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डॉक्टर रश्मि तिवारी की कोशिश है कि मानव तस्करी से लड़कियों को बचाया जाए

Published - Tue 17, Nov 2020

झारखंड की लड़कियों को मानव तस्करी से बचाने के लिए रांची की डॉक्टर रश्मि तिवारी अपने संगठन के जरिये न केवल लड़कियों को मानव तस्करी से बचा रही हैं, उन्हें रोजगारपरक ट्रेनिंग देकर अपने पैरों पर भी खड़ा कर रही हैं।

नई दिल्ली। अक्सर देखा जाता है कि गरीबी की मार झेल रहे परिवार जब बच्चों को पालने में विफल हो जाते हैं, तो उनको बेच दिया जाता है। कई बार कुछ गिरोह भी भोलेभाले गांववालों को अपनी योजनाओं में फंसाकर बच्चों की खरीद-फरोक्त करते हैं। उन्हें पैसों का लालच देकर बच्चों को बेहतर जिंदगी देने का सब्जबाग दिखाया जाता है और अनपढ़ गरीब लोग बच्चों को खासकर लड़कियों को एक ऐसे दलदल में धकेल देते हैं कि उनका जीवन नरक हो जाता है। मानव तस्करी को नजदीक से देखने वाली झारखंड के रांची की डॉ. रश्मि तिवारी ऐसी ही एक कोशिश कर रही है कि मानव तस्करी के दलदल से बच्चों खासकर लड़कियों को बचाया जाए। इस काम को करने के लिए रश्मि ने अपनी नौकरी छोड़ी और आदिवासी बच्चों को बचाने का काम शुरू किया। आज वह अपने संगठन ‘अहान ट्राइबल डेवलपमेंट फाउंडेशन’ के जरिये आदिवासी बच्चों को न केवल आत्मनिर्भर बना रही हैं, साथ ही उनको वोकेशनल ट्रेनिंग भी देती हैं, जिससे बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। वो आदिवासी लोगों को प्रेरित करती हैं कि वह अपने बच्चों को  स्कूल भेजें ताकि आने वाले वक्त में वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

एक घटना ने बदली जिंदगी
रश्मि ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है। वह वो अमेरिकन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स इन इंडिया में डायरेक्टर के पद पर भी काम कर चुकी हैं। वर्ल्ड बैंक के एक प्रोजेक्ट पर काम करते हुए वह कई एनजीओ के संपर्क में आईं और उन्हें ओडिशा जाने का मौक मिला। वह जब एक बार भुवनेश्वर से साठ किलोमीटर दूर एक आदिवासी स्कूल गईं, तो वहां बच्चे तो खुश दिखें, लेकिन वहां मिले माता-पिता ने उनसे कहा कि वो बच्चों को साथ ले जा सकती हैं, क्योंकि वो इनकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते। बदले में वो कुछ पैसें दे दें। ये सुनकर वो हैरान रह गईं और सोच लिया कि आदिवासी बच्चों के लिए कुछ करना है।

बनाया प्लान और शुरू किया काम
इस घटना के बाद जब रश्मि दिल्ली लौंटी तो, उन्होंने ठान लिया कि वह अपनी नौकरी छोड़ेंगी और आदिवासी बच्चों के लिए काम करेंगी। उन्होंने आदिवासियों पर रिसर्च शुरू की। वह शहरों में काम करने वाली कुछ ऐसी लड़कियों से मिलीं, जिन्हें मानव तस्करी कर लाया गया था। ये लड़कियां ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, बंगाल से लाई गईं थीं। डॉक्टर रश्मि ने साल 2013 के अंत में झारखंड में लातेहार जिले और रांचीसे अपने काम की शुरूआत की। इसके लिए उन्होने ‘अहान ट्राइबल डेवलपमेंट फाउंडेशन’  की स्थापना की।

आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने की कोशिश
शुरुआत में सबसे बड़ी मुश्किल आदिवासियों की भाषा को समझना था। उन्होंने सबसे पहले स्कूल जाने वाली आदिवासी लड़कियों को समझाना शुरू किया और उनको शिक्षा से जुड़ी सुविधाएं दीं। रश्मि ने ‘मैया’ नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसका मकसद उन लड़कियों को जोड़ना था जो मानव तस्करी के कारण दूसरे राज्यों में शोषण का शिकार हो रहीं थीं। रश्मि आदिवासी महिलाओंको प्रेरणास्रोत फिल्में दिखातीं, उनकी बातें सुनतीं, तकलीफें जानतीं। मानव तस्करी की शिकार लड़कियों की आपबीती बतातीं  रश्मि ने आदिवासी लड़कियों और औरतों के आर्थिक विकास के लिए ‘सशक्त मां’ नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसमें महिलाओं और लड़कियों के स्वंय सहायता समहू बनाए। लड़कियों को कंप्यूटर चलाने की ट्रेनिंग शु रूकी। वो लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहतीं थीं। आज डॉक्टर रश्मि की मदद से करीब 7सौ महिलाओं का स्वंय सहायता समूह चल रहा है। जो कि छोटे-छोटे समूह बनाकर कोई ना कोई काम धंधा कर रहीं हैं। रश्मि मानव तस्करी की शिकार हो चुकीं महिलाओं व लड़कियों के लिए प्रोजेक्ट उड़ान भी चला रही हैं, जिससे कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके व उनको नौकरी दिलवाई जा सके। डॉक्टर रश्मि इस साल और 15 आदिवासी महिलाओं और लड़कियों का ‘उड़ान’ के लिए चयन कर रही हैं। इस साल जिन आदिवासी महिलाओं और लड़कियों का चयन होगा उनको पूरे साल के लिए वो फैलोशिप भी देंगी। साथ ही उनके लिये ये छूट होगी कि वो जो चाहे वो सीख सकती हैं।