केरल की के.सी रेखा भारत की पहली फिशर वुमेन हैं। परिवार पालने के लिए रेखा ने समुद्र में कदम रखा और आज उनकी पहचान देशभर में है।
नई दिल्ली। महिला एक ऐसी शक्ति है, जो परिवार को बड़ी से बड़ी मुसीबतों से निकालकर ले जाती है। ऐसी ही एक महिला हैं केरल की के.सी रेखा।अब आप सोचेंगे कि मुसीबत के समय तो हर महिला परिवार की मदद के लिए खड़ी हो जाती है, तो रेखा ने क्या खास किया है। उन्होंने परिवार पालने के लिए फिशर वुमेन बनना तय किया और वो देश की पहली इकलौती फिशर वुमेन हैं।
इंटरनेशल लाइसेंस है रेखा के पास
केरल के थ्रिशूर जिले चवक्कड़ गांव की रहने वाली के.सी रेखा अन्य मछुआरनों से अलग हैं। वो समुद्र की गहराईयों के बीच इंटरनेशल बॉर्डर तक से मछली पकड़ती हैं। इसके लिए उनको भारत सरकार की ओर से लाइसेंस प्राप्त है।
मजबूरी में शुरू किया ये काम
समुद्र में जीतोड़ मेहनत कर मछली पकड़ने का रेखा को कोई शौक नहीं है, बल्कि मजबूरी में उन्हें ये पेशा चुनना पड़ा। 2004 में जब सुनामी आई तो रेखा के परिवार को भी इससे भारी नुकसान पहुंचा। सुनामी के कारण सबकुछ बर्बाद हो गया तो रेखा ने पति के साथ इस काम को करने की ठानी। सुनामी के कारण लोग पलायन कर चुके थे और उनके पति को मजदूर नहीं मिल रहे थे, रेखा पति के साथ खड़ी हुईं और उनको हिम्मत बंधाई।
समुद्र को बनाया दूसरा घर
घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ-साथ रेखा ने समुद्र को अपना दूसरा घर बना लिया। समुद्र की ऊंची उठती लहरों और गहराई से डरने केबजाय उनसे दोस्ती की। कड़ी मेहनत का ही फल था कि सरकार से उन्हें मछली पकड़ने का लाइसेंस मिल गया। ये लाइसेंस मुश्किल से मिलता हैक्योंकि इसके लिए मछुआरे को समुद्री रास्ता, मौसम का मिजाज आदि की जानकारी होना जरूरी है। इस काम को करने से पहले ‘कदल्लमा’ नदी की देवी की पूजा करके ही समुद्र में नांव को उतारती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.