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एक ऐसी सरकारी अधिकारी जो सप्ताह में एक दिन खेत में करती हैं मजदूरी

Published - Sat 10, Oct 2020

तेलंगाना, मुलुगु के जयशंकर भूपलपल्ली जिले की रहने तस्लीमा मोहम्मद सब रजिस्ट्रार हैं, लेकिन वो हफ्ते में एक दिन खेत में मजदूरी करती हैं। इसका उद्देश्य मजदूरी से कमाया गया पैसा जरूरतमंदों के काम आ सके।

नई दिल्ली। सरकारी महकमे की अगर बात की जाए, तो एक छोटा सा चपरासी भी अपने पद पर रहते हुए खुद को मसीहा ही समझता है। उसको लगता है कि वो ऑफिस का सबसे बड़ा अधिकारी है। लेकिन इससे उलट आज भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो उच्च पदों पर पहुंचने के बाद भी जमीन से जुड़े हुए हैं। इसी में से एक नाम है तेलंगाना की सब रजिस्ट्रार तस्लीमा मोहम्मद। ये एक ऐसी अधिकारी हैं, जो इसके बड़े पद पर होने के बाद भी खेतों में मजदूरी करती हैं। जिस दिन उनका अवकाश होता है, उस दिन वो खेतों की ओर निकल जाती हैं और पूरा दिन खेत में मजदूरी करती हैं और उससे जो कमाई होती है, उसे जरूरतमंदों पर खर्च करती हैं। अपने इस काम से वो गरीबों की मसीहा बन चुकी हैं।

तस्लीमा को गरीबों की चिंता है
तेलंगाना के भूपलपल्ली जिले में सब-रजिस्ट्रार के पद पर काम कर रहीं तस्लीमा जिले में संपत्ति का रिकॉर्ड और टैक्स का ख्याल रखती हैं। लेकिन सप्ताह में एक दिन वो खेत में मजदूरी करती दिखाई देती हैं। इस काम से जहां उनको खुशी मिलती हैं, वहीं वो इससे कमाए गए पैसों को जरूरतमंदों पर खर्च करती हैं। वे तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छतीसगढ़, में रहने संसाधन विहीन गुट्टी कोया जनजाति को लेकर चिंतित हैं और उनका उत्थान करना चाहती हैं। इन जिलों में खेती एक महत्वपूर्ण व्यवसाय हैं। जिसमें गुट्टी कोया जनजाति के लोग ज्यादा काम करते हैं। उन लोगों की मदद करना ही तस्लीमा का उद्देश्य है। वह पिछले छह साल से हफ्ते के अवकाश वाले दिन खेतों में जाकर काम कर रही हैं। वह खेतों में काम करने के साथ-साथ किसानों को सरकारी योजनाओं के बारे में जागरुक भी करती हैं और उन्नत तकनीक, खाद, बीज आदि के बार में जानकारी भी      देती हैं।
एक घटना ने बदली जिंदगी
तस्लीमा के पिता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। उस समय उनकी मां ने घर को संभाला और अपनी पांच एकड़ भूमि पर खेती करने लगीं। आर्थिक तंगी के कारण उनकी जमीन बिक गई, लेकिन उन्होंने खेती करना बंद नहीं किया। मां के मजबूत इरादों और संघर्ष के बल पर ही तस्लीमा अफसर बनीं और उन्होंने भी प्रण लिया कि वो खेती करती रहेंगी और गरीबों की मदद करेंगी। तस्लीमा खेती से जुड़ी रहने के कारण बेहद खुश हैं और किसानों, गरीबों की मदद करके उनको बेहद खुशी मिलती हैं। तस्लीमा गमशुदा बच्चों को उनके घर तक पहुंचाने का काम भी करती है। तस्लीमा ने एक 15 साल की बच्ची की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर ली, जिसने दुर्घटना के कारण अपने माता-पिता को खो दिया। वह अब तक 17 बच्चों को नई जिंदगी दे चुकी हैं। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान उन्होंने 300 से अधिक स्टूडेंट्स और युवा पेशेवरों को खेती करने के लिए प्रेरित किया, ताकि वो अपने परिवार की मदद कर सकें। समाज सेवा में तस्लीमा की आधी कमाई खर्च हो जाती है लेकिन इससे उन्हें खुशी मिलती है।