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दिव्यांगों पर हर माह वेतन का 30 फीसदी खर्च करती हैं गीतू, अब तक 100 बच्चों का संवार चुकीं जीवन

Published - Sat 06, Feb 2021

आधुनिकता के दौर में दिव्यांगों को लेकर लोगों की सोच में भले बड़ा बदलाव आया हो, लेकिन समाज का एक तबका अब भी इन्हें बराबरी का दर्जा देने से हिचकता है। वहीं, समाज में कई ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने इन दिव्यांगों का जीवन संवारने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी है। ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है गीतू जोशी। गीतू न केवल दिव्यांगों को पढ़ाती हैं, बल्कि उनकी जरूरत की चीजों को पूरा करने के लिए हर महीने अपने वेतन का 30 फीसदी हिस्सा भी खर्च करती हैं। वह बीते छह सालों से ऐसा कर रही हैं। गीतू के इस भगीरथी प्रयास के कारण अब तक 100 से ज्यादा दिव्यांग बच्चों का जीवन संवर चुका है। आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ की इस निष्ठावान बेटी के बारे में....

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सेरीखेड़ी की रहने वाली गीतू जोशी दिव्यांगों की संस्था सेवा निकेतन में बतौर शिक्षिका कार्य करती हैं। वह बीते छह साल से अपने वेतन का 30 फीसदी हिस्सा दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती आ रही हैं। वह दिव्यांग छात्रों को रोजगार दिलाने का भी हर संभव प्रयास करती हैं। गीतू अब तक 100 से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई पूरी करने में मदद कर चुकी हैं। गीतू कहती हैं, जब आपके एक प्रयास से किसी छात्र को नौकरी मिलती है, तो बहुत अच्छा लगता है। अशोक शर्मा को मैंने पढ़ाया है। आज वह अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा कर धमतरी में बतौर शिक्षक कार्यरत है। इन छात्रों की शिक्षा में मदद करने के साथ गीतू रक्तदान के लिए भी लोगों को जागरूक करती हैं। वह खुद हर 3 महीने में रक्तदान करतीं हैं और अपने छात्रों को भी रक्तदान के लिए प्रेरित करती हैं।

मुश्किलों भरा रहा सफर, गरीबी के कारण छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई

गीतू का बचपन बेहद अभाव में गुजरा। उन्हें पढ़ाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। उन दिनों को याद करते हुए गीतू आज भी भावुक हो जाती हैं। वह बताती हैं कि परिवार में पिता के ऊपर हम सात बहनों की जिम्मेदारी थी। मेरे पिता एक निजी पोल्ट्री फार्म में काम करते हैं और बहुत मुश्किल से हमारा घर खर्च चलता था। घर में आर्थिक तंगी के कारण गीतू को एक साल के लिए पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी थी। इस बात का उन्हें गहरा धक्का लगा। एक समय तो उन्हें लगने लगा था कि शायद अब कभी आगे पढ़ नहीं सकेंगी, फिर एक दिन पिता ने समझाया कि हालात कैसे भी हों, पढ़ाई रुकनी नहीं चाहिए। पिता की बात ने गीतू के मन पर गहरी छाप छोड़ी और वह फिर से पढ़ाई शुरू करने की तैयारी में लग गईं। कॉलेज की फीस के लिए उन्हें ट्यूशन के साथ अन्य छोटे-मोटे काम भी करने पड़े, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज वह डीसीए, बीएससी, एमएससी, पीजीडीसीए और बीएड की पढ़ाई पूरी कर चुकीं हैं। उन्होंने अपनी दो बहनों को सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया। जिस कारण आज वे भी घर में आर्थिक सहयोग कर रही हैं।

दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई के लिए खुद का वेतन कर रहीं खर्च 

पढ़ाई पूरी होते ही सेवा निकेतन में गीतू को नौकरी मिल गई। यहां दिव्यांग बच्चों से मिलकर उन्हें समझ आया कि इन सभी में बहुत प्रतिभा है, जरूरत है तो इन्हें समय और सही मंच देने की। बहुत सारे बच्चे ऐसे थे जो पढ़ाई तो करते थे, लेकिन उनके पास परीक्षा में फॉर्म भरने के लिए पैसे नहीं होते थे। कुछ के पास पढ़ाई के लगने वाली स्टेशनरी तक के पैसे नहीं होते थे। गीतू ने अपनी पहली सैलरी का 30 फीसदी हिस्सा इन बच्चों के फॉर्म और स्टेशनरी पर खर्च किया। पहले वेतन से शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है।

दिव्यांग सोनू को दिलाई पहचान

गीतू के कारण जिन बच्चों का जीवन संवरा उनमें सोनू सागर भी शामिल है। वह दृष्टिबाधित है। सोनू ने साल 2013 में कक्षा आठवीं की पढ़ाई पूरी की, लेकिन दृष्टिबाधित होने के कारण सामान्य बच्चों के साथ आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। वह गांव में इधर-उधर घूमता रहता था। एक दिन उसकी मुलाकात गीतू से हुई। गीतू ने सोनू को गाते हुए सुना तो फैसला कर लिया कि उसे आगे की शिक्षा दिलाएंगी और बेहतर मंच मुहैया कराने का प्रयास करेंगे। सोनू बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था। इस कारण गीतू ने अपने पैसे पर उसका दाखिला दानी कन्या विद्यालय, रायपुर में कराया और 10वीं की ओपन परीक्षा दिलाई। इसके बाद जुलाई 2019 में भिलाई स्थित नयनदीप विद्यालय में कक्षा 11वीं में नियमित विद्यार्थी के रूप में दाखिला कराया। आज सोनू को नगर निगम व दुर्ग के बहुत से स्थानों से गाने के लिए बुलाया जाता है। आज भी सोनू जब भी कहीं कोई गाना गाने जाता है, तो अपनी परफॉर्मेंस से पहले गीतू को फोन कर आशीर्वाद जरूर लेता है।

दिव्यांग बच्चों को अपना ऊर्जा स्रोत मानती हैं गीतू

बीते कई सालों से गीतू निस्वार्थ भाव से दिव्यांग बच्चों की हर संभव मदद कर रही हैं। इस कारण अलग-अलग मंचों से उनकी काफी सराहना भी हो चुकी है। गीतू इन कार्यों का श्रेय अपने माता-पिता, शिक्षकों और शुभचिंतकों को देती हैं। गीतू कहती हैं कि जब मैं अपनी जिंदगी की उलझनों में फंसने लगती हूं तो अपने विद्यार्थियों को देखती हूं, इनसे मुझे ऊर्जा मिलती हैं। जिसकी मदद से मैं हर कठिनाई का आसानी से सामना कर लेती हूं।