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किसानों को उनके दरवाजे तक रोजगार पहुंचाने का काम करता है रीमा का ‘हैप्पी रूट्स’

Published - Sun 04, Oct 2020

पुणे की रीमा साठे ने केवल किसान परिवारों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी रोजगार दिला रही हैं और पंद्रह हजार किसानों को हैप्पी रूट्स के साथ जोड़कर उनकी फसल का उचित दाम भी दिलवा रही हैं।

मुंबई। देश में किसानों की हालात बेहद दयनीय है। सरकार के लिए किसान मात्र एक चुनावी मुद्दा हैं, जिन्हें वो सालों से भुनाते आए हैं। किसानों के नाम पर योजनाएं तो खूब आती हैं, लेकिन उनका लाभ किसानों को कितना मिलता है, ये किसी से छिपा नहीं है। किसानों की दुर्दशा को देखकर पुणे की रीमा साठे ने बीड़ा उठाया और आज वो क्षेत्र के पंद्रह हजार किसानों को हैप्पी रूट्स से जोड़कर खेती के साथ रोजगार भी उपलब्ध करा रही हैं। उनका हैप्पी रूट्स किसानों की आमदनी का एक बड़ा जरिया बन चुका है।

किसानों के लिए काम करने वाली रीमा खुद इंजीनियर हैं
महाराष्ट्र के पुण की रहने वाली रीमा केमिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने आठ साल तक कॉरपोरेट में मैन्युफैक्चरिंग और फूड सर्विस जैसे सेक्टर में काम किया। 2014 में जब वो एक यूएस फर्म के लिए मार्केटिंग का काम कर रहीं थीं तो उनको ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ने का मौका मिला। यही वो घटना थी, जब उनके दिमाग में आइडिया आया कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए कुछ करना है। इसको लेकर उन्होंने रिसर्च की और पता चला कि मुंबई की संस्था ‘कृषि स्टार’ गुजरात के आदिवासियों के लिए काम करती थीं। इसके बाद रीमा इस संस्था के साथ वालंटियर के तौर पर जुड़ और कुछ वक्त बाद उन्होने तय किया कि वो खुद अपना सोशल स्टार्टअप शुरू करेंगी।  

सूखाग्रस्त विदर्भ में गईं और शुरू किया काम
अप्रैल 2015 में उन्होने महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त विदर्भ इलाके में गई। इस दौरान उन्होने वहां पर काम करने वाली संस्था ‘चेतना फाउंडेशन’के साथ काम किया। उन्होने यहां के 400 किसान परिवारों को मुफ्त में मुर्गियां बांटी और उनके साथ सामूहिक रूप से 2 पोल्ट्री फार्म शुरू किए। इस काम के लिये सारे संसाधन किसान ही जुटाते थे, लेकिन मुर्गियों के अंडों को बाजार में बेच कर जो भी पैसा मिलता था वो सीधे किसानों के पास जाता था। इस पोल्ट्री फार्म को शुरू करने का उद्देश्य किसानों को खुद का रोजगार से जोड़ना था। इस तरह जब किसान इस काम को ठीक से सीख गए तो रीमा और ‘चेतना फाउंडेशन’ने इन दोनों पोल्ट्री फार्म को किसानों के हवाले कर दिया। रीमा यहीं ही नहीं रूकी। उन्होंने आगे की योजना के तहत मुंबई और पुणे  के बाजारों की खाक छानी। उनका मकसद सिर्फ इतना था कि कि वो ये जान सकें कि वहां पर किस तरह कारोबार को चलाया जा सकता है। इस दौरान उन्होने वहां मौजूद ग्राहकों से उनके फीडबैक लिए।। जिसके बाद उनको महसूस हुआ कि फूड प्रोसेसिंग के कारोबार करने के दौरान कैसे किसानों की काफी सारी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। तो दूसरी ओर रीमा के साथ उस वक्त तक करीब 7 हजार किसान जुड़ चुके थे। जो उनके अलग-अलग प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। ये किसान कई किस्म के अनाज की पैदावार करते थे। जैसे चावल, गेहूं, बाजरा, जौ, रागी, बाटु आदि।  इसके बाद रीमा ने सोचा कि इस अनाज से क्यों न कुछ ऐसे प्रोडक्टस बनाए जाएं जिसे आसानी से बाजार में बेचा जा सके और रीमा ने इस ओर भी काम करना शुरू किया।

और शुरू हो गया हैप्पी रूट्स
सभी चीजों का अध्ययन करने के बाद रीमा ने फूड टेक्नोलॉजिस्ट से बात की और 2019 में हैप्पी रूट्स नाम से एक कंपनी शुरू की। इस कंपनी का काम कई तरह के स्नेक्स, कुकीज, क्रैकर तैयार करना था, जिन्हें स्थानीय अनाज से बनाया जाता और हाथ से तैयार किया जाता था। इनका स्वाद भी बेहद लाजवाब है। शुरूआत में वो केवल क्रेकर और रोल्ड ओट्स कुकीज ही तैयार करती थी लेकिन आज उनकी कंपनी अलग-अलग तरीके के 4 कुकीज तैयार कर रही है। खास बता ये है कि इन कुकीज की सुपर मार्केट में काफी डिमांड है। जबकि तीन और कुकीज और क्रेकर वो अगले तीन महीनों में बाजार में उतारने की कोशिश में हैं।

रीमा से जुड़े पंद्रह हजार किसान
रीमा के हैप्पी रूट्स से महाराष्ट्र क्षेत्र के करीब पंद्रह हजार किसान जुड चुके हैं। जिसमें अहमदनगर, कोल्हापुर, विदर्भ, अमरावती, यवतमल आदि जिलों के किसान शामिल हैं।  इसके अलावा रीमा अहमदनगर में 2 हजार महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप के साथ भी काम कर रही है। ये महिलाएं कुकीज और क्रेकर बनाने का काम करती हैं लेकिन काम शुरू करने से पहले किसी भी नई महिला को फूड सेफ्टी और क्वालिटी मैंनेजमेंट की एक महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। हाल ही में इन्होने इन महिलाओं के लिए कुकीज का एक नया कोर्स डिजाइन किया है। जिसमें ये ‘हैप्पी रूट्स’ के साथ साथ अपने लिए भी कुकीज बनाती हैं जिन्हें ये गांव के बाजारों में और अपने आसपास खुद बेचती हैं। ताकि आगे चलकर ये खुद इस काम में आत्मनिर्भर बन सकें। वहीं रीमा को भी गांव की मार्केट और उसकी डिमांड के बारे में भी पता चल जाता है। जिसके की वो वहां के हिसाब से अपने उत्पाद और ट्रेनिंग डिजाइन कर सके।

रीमा का मकसद गांव में रोजगार पैदा करना
इस प्रयास को शुरू करने के पीछे रीमा का मकसद सिर्फ इतना है कि किसानों को खेती के साथ-साथ रोजगार के नये अवसर भी मिलें और गांव में रोजगार पैदा हो सके। रीमा की टीम में इस समय 5 सदस्य हैं जिसमें शैफ, फूड टेक्नोलॉजिस्ट भी शामिल है। जो प्रोडक्ट को डिजाइन करने का काम करते हैं। वहीं रीमा इन उत्पादों की मार्केटिंग कर उन्हें पुणे  और मुंबई  के स्टोरों में बेचने की जिम्मेदारी उठाती हैं। इस समय उनके पास करीब 20 बड़े ग्राहक हैं। इनमें बड़े कॉरपोरेट ऑफिस, सुपर मार्केट और कॉफी चैन और रेस्तरां शामिल हैं। साथ ही वो अपनी वेबसाइट के जरिये भी अपने उत्पादों को बेचती हैं। इसके अलावा वो बटु, जौ जैसे दूसरे मोटे अनाजों के किसानों से खरीद कर उसे बड़ी फूड वेबरेज कंपनियों को बेचती हैं। ‘हैप्पी रूट्स’ के उत्पादों को बेचने से जो भी आमदनी होती है उसका एक हिस्सा सीधे इन किसानों तक पहुंचता है। इसलिए उनके उत्पादों के हर पैकेट के पीछे किसानों की स्थिति और किन किसानों से कच्चा माल लेकर इन उत्पादों को बनाया गया है इसकी जानकारी दी जाती हैं।