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भाई की मौत के बाद उसकी विरासत को आगे बढ़ा रहीं हैं चंद्रकला

Published - Sun 06, Sep 2020

राजस्थान की चंद्रकला राव राजस्थान की अकेली महिला फुटबॉल कोच हैं। अपने भाई की मौत के बाद चंद्रकला ने फुटबॉल को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया और खिलाड़ी तैयार करने में जुट गईं।

ई दिल्ली। फुटबॉल जैसे खेल को हमेशा से पुरुषों का खेल ही माना जाता है। खासकर भारत जैसे देश में तो महिलाएं इस खेल के बारे में कम ही सोचती हैं। ऊपर से अगर इलाका पिछड़ा हो, साक्षरता दर कम हो, तो महिलाओं द्वारा खेलों के प्रति अपनी पसंद जाहिर करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन समाज की तमाम बेड़ियों को तोड़कर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर में एक बेटी ने केवल फुटबॉल खेल रही है, बल्कि फुटबॉल की कोचिंग भी करा रही है। अपने होनहार फुटबॉल कोच भाई की मौत के बाद चंद्रकला ने फुटबॉल को आजीवन सदस्य बना लिया है।

एक हादसे सबकुछ बदला

चंद्रकला के भाई संदीप फुटबॉल खेलते थे। जब वो मैच खेलते थे, तो चंद्रकला उनको और उनकी टीम को चियर किया करती थीं। धीरे-धीरे संदीप ने अच्छा किया और राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में भी चयनित हुए। संदीप का सपना देश लिए मेडल लाने का था, लेकिन इसी बीच एक घटना घटी। एक सड़क हादसे में संदीप चल बसे। इस घटना ने चंद्रकला राव और उनके परिवार को तोड़कर रख दिया। भाई की मौत के बाद चंद्रकला उनके सुनहरे पलों को याद कर रोतीं थीं। चंद्रकला को भाई का फुटबॉल खेलना बेहद पसंद था। भाई की यादों को दिल में संजोए चंद्रकला ने फुटबॉल खेलने का फैसला किया और फुटबॉल खेलने लगीं। सफलता को पाते हुए चंद्रकला आगे बढ़ती गईं और हनुमानगढ़ जिले की उनके होमटाउन नोहर की टीम राजस्थान की पहली महिला फुटबॉल टीम बनीं।

मुश्किलों में बीता जीवन
चंद्रकला फुटबॉल में ही आगे बढ़कर अपना करियर बनाना चाहती हैं। शुरू में खेलना उनके लिए आसान न था। उनका परिवार बेहद कट्टर है, तो ऐसे में तमाम परेशानियों से उन्हें जूझना पड़ा। जब वह दसवीं कक्षा में थीं, तो उनके पिता का देहांत हो गया और उसके बाद भाई चला गया। परिवार में उनकी मां, बड़ी बहन और छोटा भाई रह गया। चंद्रकला ने भाई-बहनों ने अपनी मां  की देखभाल करने के लिए इस मुश्किल समय में हौसला रखा। चंद्रकला ने फुटबॉल के प्रति खुद को और मजूबत किया। वह देश में कई जिला, राज्य और राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में खेलीं। उनका अंतिम सपना भारतीय टीम के लिए खेलना था। हालांकि, अपने परिवार का समर्थन मिलने पर उन्होंने कोचिंग की ओर रुख किया। इसका कारण था कि कि परिवार को चलाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी। चंद्रकला पैसा भी कमाना चाहती थीं और फुटबॉल से भी जुड़े रहना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने अपने पुराने स्कूल कृष्णा पब्लिक स्कूल में छात्रों को प्रशिक्षित करना शुरू किया। साथ ही साथ वो बच्चों को पढ़ाती भी थीं। पांच साल तक वो ऐसे ही जीवन चलाती रहीं और उन्होंने  एआईएफएफ (ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन) से कोचिंग लाइसेंस के लिए आवेदन किया और उदयपुर के जावर में लाइसेंस परीक्षा उत्तीर्ण की। 2018 में जब उन्हें लाइसेंस मिल गया तो उदयपुर में उन्होंने जिंक फुटबॉल अकादमी में प्रशिक्षण कराना शुरू किया। खेल और समानता का पाठ चंद्रकला पिछले दो वर्षों से ज़ावर माइंस में जिंक फुटबॉल अकादमी द्वारा स्थापित सामुदायिक केंद्रों - जिंक फुटबॉल स्कूलों में फुटबॉल सिखा रही हैं। वह नियमित रूप से पहाड़ी टाउनशिप में 50 से अधिक लड़कों और लड़कियों को प्रशिक्षित कर रही है।

चंद्रकला कहती हैं ये केवल लड़कों का खेल नहीं हैं
अमूमन फुटबॉल को लड़कों के खेल से जोड़कर देखा जाता है। खासकर राजस्थान में तो लड़कियों को आजादी नाममात्र की है। जहां चंद्रकला काम करती हैं, वहां तो परिवार घर से बाहर लड़कियों को भेजने से घबराते हैं। चंद्रकला ऐसे परिवार के पास जाकर लड़कियों को फुटबॉल खेलने देने के लिए मनाती हैं। इसके पीछे उनका मकसद खेलों से होने वाले लाभों की जानकारी देना और लड़कियों का व्यक्तित्व विकास करना भी शामिल है। चंद्रकला मैदान पर मौज-मस्ती करते हुए समानता और नैतिक जीवन के नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने के लिए लड़कों और लड़कियों को शिक्षित करने का प्रयास कर रही है।