आज हमारे देश की बेटियां भले ही हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हों, लेकिन फिर भी उन्हें वह मुकाम नहीं मिल सका है, जिसकी वे हकदार हैं। आज भी बेटियों के बड़े होते ही उन पर शादी-ब्याह का दबाव डाला जाता है। एक-दो बार असफलता मिलने पर पढ़ाई छोड़कर चूल्हा-चौका संभालने की नसीहत दी जाती है। ऐसे ही ताने और नसीहतें हैदराबाद की जमील फातिमा जेबा को भी मिलीं, लेकिन न तो उनके इरादे बदले और न ही उनका हौसला डिगा। इसी का नतीजा था कि 2018 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में टॉप कर सभी का मुंह बंद कर दिया। आइये जानते हैं इस अफसर बेटी के संघर्ष की कहानी.....
नई दिल्ली। हैदराबाद के मणिकोण्डा की रहने वालीं जमील फातिमा जेबा एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती हैं। जेबा ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने बाद ही जॉब करने का मन बना लिया था। लेकिन जिस तरह की जॉब वे चाहती थीं वह केवल सिविल सर्विसेस से ही संभव थी। उन्होंने इसकी तैयारी का फैसला किया और अपने माता-पिता को बताया तो वह उनके साथ खड़े हो गए, लेकिन जब रिश्तेदारों को इसकी जानकारी हुई तो वे उनके परिजन पर जेबा की शादी का दबाव डालने लगे। तमाम तरह के ताने और नसीहतें भी जेबा और उनके परिजन को दी गई, लेकिन जेबा अपने फैसले पर अड़ी रहीं। इस बीच उन्होंने सेंट फ्रांसिस कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। फिर वह यूपीएससी की तैयारी करने में जुट गईं। उन्होंने इसके लिए बकायदा कोचिंग ज्वॉइन की और तैयारियों में लग गईं।
आसान नहीं था सफर
जेबा ने यूपीएससी की तैयारी का फैसला तो कर लिया था, लेकिन उनको यह बात अच्छे से मालूम थी कि यह सब इतना आसान नहीं होगा। रिश्तेदारों की ओर से आने वाले दबाव से भी वह अच्छे वाकिफ थीं। उन्होंने इसके लिए खुद को तैयार किया। लेकिन लगातार दो साल तक तैयारी करने के बाद भी सफलता हाथ नहीं लगी तो वह हताश होने लगीं। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी चयन न होने से एक समय वह लगभग डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं। इस बीच आसपास वालों और परिवार के बाकी लोगों के तानें भी बढ़ने लगे। रिश्तेदार जेबा के परिजन से कहते, एक 25 साल की अविवाहित लड़की घर में बैठाकर रखा है। कुछ दिन और शादी नहीं की तो कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा। दरअसल, हैदराबाद की जेबा जिस माहौल से आती हैं, वहां लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने-लिखाने का चलन नहीं है। उनके यहां कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है और करियर नाम का कोई शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं होता।
एक लाइन ने दी नई ऊर्जा
जमील फातिमा जेबा के मुताबिक दो बार असफलता हाथ आने के बाद मैं काफी निराश हो गई थी। इसी दौरान मैंने कहीं पर ये लाइनें पढ़ीं (मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है।) तो नई ऊर्जा आ गई। जब भी मैं हताश होने लगती इन्हीं को याद कर लेती। ये लाइनें हिम्मत बढ़ाती थीं। इसके बाद नई उमंग के साथ बिना दुनिया की परवाह किए जी-जान से तैयारी में जुट जाती थी। जेबा ने बताया कि संघर्ष के दिनों में मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा सहारा दिया और मेरा मनोबल बढ़ाया। वह अपनी सफलता का श्रेय अपनी परिजन को ही देती हैं। साल 2018 में आखिरकार जेबा की मेहनत रंग लाई और वह यूपीएसई की परीक्षा में 62वीं रैंक हासिल की आईएएस अफसर बन गईं। अफसर बिटिया के मुताबिक जब दूसरे लगातार यह कह रहे हों कि तुमसे नहीं होगा, तो अपना जुनून जिद में बदल जाता है।
इन सवालों ने मुझे भी किया परेशान
अपने संघर्ष को याद करते हुए जेबा कहती हैं, बहुत से ऐसे पल आते हैं जब अभ्यर्थी को यह लगने लगता है कि यूपीएससी की तैयारी का फैसला कर उसने कुछ गलत फैसला तो नहीं कर लिया, मैं सही तो कर रहा हूं न? मेरे दिमाग में भी कई बार यह सवाल आए, यह स्वाभाविक भी था। वह यूपीएससी की तैयारी कर रहे लोगों को सलाह देती हैं कि ऐसे ख्यालों से परेशान न हों, इनसे बाहर निकलने की कोशिश करें। दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जो मेहनत और लगन से पाया न जा सके। वे कहती हैं मेरे इस सफर ने मुझे निखारा है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.