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जब डॉ. रेखा कृष्णा ने मुस्लिम मरीज के लिए पढ़ा कलमा

Published - Sun 23, May 2021

केरल के पल्लकड़ जिले में कोविड अस्पताल में ड्यूटी करते वक्त एक मुस्लिम मरीज के अंतिम समय आने पर मरीज के कहने पर डॉ. रेखा कृष्णा ने एक डॉक्टर होने के साथ-साथ अपनी इंसानियत का भी फर्ज अदा किया।

dr krishna

नई दिल्ली। कोरोना के इस समय में लोग धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग से ऊपर उठकर मानव सेवा कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला केरल के पल्लकड़ जिले में देखने को मिला, जहां एक महिला डॉक्टर रेखा कृष्णा ने अपने फर्ज से ऊपर उठकर इंसानियत की मिसाल पेश की। कोरोना के इस दौर में मरीजों की सांसों पर आफत टूट पड़ी है। डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी मरीजों को बचाया नहीं जा रहा। चिकित्सक अपनी आंखों के सामने मरीजों को इस दुनिया से जाते देख टूट रहे हैं, लेकिन हौसला नहीं खो रहे। इस कोविड काल ने चिकित्सकों को और मजबूत व जिम्मेदार बना दिया है। केरल के पट्टांबी इलाके में एक अस्पताल है सेवाना हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर। यहां कोविड मरीजों का इलाज किया जा रहा है। यहां कार्यरत्त डॉ.रेखा कृष्णा पूरी जिम्मेदारी और साहस से मरीजों की सेवा में लगी हैं। यहां की इमरजेंसी सेवा में ड्यूटी निभा रही डॉ. कृष्णा की कोशिश है कि हर मरीज की जान बचा ली जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं है। ऐसा ही एक वाकया उनके साथ घटा। एक मुस्लिम महिला दो हफ्ते से एसएचआरसी में वेंटिलेटर पर थी और उसके रिश्तेदारों को आईसीयू में जाने की अनुमति नहीं थी। महिला के बचने की उम्मीद न के बराबर थी, इसलिए उनको वेंटिलेंटर से सिर्फ इसलिए बाहर निकाल लिया गया कि किसी और को वेटिंलेटर पर रखकर उसकी जान बचाई जा सके। महिला मरीज अंतिम सांस गिन रही थी। इसी बीच डॉ. रेखा कृष्णा उनके पास पहुंची, तो उस मरीज ने डॉ. से कहा कि वो इस दुनिया से अलविदा होने वाली हैं, लेकिन उन्हें मुश्किल हो रही है, क्या वो उनके कानों में धीरे-धीरे कलमा पढ़ देंगी। ये वो समय था, जब डॉ. रेखा कृष्णा पूरी जोर से रोना चाहती थीं, लेकिन खुद को संभालकर उन्होंने उस मरीज के कानों में धीरे-धीरे कलमा पढ़ा। कलमा सुनने के बाद मरीज ने गहरी सांस ली और हमेशा के लिए आंखे बंद कर लीं। ये सब इतना अचानक हुआ कि उन्हें कुछ सोचने का मौका नहीं मिला। वो परेशान थीं कि वो उन्हें नहीं बचा पाईं।
मुस्लिम रीति-रिवाजों से वाकिफ हैं कृष्णा
दुबई में पैदा हुई डॉ. कृष्णा ने बचपन से ही मुस्लिम रीति-रिवाजों को करीब से देखा, उन्हें जाना-समझा इसलिए ही वो उस मुस्लिम मरीज के लिए ऐसा कर पाईं। रेखा कृष्णा का कहना है कि एक हिंदू होने के कारण उनके साथ कभी दुबई में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया। वहां उन्हें पूरा सम्मान मिला। जब उन्होंने मुस्लिम मरीज की अंतिम इच्छा को पूरा किया, तो लगा कि गल्फ से मिले सम्मान को उन्होंने लौटा दिया है। उनके लिए ये कोई धार्मिक कार्य नहीं, मानवीय कार्य था। कोविड से लड़ते हुए खुद को अकेला और असहाय महसूस कर रहे कोविड मरीजों के दर्द में साथी बनकर कृष्णा ने वो किया, जिसकी कोई कीमत नहीं है।