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पहाड़ थे आपदाग्रस्त पर गीता ने नहीं छोड़ा हौसला

Published - Sat 13, Jun 2020

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की गीता ठाकुर ने आपदाग्रस्त पहाड़ में भी सफलता की राह ढूढ़ निकाली और आज वो महिला पोर्टर बनकर कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले यात्रियों की सेवा कर रही हैं।

geeta thakur

देहरादून। उत्तराखंड के धारचूला की रहने वाली गीता का जीवन कठिनाईयों के बीच गुजरा। जिप्ति गांव में पली-बढ़ी गीता का गांव आपदा से ग्रस्त हो चुका है। गांव को छोड़ नहीं सकती थीं और गांव में रहकर रोजी-रोटी की तलाश करना बेहद मुश्किल था। ऐसी परिस्थितियों के बीच से गीता ने एक ऐसा रास्ता निकाला, जो उन्हें अन्य युवतियों से अलग करता है। गीता की हिम्मत और मेहनत का ही नतीजा है कि आज वो उत्तराखंड में एक सफल महिला पोर्टर हैं और कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले यात्रियों की सेवा करती हैं।

कुछ समय पहले ही शुरू किया काम
गीता ने पिछले साल ही महिला पोर्टर के तौर पर काम शुरू  किया है। पहली बार उन्होंने कर्नाटक के बंगारू स्वामी और उनकी बेटी सुंदनी को कैलाश और ओम पर्वत कीसफल यात्रा कराई। जिस यात्री दल को वो गाइड कर रहीं थीं, उनमें 22 यात्री थी। गीता उनको लेकर धारचूला से नजंग और वहां से बोलायर और मालपा की यात्रा पर लेकर गईं और फिर ओम पर्वत पहुंची। उनके व्यवहार और कार्यकुशलता के यात्री भी मुरीद हैं।

किराये के घर में रहती हैं गीता
गीता को माता-पिता खेती करते हैं, लेकिन जिप्ति गांव में खेती करना भी आसान नहीं है। गीता यात्रियों को यात्रा कराने के लिए धारचूला में किराये के घर में रहती हैं। उनकेछह भाई और एक बहन है। गीता अपनी कमाई का एक हिस्सा अपनी भतीजी और बहन की पढ़ाई पर खर्च करती हैं। उनका सपना है कि वो पढ़-लिखकर आगे बढ़े और खूब तरक्की करें, जिससे उनकी मुश्किलों को थोड़ा आराम मिल जाए और परिवार का गुजर-बसर भी अच्छे से हो। गीता ने जब इस काम को चुना तो गांव के लोगों के विरोध का भी उनको सामना करना पड़ा, लेकिन गीता ने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम पर फोकस रखा। गीता जब यात्रियों को सफल यात्रा करवाकरलौटती हैं, तो यात्री उनकी खूब तारीफ करते हैं।