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दिव्या ने गांव के लिए किया काम, गांववालों ने दिव्या के नाम पर रखा गांव का नाम

Published - Wed 29, Jul 2020

तेलंगाना की महिला अफसर दिव्या देवराजन के काम मेहनत और ईमानदारी, समर्पण को देखकर एक गांव ने अपने गांव का नाम बदलकर ही दिव्यागुड़ा कर दिया। दिव्या आदिवासी गांवों को संवारने के लिए पूरी जी जान से जुटी हैं।

नई दिल्ली। अफसर तो आपने भी बहुत से देखे होंगे और बहुत से अफसरों के काम के प्रति लगन के बारे में सुना और देखा भी होगा, लेकिन जिनकी बात हम कर रहे हैं, वो अफसर कुछ अलग हैं।  2010 बैच की महिला आईएएस ऑफिसर हैं दिव्या देवराजन। दिव्या तेलंगाना के आदिवासी इलाकों के लिए काम कर रही हैं और आदिवासी लोग उनके काम और मेहनत से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने गांव का नाम ही उनके नाम पर रख दिया। 2017 में दिव्या की पोस्टिंग तेलंगाना के आदिलाबाद में हुई। यहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि आदिवासी लोगों के लिए जो योजनाएं सरकार चला रही है, उनका लाभ आदिवासियों को नहीं मिल पाता। उनका रहन-सहन और जीवन स्तर काफी निम्न स्तर का है। दिव्या के सामने सबसे बड़ी समस्या ये थी कि उन्हें आदिवासियों की गोंडी भाषा नहीं आती थी। तीन महीने की मेहनत और लगन से सबसे पहले दिव्या ने वो भाषा सीखी। वो उन्होंने इसलिए किया कि जिससे आदिवासियों को लगे कि वो उनके बीच की हैं और उनके लिए ही काम करने आई हैं। दिव्या ने कई सरकारी अस्पतालों में विशेष आदिवासी समन्वयकों और भाषा अनुवादकों की नियुक्ति की। क्षेत्र के आदिवासी जो प्रशासन के कार्यालयों में या तो पहुंच नहीं पाते थे या अपनी बात समझा नहीं पाते थे, उनको प्रशासन तक पहुंचने का रास्ता दिव्या ने एकदम सरल कर दिया।

आदिवासियों के बीच बन गईं दिव्या 'अधिकारी मैडम'
दिव्या के आदिवासियों के लिए किए जा रहे प्रयासों के चलते धीरे-धीरे वो आदिवासियों के बीच बेहद प्रसिद्ध हो गईं और आदिवासी उन्हें  'अधिकारी मैडम' के नाम सेसंबोधित करने लगे। एक दिन दिव्या ये जानकर हैरान रह गईं कि गांव वालों ने अपने गांव का नाम उनके पर रख दिया। ऐसा ग्रामीणों ने इसलिए किया कि दिव्या आदिवासियों के लिए मेहनत से काम कर रही हैं और ग्रामीण उन्हें सम्मान देना चाहते थे। दिव्या ने आदिवासियों के लिए अशिक्षा, बेरोजगारी, सिंचाई, स्वास्थ्य, बाढ़ आदि मुद्दो पर भी काम किया। आदिवासियों के बीच अंतरजातीय हिंसा, कफ्यू जैसे मुद्दे भी हावी थे, लेकिन दिव्या ने सबको दूर कर जल्द ही आदिवासी लोगों के दिलों में जगह बना ली।
दादा हैं उनकी प्रेरणास्रोत
दिव्या ने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और उसके बाद आईएएस की तैयारी की। लोगों की सेवा करने की प्रेरणा उन्हें अपने दादा और पिता से मिली। उनके दादा किसान थे और पिता तमिलनाडु बिजली बोर्ड में तैनात थे। हालांकि अब दिव्या का तबादला आदिलाबाद से हो चुका है और  2020 मे उन्हें महिला, बाल, विकलांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सचिव और आयुक्त के पद पर नियुक्त किया गया है।