इस आपातकाल स्थिति में हर कोई अपने-अपने तरीके से सहयोग कर रहा हैं। वहीं गाजियाबाद की मेयर आशा शर्मा ने भी लोगों के लिए मास्क बनाए।
नई दिल्ली। नगर निगम की महापौर को अब तक आपने कुर्सी पर बैठकर फाइलों पर हस्ताक्षर करते हुए देखा होगा, लेकिन कोरोना संक्रमण के इस दौर में गाजियाबाद की महापौर आशा शर्मा लोगों के लिए मास्क बना रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपने संबोधन में लोगों से घर पर बने मास्क पहनने की अपील की तो महापौर ने करीब 100 से ज्यादा मास्क बनाकर लोगों को बांटे।
संक्रमण से बचाव को जरूरी है मास्क
महापौर आशा शर्मा का कहना है कि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मास्क पहनना जरूरी है। बाजार में मास्क की कमी होने की वजह से घर पर बैठकर लोगों के लिए मास्क बनाने का आइडिया आया तो सूती कपड़ा लेकर मास्क बनाने शुरू कर दिया। राजनगर स्थित अपने आवास पर ही उन्होंने अपनी पुरानी सिलाई मशीन रखी और परिवार की मदद से करीब 100 मास्क बनाए। उन्होंने अपने घर के बाहर से गुजरने वाले लोगों को मास्क बांटे और उन्हें इसका महत्व भी बताया।
लोगों को किया जागरूक भी
महापौर ने मास्क बांटने के दौरान लोगों को समझाया कि बेहद ज्यादा जरूरी होने पर ही घरों से बाहर निकलें और बाहर जाते वक्त मास्क जरूर पहनें। हर एक घंटे के बाद हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं और लोगों से कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए रखें। उन्होंने लोगों को बताया कि एक बार मास्क प्रयोग करने पर उसे अच्छी तरह धोकर ही दोबारा पहनें।
पति कर रहे समाजसेवा
महापौर आशा शर्मा सिलाई मशीन से मास्क तैयार कर जरूरतमंदों को इनका वितरण करती हैं तो उनके पति केके शर्मा और परिवार के अन्य सदस्य जरूरतमंद लोगों को भोजन, पुलिसकर्मियों को चाय-नाश्ता उपलब्ध कराकर सेवा कर रहे हैं। महापौर ने लोगों से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कोष में सामर्थ्य के अनुसार दान देने की अपील भी की है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.