उत्तराखंड के तेहरी गांव के कृषि विज्ञान केंद्र में फूड साइंटिस्ट कीर्ति ने एनजीओ रजिस्टर्ड कराए और इनके माध्यम से पहाड़ी क्षेत्र के गांवों में रहने वाली महिलाओं को फूड इंटरप्रेन्योरशिप का हुनर सिखाया। आज इलाके की तकरीबन 1000 महिलाआएं आत्मनिर्भर बन परिवार का खर्च खुद उठा रही हैं। आइए जानते हैं कीर्ति के इस सफल मुहिम के बारे में...
नई दिल्ली। कुछ करने की ठान ली जाए और इरादे पक्के हो तो राह मिल ही जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तराखंड के तेहरी गांव के कृषि विज्ञान केंद्र में फूड साइंटिस्ट (Food Scientist) कीर्ति ने। अपने लिए मनचाहा मुकाम हासिल करने के बाद कीर्ति ने दूसरों की जिंदगी संवारने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने एक-एक कर 10 एनजीओ रजिस्टर्ड कराए और इनके माध्यम से पहाड़ी क्षेत्र के गांवों में रहने वाली महिलाओं को फूड इंटरप्रेन्योरशिप का हुनर सिखाया। आज कीर्ति के प्रयासों की बदौलत ही इलाके के कई गांवों की तकरीबन 1000 महिलाआएं आत्मनिर्भर बन परिवार का पूरा खर्च खुद ही उठा रही हैं।
रागी बर्फी को कर दिया मशहूर
आपने तमाम तरह की मिठाइयों का स्वाद चखा होगा। अमूमन मिठाइयों को ज्यादा खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन कुछ ऐसी मिठाइयां हैं, जो सेहत के लिए काफी अच्छी मानी जाती हैं। ये मिठाइयां हैं आयरन लड्डू, रागी बर्फी (Ragi Barfi) या कहें रेडी टू यूज एनर्जी पाउडर जिसे 'ऊर्जा' भी कहा जाता है। इन मिठाइयों को बनाने और फेमस करने का श्रेय जाता है कीर्ति को। कीर्ति ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के तेहरी गांव समेत आस-पास के गांवों की महिलाओं को भी इस आयरन रिच रागी और बाजरे के लड्डू आदि बनाने सिखाए। ये लड्डू काफी ऊर्जा से भरपूर माने जाते हैं। यहीं वजह है कि इन्हें अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और बच्चों को भी बांटा जाता है। रागी बर्फी को कुपोषित बच्चों के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। कीर्ति की कोशिशों का ही नतीजा है कि रागी बर्फी अब छोटे से गांव से निकलकर पूरे प्रदेश में पहुंच चुकी है। इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार ने इसे जीआई टैग देने तक की सिफारिश कर डाली है।
महिलाओं को बना रहीं सबल
राजस्थान के भरतपुर की रहने वाली 28 वर्षीय कीर्ति ने फूड टेक्नोलॉजी में बीटेक और प्रोसेसिंग एंड फूड इंजीनियरिंग में एमटेक किया है। वे फिलहाल तेहरी गढ़वाल की वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री में टीचर हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो स्व सहायता समूह बनाए हैं उनमें फूड इंटरप्रेन्योरशिप की ट्रेनिंग दी जाती है। इससे बेहतर आमदनी भी हो रही है। कीर्ति ने जिस ब्लॉक लेवल प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत की है, उसका टर्नओवर धीरे-धीरे बढ़कर 1 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। वे ग्रामीण महिलाओं को फल, सब्जियों और फूलों से जैम, आटा और अन्य सामान बनाना सीखाती हैं। इनमें से कई आइटम की डिलिवरी तो विदेशों तक में होती है।
मिल चुके हैं कई सम्मान
कीर्ति ग्रामीण महिलाओं के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। अब तक 1000 से ज्यादा महिलाएं कीर्ति की वजह से खुद अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी हैं। कई अन्य महिलाएं भी इन स्व सहायता समूहों से जुड़ रही हैं। कीर्ति के इन प्रयासों के लिए उन्हें 'वीरांगना' और 'तीलू रौतेली अवार्ड' से नवाजा जा चुका है। लड़की-लड़की में भेद जैसी कुप्रथा को भी खत्म करने के लिए कीर्ति प्रयास कर रही हैं। वे गांवों में घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं। स्व सहायता समूह में आने वाली महिलाओं को भी वे इस बारे में जागरूक कर अन्य लोगों को भी यह संदेश देने को कहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.