देश में बहादुर महिला आईपीएस अफसरों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इनमें से हर किसी ने समय आने पर अपनी प्रतिभा और कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। ऐसी ही एक महिला आईपीएस हैं आर श्रीलेखा। वह बहादुर, निडर और निष्पक्ष तो हैं, हत्या की गुत्थियां सुलझाने में भी माहिर हैं। अपने कॅरियर के दौरान उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी अपनी ड्यूटी और ईमानदारी से समझौता नहीं किया। आइए जानते हैं इस निर्भीक अफसर के बारे में जिसे केरल की पहली महिला आईपीएस बनने के साथ ही केरल की पहली महिला डीजीपी बनने का भी गौरव हासिल है।
नई दिल्ली। निडर महिला आईपीएस आर श्रीलेखा का जन्म 25 दिसंबर 1960 को प्रोफेसर एन. वेलायुधन और बी. राधाम्मा के घर में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा कॉटन हिल गर्ल्स स्कूल, तिरुवनंतपुरम से पूरी की। यहां उन्होंने पढ़ाई के साथ संगीत, एनसीसी, एनएसएस जैसी गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने महिला कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की। श्रीलेखा को शुरू से ही पुलिस की नौकरी काफी आकर्षित करती थी। वह हमेशा वर्दी पहनना चाहती थीं। वह अपनी पढ़ाई पूरी कर पातीं इससे पहले ही उनकी जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ, जिससे काफी कुछ बदल गया। वह 17 साल की थीं कि तभी अचानक एक दिन उनके पिता की तबीयत खराब हुई फिर उनकी मौत हो गई। इस घटना से पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पिता की मौत के बाद मां, दो बहनें और एक भाई की जिम्मेदारी श्रीलेखा के सिर पर आ गई। हालांकि उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी। स्नातक की डिग्री लेने के बाद श्रीलेखा ने केरल के विश्वविद्यालय कैंपस से यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश से मास्टर डिग्री हासिल की। इस बीच परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होती देख उन्होंने नौकरी करने का मन बना लिया और कॉलेज में पढ़ाने लगीं। वे करुन्गपल्ली के विद्याधिराजा कॉलेज में लेक्चरर हो गईं। इसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में ग्रेड बी ऑफिसर और फिर स्टेटिस्टिकल ऑफिसर बनाकर मुंबई भेजी गईं। लेकिन मन मुताबिक कुछ नहीं था। लिहाजा उन्होंने यूपीएससी की तैयारी नहीं छोड़ी। जब वह 26 साल की थीं तक उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा दी और जनवरी 1987 को आईपीएस बन गईं। वह केरल की पहली महिला आईपीएस अधिकारी हैं।
रिश्वत की पेशकश, धमकी के बावजूद नहीं रोकी कार्रवाई
श्रीलेखा ने कोट्टायम जिले में असिस्टेंड सुपरिटेंडेंट के पद से अपने प्रशासनिक कॅरियर की शुरुआत की। साल 1991 में त्रिशूर में जिला अधीक्षक (एसपी) के पद पर तैनात हुईं। इसके बाद वो वायनाड समेत कई जिलों में तैनात रहीं। श्रीलेखा ने सीबीआई में भी अपनी सेवाएं दी हैं। यहां उन्होंने कई बड़े खुलासे किए हैं। साल 2000 में श्रीलेखा को भनक लगी कि आबकारी अधिकारियों की शराब माफिया से सांठगांठ है। कलेक्टर के साथ श्रीलेखा वहां छापा मारने पहुंचीं। शराब और नकदी पकड़ी गई, उस वक्त श्रीलेखा को शराब माफिया ने 1 करोड़ रुपये की रिश्वत लेकर छोड़ने को कहा, लेकिन वह टस से मस नहीं हुईं। इसी तरह एक अन्य माफिया के खिलाफ कार्रवाई के दौरान उन्हें धमकी दी गई कि यदि उन्होंने कार्रवाई नहीं रोकी, तो उनके बेटे का अपहरण कर लिया जाएगा। लेकिन आईपीएस श्रीलेखा पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने माफिया को उसके अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लिया।
हत्या की गुत्थी सुलझाने में माहिर
सीबीआई में रहीं श्रीलेखा अब केरल की पहली महिला डीजीपी हैं। श्रीलेखा को हत्या की गुत्थियां सुलझाने में महारत हासिल है। वह ऐसे मामलों को खुद आगे बढ़कर अपने हाथ में लेती हैं। उन्होंने 2003 में एक किताब भी लिखी, जिसमें कई छोटी कहानियों का संकलन है। इन कहानियों पर एशियानेट चैनल पर सीरियल बने हैं। इन कहानियों में उन्होंने हत्यारे की योजनाएं और पीड़ित की मानसिकता को समझाने का प्रयास किया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.