दादी गंगव्वा मिलकुरी की उम्र साठ साल है, लेकिन दादी यूट्यूब सेन्सेशन हैं। उनकी कहानी आज की महिलाओं के लिए एक सबक है।
नई दिल्ली। मेरी तो उम्र हो चली है, इस बुढ़ापे में मैं क्या कर पाऊंगी, अक्सर महिलाएं उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐसे जुमले मारती हैं और अपने सपनों को उम्र का हवाला देकर पूरा करने से बचती हैं। लेकिन कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिनके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। वो पूरे जोश और जुनून से अपने सपनों को जीती हैं, उन्हें पूरा करती हैं। तेलंगाना की दादी गंगाव्वा मिलकुरी की कहानी कुछ ऐसी है, जो महिलाओं को प्रेरणा और साहस दोनों देती है। साठ साल की उम्र में यूट्यूब सेन्सेशन बन चुकी दादी इंटरनेट के बारे में ज्यादा नहीं जानतीं ,लेकिन प्रसिद्ध हो चुकी हैं।
दादी टॉलीवुड फिल्मों में भी आजमा चुकी हैं हाथ
दादी गंगव्वा एक समय घरेलू हिंसा का शिकार हो चुकी हैं, लेकिन दादी ने हार नहीं मानी। पांच लोगों के परिवार को पालने के लिए दादी ने खेतों में हल भी चलाया, मजदूरी भी की। कुली का काम भी किया और साथ-साथ टॉलीवुड में भी हाथ आजमाया। चूंकि पति शराबी था, तो घरेलू हिंसा उनके जीवनका हिस्सा बन चुकी थी। परिवार को पालने में लगी दादी सबकुछ सहती रहीं। इस बीच पति की मौत हो गई, तो दादी ने अपने भीतर छिपे हुनर को पहचाना और ठान लिया कि वो कुछ करके दिखाएंगी।
और बन गईं यूट्यूब सेन्सेशन
दादी के दामाद अपने दोस्तों के साथ मिलकर 'माय विलेज शो' नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाते थे। उन्होंने एक बार दादी को अपने शो में लेने का निर्णय लिया और उनसे बात की। दादी और उनके दामाद का फिल्माया ये शो हिट रहा और दादी की डिमांड बढ़ने लगी। इसके बाद तो दादी गंगव्वा उनके दामाद और उनके दोस्तों ने खास वीडियो बनाना शुरू किया और दादी इंटरनेट की स्टार बन गईं। आज दादी यूट्यूब के साथ-साथ इंस्टाग्राम पर भी खासा लोकप्रिय हैं। दादी कहती हैं कि सपनों को मरने मत दो। सपने मर गए तो आप जिंदा लाश बन जाएंगे।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.