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बेटियों की प्रेरणा बनने के लिए शुरू किया अपना व्यवसाय

Published - Sat 11, Jan 2020

मुझे पहला काम 40 पेपर आर्ट वर्क बनाने का मिला। पर चुनौती यह थी कि मुझे सिर्फ 20 दिनों में यह करना था।

Gunavathy Chandrasekaran

गुणावती चंद्रशेखरन

उस समय मैं डेढ़ साल की थी, जब पोलियो की चपेट में आई। यों तो मेरे पिता स्वयं एक डॉक्टर थे, और दूसरे बच्चों को पोलियों की दवाई उपलब्ध करवाते थे, लेकिन मेरी बीमारी को वह तब समझे, जब मैं पूरी तरह इसकी जकड़ में आ गई। पोलियो ने भले ही मुझे शारीरिक रूप से प्रभावित किया, लेकिन कुछ करने व आगे बढ़ने का जज्बा मेरे भीतर मौजूद था, उसी ने जिंदगी की नई राह दिखाई। मैं तमिलनाडु में डिंडीगुल जिले के चिनालापत्ती गांव की रहने वाली हूं। पोलियो से ग्रसित होने के बाद मेरे पैर काम करना बंद कर चुके थे, जिस वजह से मैं 20 फीट से ज्यादा बिना किसी की मदद के चल नहीं सकती। मेरा परिवार पढ़ा-लिखा था, लेकिन मेरे लिए एक अच्छा जीवनसाथी तलाशना मेरे पिता की प्राथमिकता था, इसलिए दसवीं पास करने के बाद जैसे ही चंद्रशेखरन का रिश्ता मेरे घर आया, तो पापा ने तुरंत हां कर दी। शादी के बाद हमारी दो बेटियों का जन्म हुआ। इस दौरान हर कदम पर मेरे पति ने मेरा साथ दिया। लेकिन धीरे-धीरे जब मेरी बेटियां बड़ी होने लगीं, तो मुझे महसूस हुआ कि वे परिवार की दूसरी महिलाओं से, जो कि नौकरी करती हैं, काफी प्रेरित हैं। इसमें कोई बुराई नहीं थी, पर मुझे इस बात का बुरा लगा कि मैं अपनी बेटियों की प्रेरणा नहीं बन पाई। उस वक्त मुझे लगा कि मैंने अपनी जिंदगी को बोझ समझ लिया है। मेरा मन व्यथित हो उठा, मुझमें कुछ करने की इच्छा प्रबल हो उठी। मैं तनाव में रहने लगी। मेरे पति ने मुझे धीरज से काम लेने की सलाह दी। और अपने प्रिंटिंग और बाइंडिंग के व्यवसाय में मदद करने के लिए कहा। वहां ग्राफिक मशीन के इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का काम भी होता था, जिसे मैं संभालने लगी। स्कूल के दिनों से ही मेरा कला के प्रति प्रेम था। मैंने अपने स्वयं के प्रयास और उत्साह के साथ पेपर क्विलिंग की कला सीखी और अपनी कल्पनाशक्ति से वॉल आर्ट, ग्रीटिंग कार्ड, वेडिंग कार्ड, लघु चित्र, कंपनी के लोगो जैसे बहुत सारे पेपर क्विलिंग उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। लेकिन मंदी और नई तकनीक के आने के बाद काम में कमी आई, तो एक बार फिर मुझे घर बैठना पड़ा। उसी दौरान मैं एक परिचित के घर गई, तो वहां मैंने पेपर ज्वेलरी देखी। चूंकि इसमें मेरी दिलचस्पी थी, तो मैंने पेपर आर्ट के बारे में जानकारी जुटाई। घर आकर मैंने पहला पेपर आर्ट वर्क कर एक तितली की आकृति बनाई, जिसे मेरे पति ने सोशल मीडिया के कुछ ग्रुप्स में साझा किया। बहुत सारे लोगों ने मेरे काम की तारीफ की। मेरे भाई ने कहा कि उन्हें कुछ लोगों को उपहार देने हैं, अगर मैं उनके लिए इस तरह के कुछ आर्ट वर्क बनाकर दूं, तो काफी अच्छा रहेगा। इस तरह से मुझे पहला 40 पेपर आर्ट वर्क बनाने का काम मिला। पर चुनौती यह थी कि मुझे सिर्फ 20 दिनों में यह करना था।
मैंने अपने पति की फर्म में काम करने वाले एक-दो लोगों को अपने इस काम से जोड़ा। उन्हें पेपर आर्ट बनाना सिखाया और फिर काम दिया। इसी के बाद गुणा क्विलिंग की शुरुआत हुई। इसके माध्यम से मैं पूरे देश में आयोजित प्रदर्शनियों में अपने उत्पादों को ले जाती हूं। लोग इसे काफी पसंद भी करते हैं। मैं क्विलिंग गिल्ड, ब्रिटेन की सदस्य भी हूं, साथ ही ब्रिटिश काउंसिल में अपने इस बिजनेस आईडिया पर मैंने लेक्चर भी दिया है। इसके साथ ही मैं तमिलनाडु के स्कूलों और कॉलेजों का दौरा करती हूं, और छात्रों को मोटिवेशनल लेक्चर देने के साथ इस बात के लिए प्रेरित करती हूं कि वे किसी चीज को लेकर जुनूनी हैं, तो वह उसे जरूर करें।  
-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।