कानुबेन पटेल ने जब पशुपालन करना शुरू किया तो उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। गांव के पुरुषों ने यहां तक कह डाला कि किसी महिला के बस की बात नहीं है पशुपालन। कुछ दिनों में ही यह जुनून खत्म हो जाएगा। लेकिन कानुबेन ने इस मिथक को तोड़ते हुए यह साबित कर दिया कि चाह हो तो राह बन ही जाती है।
गांधीनगर (गुजरात)। पास में न कोई बड़ी डिग्री और न ही किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम, किसी बड़े परिवार से तल्लुक भी नहीं रखतीं, इसके बावजूद गांधीनगर में रहने वालीं कानुबेन पटेल हर साल 72 लाख रुपये कमाती हैं। अपनी मेहनत आैर लगन के बल पर आज वह न केवल अपने गांव, बल्कि पूरे गुजरात के लिए मिसाल बन गईं हैं। कानुबेन ने इसके लिए किसी नए आइडिया पर भी काम नहीं किया। उन्होंने पारंपरिक पशुपालन को ही अपनी आय का साधन बनाया और देखते ही देखते सफलता की इबारत गढ़ डाली।
कानुबेन पटेल ने जब पशुपालन करना शुरू किया तो उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। गांव के पुरुषों ने यहां तक कह डाला कि किसी महिला के बस की बात नहीं है पशुपालन। कुछ दिनों में ही यह जुनून खत्म हो जाएगा। लेकिन कानुबेन ने इस मिथक को तोड़ते हुए यह साबित कर दिया कि चाह हो तो राह बन ही जाती है। आज जब लोगों को यह पता चलता है कि गांव में रहने वाली एक महिला हर महीने करीब 6 लाख रुपये की कमाई करती है तो वे हैरान रह जाते हैं। कानुबेन का पूरा नाम कानुबेन रावतभाई चौधरी है।
मुख्यमंत्री कर चुके हैं सम्मानित
अशिक्षित कानुबेन का कामकाज आज लाखों पढ़े-लिखे लोगों के लिए प्रेरणा बन रहा है। वह गुजरात में बनासकांठा जिले के धानेरा स्थित चारडा गांव में रहती हैं। वह गांव में ही अपना कारोबार करती हैं। यह गांव राजस्थान पास स्थित है। कानुबेन को उनके कार्य के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। पालनपुर में 69वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने भी कानुबेन को सम्मानित किया था।
8 मवेशियों से शुरू किया काम आज हैं 120 से ज्यादा
कानुबेन पशुपालन आैर दुग्ध उत्पादन का काम करती हैं। उनके पास कई गाय और भैंस हैं। कुछ साल पहले जब उन्होंने दुग्ध उत्पादन का कारोबार शुरू किया तो उनके पास महज 8 गायें थीं, लेकिन अब उनके पास 80 से अधिक शंकर गाय और 40 भैंस हैं। इनके माध्यम से वह दूध उत्पादन का कारोबार कर रही हैं। वह प्रतिदिन 800 से 1000 लीटर तक दूध का उत्पादन करती हैं। यह दूध बनास डेयरी को भेजा जाता है। इससे उनको हर महीने करीब 6 लाख रुपये मिलते हैं।
मवेशियों का रखती हैं खास ख्याल
कानुबेन के यहां पले मवेशियों को रोजाना सुबह फव्वारे से नहलाया जाता है। पशुओं के लिए साफ पानी और अच्छा चारा उपलब्ध कराया जाता है। मवेिशयों के लिए 5 एकड़ में हरी घास लगाई जाती है। इतनी बड़ी संख्या में मवेशियों का प्रबंधन करने के लिए आनंद डेयरी और बनास डेयरी से उन्होंने जानकारी हासिल की है। कानुबेन की डेयरी में मवेशियों से दूध स्वचालित मशीनों से निकाला जाता है। गर्मी में मवेशियों को ठंडक देने के लिए कूलर की भी व्यवस्था है।
कानुबेन को ये सम्मान भी मिले
- वर्ष 2016 में बान्ड डेयरी पालनपुर की आेर से बानस लक्ष्मी अवार्ड
- वर्ष 2017 में एनडीडीबी आनंद की ओर से उत्कृष्ट महिला दुग्ध उत्पादक पुरस्कार
- बानस डेयरी की आेर से बानस लक्ष्मी अवार्ड
- पशुपालन विभाग की ओर से बेस्ट एनिमल वेटरन सर्टिफिकेट
- आर्बुदा युवा फाउंडेशन धनेरा की ओर से सर्वश्रेष्ठ पशु चिकित्सा प्रमाणपत्र
- महिंद्रा समृद्धि, अहमदाबाद की ओर से कृषि प्रेरणा सम्मान
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.