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बेटियों के जन्म पर डॉ. शिप्रा नहीं लेती हैं फीस, अस्पताल में बंटवाती हैं मिठाई

Published - Wed 13, Jan 2021

आज देश की बेटियां विज्ञान, कला, खेल, राजनीति, शिक्षा हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। इसके बावजूद देश के कई ऐसे इलाकों में आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है। समाज की इस रूढ़िवादी सोच को बदलने का काम कर रही हैं वाराणसी की डॉक्टर शिप्रा धर श्रीवास्तव। डॉ. शिप्रा अपने अस्पताल में बेटी का जन्म होने पर कोई फीस नहीं लेतीं। खुद ही पूरे अस्पताल में मिठाईयां भी बंटवाती हैं। अब तक वह 100 से ज्यादा बेटियों के जन्म पर ऐसा कर समाज के लिए मिसाल बन चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी डॉ. शिप्रा के इस प्रयास की सराहना कर चुके हैं। आइए जानते हैं डॉ. शिप्रा के बारे में...

नई दिल्ली। आप अक्सर अस्पतालों में हंगामे की खबरें सुनते हैं। इस विवाद का करण अमूमन लंबा-चौड़ा बिल होता है। डॉक्टरों की मोटी फीस के कारण ही कई बार गरीब और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लोग अच्छे डॉक्टरों से इलाज नहीं करा पाते। इन सब के बीच समाज में कुछ ऐसे डॉक्टरों भी हैं, जो लोगों की मदद और इलाज को लेकर हमेशा तत्पर रहते हैं। ये डॉक्टर न केवल निस्वार्थ भाव से मरीजों का इलाज करते हैं, बल्कि मुफ्त में दवाएं भी बांटते हैं। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर हैं यूपी के वाराणसी में रहने वालीं डॉ. शिप्रा धर श्रीवास्तव। वह पिछले कई सालों से ये काम कर रही हैं। उनके नर्सिंग होम में अगर किसी दंपती के घर बेटी जन्म लेती है तो वो पूरे अस्पताल में मिठाईयां बंटवाती है और खुशियां मनाती हैं। डॉ. शिप्रा के इस काम में उनके पति डॉ. एम के श्रीवास्तव भी बखूबी साथ देते हैं। 

भ्रूण हत्या की नकारात्मक सोच को बदलने के लिए शुरू की पहल 

डॉ. शिप्रा धर श्रीवास्तव ने वाराणसी से ही एमबीबीएस और एमएस किया है। जब उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की तो उनके पास कई ऐसे मामले आए जिनमें लोग बेटियों के जन्म को लेकर उतने उत्साहित नजर नहीं आए। इसके उलट बेटे के जन्म पर लोग स्टॉफ को न केवल पैसे देते, बल्कि पूरे अस्पताल में मिठाईयां बंटवाते थे। यह देख डॉ. शिप्रा को बुरा लगता। बेटियों के जन्म पर लोगों की इस सोच को बदलने के लिए उन्होंने खुद फीस नहीं लेने और स्टॉफ को मिठाई बंटवाने का फैसला किया। भ्रूण हत्या जैसी कुरीति ने भी डॉ. शिप्रा पर गहरा असर डाला। उन्होंने गर्भ में ही बेटियों को मार देने और उनके जन्म के बाद उनकी जान ले लेने की लोगों की सोच में बदलाव के लिए यह प्रयास शुरू किया। डॉ. शिप्रा बताती हैं कि लोगों में बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच अब भी है। जब परिजनों को पता चलता है कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते हैं। गरीबी के कारण कई लोग तो रोने भी लगते हैं। इसी सोच को बदलने की वह कोशिश कर रही हैं, ताकि अबोध शिशु को लोग खुशी से अपनाएं। वह बेटी के जन्म पर फीस नहीं लेती हैं। बेड चार्ज भी नहीं लिया जाता, यदि ऑपरेशन करना पड़े तो वह भी मुफ्त करती हैं।

मोदी भी कर चुके हैं तारीफ, गरीब बच्चियों को पढ़ाती भी हैं डॉ. शिप्रा

डॉ. शिप्रा के बारे में तीन साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी को जानकारी हुई तो वह काफी प्रभावित हुए। जब वह वाराणसी दौरे पर गए तो एक जनसभा के दौरान मंच से देश के सभी डॉक्टरों से आह्वान किया था कि वे हर महीने की 9 तारीख को जन्म लेने वाली बच्चियों के परिजनों से कोई फीस न लें। इससे 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' मुहिम को बल मिलेगा। मंच पर पीएम मोदी ने डॉ. शिप्रा को सम्मानित किया और देशभर के डॉक्टरों के लिए उन्हें मिसाल बताया। डॉ. शिप्रा ने गरीब लड़कियों की शिक्षा का भी बीड़ा उठाया है। वह नर्सिंग होम में ही लड़कियों को पढ़ाती हैं। घरों में काम करने वाली कई बच्चियां उनके पास पढ़ने आती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की बेटियों को सुकन्या समृद्धि योजना का लाभ दिलाने में भी मदद करती हैं।

अनाज बैंक भी चलाती हैं

बच्चों और परिवारों को कुपोषण से बचाने के लिए डॉ. शिप्रा अनाज बैंक भी संचालित करती हैं। इसकी मदद से वह गरीब विधवा महिलाओं और असहाय 38 परिवारों को हर माह की पहली तारीख को अनाज मुहैया कराती हैं। अनाज बैंक से गरीब महिलाओं को हर महीने 10 किलो गेहूं और 5 किलो चावल दिया जाता है। डॉ. शिप्रा का मानना है कि सनातन काल से बेटियों को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। देश विज्ञान, तकनीक की राह पर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में अगर बेटी के जन्म पर खुशी नहीं मनाई जा सके तो ऐसा विकास किस काम का। डॉ. शिप्रा का मानना है कि यदि उनका यह छोटा सा प्रयास बेटियों के प्रति समाज की सोच को बदल सके तो वह खुद को सफल समझेंगी।