काल की क्रूर नीयति से सभी हैरान और दुखी हैं। आइए जानते हैं डॉ. प्रतीक्षा की सेवा और समर्पण के बारे में, जिसे निभाते हुए उन्हें अपनी की आहुति तक देनी पड़ी।
 
मरीजों की सेवा के लिए खुद की सुरक्षा को किया दरकिनार

32 साल की डॉ. प्रतीक्षा वाल्देकर एमबीबीएस एमडी थीं। वह पिछले कुछ सालों से अमरावती के इरविन हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहीं थीं। वे इस अस्पताल के पैथोलॉजी विभाग में कार्यरत थीं। कोरोना वायरस के भारत में दस्तक देने के समय ही वह प्रेग्नेंट हुई थीं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी भी अस्पताल आना नहीं छोड़ा। साथी डॉक्टरों ने कई बार उन्हें ऐसे हालात में अस्पताल नहीं आने की सलाह दी, लेकिन वह हर बार यह कहकर टाल देतीं कि यदि सभी छुट्टी ले लेंगे तो कोरोना मरीजों की देखभाल कौन करेगा। जांच नहीं होगा तो कैसे पता चलेगा कि किसे क्या बीमारी है और उसे किस तरह के इलाज की जरुरत है। डॉ. प्रतीक्षा को यह जवाब से साथी शांत हो जाते थे। प्रेग्नेंसी का 7वां महीना चलने के बाद भी वह लगातार अस्पताल आती रहीं और पहले की तरह ही नियमित जांच करती रहीं। इसी दौरान वह भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो गईं।

हालत बिगड़ने पर नागपुर किया गया शिफ्ट

कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद डॉ. प्रतीक्षा का इलाज इरविन अस्पताल में ही किया गया, लेकिन धीरे-धीरे हालत बिगड़ने पर उन्हें नागपुर शिफ्ट कर दिया गया। 10 सितंबर से ही उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। सांस लेने में दिक्कत होने के कारण उन्हें ऑक्सीजन लगाना पड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सेहत में सुधार की बजाए तबीयत और बिगड़ती चली गई। इसका असर उनके पेट में पल रहे बच्चे पर भी पड़ा।

15 सितंबर को गर्भ में बच्चे की हो गई मौत

डॉ. प्रतीक्षा की तबीयत दिन बीतने के साथ बिगड़ रही थी। इस कारण 15 सितंबर को उनके बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई। इस हादसे के बाद डॉ. प्रतीक्षा और टूट गईं और उनकी तबीयत तेजी से गिरने लगी। डॉक्टरों के भरसक प्रयास करने के बाद भी 20 सितंबर को डॉ. प्रतीक्षा की मौत हो गई।

लोगों का अस्पताल पर फूटा गुस्सा

डॉ. प्रतीक्षा की मौत के बाद जहां स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया। वहीं, लोगों का गुस्सा इरविन अस्पताल पर फूट पड़ा। लोगों ने सोशल मीडिया पर डॉ. प्रतीक्षा की मौत के लिए अमरावती के उस अस्पताल को जिम्मेदार ठहराया जहां वे सात महीने की प्रेग्नेंसी के दौरान भी काम कर रहीं थीं। डॉ. प्रतीक्षा ने नागपुर से ही अपनी पढ़ाई पूरी की थी।