खाकी वर्दी की आड़ में छिपकर अपराधियों की मदद करने वालों की धड़कनें तब बढ़ जाती हैं जब उन्हें पता चलता है कि उनका वास्ता अब आईजी लक्ष्मी सिंह से पड़ने वाला है। वो जहां भी जाती हैं, सुर्खियां उनके साथ-साथ चलती हैं। मौजूदा समय में वह लखनऊ की आईजी हैं। उन्हें ईमानदार और तेजतर्रार अधिकारी माना जाता है। उनके इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी उन पर खूब भरोसा करते हैं और उन्हें बेहद चुनौतीपूर्ण काम देते हैं।
लखनऊ। 2000 बैच की आईपीएस लक्ष्मी सिंह को मुख्यमंत्री योगी ने कानपुर के दहशतगर्द विकास दुबे कांड की जांच सौंपी, ताकि वह इस मामले की तरत दर परत खोलें और खाकी वर्दी में छिपे अपराधियों के मददगारों को बेनकाब करें। हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और उसके गैंग के कुछ लोगे भले ही मारे जा चुके हैं, लेकिन विकास के काले कारनामों में उसको मदद करने में कई पुलिसकर्मियों की भूमिका रही है। अब ये बात जगजाहिर है। विकास दुबे ने आठ पुलिसकर्मियों को घात लगाकर मारा था, विकास को कैसे पता चला कि पुलिस वाले उस पर हमला करने आ रहे हैं?, इसकी जानकारी दुबे को कुछ पुलिसवालों ने ही दी थी। यही नहीं, शहीद सीओ ने इन पुलिसकर्मियों की विकास दुबे से सांठगांठ की शिकायत ऊपर के महकमे में की थी, लेकिन उनके उस शिकायती पत्र पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। दहशतगर्द विकास दुबे का खादी और खाकी के किन-किन लोगों से वास्ता था....ऐसे सभी प्रश्नों का जवाब ढूंढने का जिम्मा सीएम योगी ने आईजी लक्ष्मी को सौंपा था।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की
लखनऊ में जन्मीं लक्ष्मी सिंह ने बीटेक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) किया और फिर समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन यानी एमए किया।
पुलिसिंग को सुधारना प्रमुख लक्ष्य
16 अगस्त 2014 में उनकी तैनाती बतौर डीआईजी आगरा में हुई थी। तेज तर्रार तरीकों वाली महिला अफसर के तौर पर पहचानी जाने वालीं आईजी लक्ष्मी सिंह फर्रुखाबाद, बुलंदशहर सहित कई जनपदों की पुलिस कप्तान रह चुकी हैं। आगरा में रहते हुए अंबेडकर यूनीवर्सिटी के बड़े फर्जीवाड़े को खोलने के अलावा शमशाबाद बवाल में लॉ एंड ऑर्डर बहाल करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लक्ष्मी सिंह के आश्वासन के बाद कई बार लोगों ने पुलिस के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को भी खत्म किया। आगरा में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद लक्ष्मी सिंह को मेरठ भेजा गया। उनकी ईमानदार और तेजतर्रारी से प्रभावित होकर योगी आदित्यनाथ ने उनको 2019 में नए साल पर आईजी पद पर प्रोन्नत करने का तोहफा दिया और उनकी तैनाती राजधानी लखनऊ में कर दी।
गरीब जनता से जुड़ाव
आईजी लक्ष्मी सिंह जमीनी हकीकत पर विश्वास करती हैं, तभी तो वे जहां पर भी तैनात होती हैं, वहां की गलियों, बाजारों में घूम-घूमकर हालात का जायजा लेती हैं और खासकर गरीब जनता से जुड़ती हैं। इस संदर्भ में वैसे तो उनके बहुत से किस्से हैं, लेकिन आगरा का किस्से काफी वायरल हुए थे। दरअसल एक दिन कैराना कस्बे में पहुंचीं लक्ष्मी सिंह ने मैन चौक बाजार में कार रुकवा दी और पैदल ही बाजार में घूमीं। कई दुकानों पर जाकर व्यापारियों से बात की और साथ ही हलवाई, कपड़ा व्यापारी, परचून व्यापारी, व्यापार मंडल के कोषाध्यक्ष, घड़ी विक्रेता, सब्जी विक्रेता, सराफा व्यापारी, इलेक्ट्रॉनिक व्यापारी आदि से कस्बे के माहौल एवं रात में पुलिस गश्त आदि की जानकारी ली। पूछा कि अब कोई गुंडा उन्हें परेशान तो नहीं करता है। पुलिसवाले उनकी बात सुनते हैं या नहीं, 100 नंबर की गाड़ी रात में गश्त करती है या नहीं।
बोलीं आईजी, बेटी को जरूर पढ़ाओ
आगरा के बेगमपुरा बाजार, जोडिया कुआं, सराफा बाजार आदि का पैदल भ्रमण करने के दौरान अपनी मां के साथ जा रही एक मुस्लिम बच्ची को रोक कर आईजी लक्ष्मी सिंह ने पूछा कि क्या तुम पढ़ने जाती हो, बच्ची की मां ने कहा, जी नहीं, तो आईजी ने कहा बेटी को जरूर पढ़ाएं। आज बेटी किसी मायने में बेटों से कम नहीं है। बाजार में मिली कईं और महिलाओं से उन्होंने बात की। पूछा कि बाजार में अब कोई परेशान तो नहीं करता। छेड़खानी तो नहीं होती। बेगमपुरा बाजार में वृद्धा रणवती की दुकान पर बैठकर चाय पी और बातचीत की। उनके परिवार का हाल जाना। आईजी ने वृद्धा से कहा कि ऐसी चाय तो थाने में भी नहीं बनती। इसके बाद आईजी ने दुकान पर बैठी वृद्धा की पोती को दुलारते हुए प्यार से 500 रुपये दिए और बच्ची की दादी से कहा, अपनी बेटी को जरूर पढ़ाओ।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.