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कश्मीर की पैडवूमन हैं इरफाना जरगर, मुफ्त बांट रहीं सैनिटरी पैड

Published - Fri 05, Mar 2021

अक्षय कुमार की पैडमैन मूवी सैनिटरी पैड पर आधारित थी। इस फिल्म में महिलाओं की माहवारी की समस्या को प्रमुखता से दिखाया गया था और इसने खूब तारीफें बटोरी थीं। इस फिल्म के बाद हर कोई सैनिटरी पैड पर बात करता नजर आया। कुछ ऐसा ही कमाल अब कर रहीं हैं कश्मीर की इरफाना जरगर। उन्हें कश्मीर में पैडवूमन कहा जाता है। उन्होंने महिलाओं व किशोरियों के बीच सैनिटरी पैड बांटने व जागरूकता फैलाने का अभियान शुरू किया। जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है।

Irfana Jargar

नई दिल्ली। श्रीनगर में सैनिटरी पैड के अभाव में सैकड़ों महिलाएं अनेक बीमारियों से ग्रसित हो चुकी हैं। ऐसे में इरफाना ने यहां सैनिटरी पैड बांटने व जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया। वह जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर की रहने वाली हैं। इरफाना की मानें तो स्कूल के दिनों से ही मैंने महसूस किया कि इस सीमांत क्षेत्र में हमेशा तनाव का माहौल रहता है। ऐसे में महिलाओं का बेखौफ, आजाद होकर घूमना-फिरना आसान नहीं है। मैंने कई ऐसे घर भी देखे हैं, जहां कोई पुरुष न होने की स्थिति में महिलाओं के लिए अपनी जरूरत की मूलभूत चीजें बाजार जाकर खरीदना मुश्किल हो जाता है। मैं हमेशा महिलाओं के उन पक्षों के बारे में सोचती थी, जिन पर लोग बात करने से कतराते हैं। छोटी उम्र में, तो खुद के लिए सैनिटरी पैड खरीदने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी। मेरे पिता मेरे लिए पैड्स खरीदा करते थे, लेकिन जब पिता का निधन हुआ, तो भाइयों से पैड्स की बात करना मेरे लिए बेहद मुश्किल था। फिर मैंने खुद दुकान पर जाकर इसे खरीदना शुरू किया। कई बार असहज स्थितियों से भी सामना हुआ। फिर मैंने सोचा कि मेरे पास पैसे और संसाधन हैं, तो मैं जरूरतमंद महिलाओं के लिए भी सैनिटरी पैड खरीदूंगी। 

महिलाओं, लड़कियों को झिझकते देखा

मैंने श्रीनगर में देखा कि ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां दुकान पर जाकर पैड खरीदने में शर्म महसूस करती हैं। अगर दुकान तक जाती भी हैं, तो कहती हैं, 'मुझे वह दो'। वे शर्मिंदगी के कारण पैड शब्द भी नहीं बोल सकतीं। इस तरह के अनुभवों के बाद मैंने श्रीनगर में महिलाओं को नि:शुल्क सैनिटरी पैड बांटना शुरू किया और उन्हें शारीरिक स्वच्छता के बारे में बताना प्रारंभ किया। 

असहज थे परिजन

जब मैंने यह अभियान शुरू किया, उस समय मैं पढ़ ही रही थी और मेरे पास काफी कम पैसे थे। इसके लिए मैं जेब खर्च से रुपये बचा लेती थी। मेरे पिता भी इस काम में आर्थिक सहयोग करते थे, लेकिन पूरा परिवार मेरे इस काम को नापसंद करता था। मेरे भाई पीरियड किट बांटने से तो सहज थे, लेकिन मेरा सोशल मीडिया पर माहवारी को लेकर बात करना उन्हें पसंद नहीं था। 

सक्षम होने पर सुदूर क्षेत्रों में शुरू किया अभियान

स्थानीय नगर निगम में नौकरी मिलने के बाद मैं आर्थिक रूप से और मजबूत व सक्षम हो गई। इसके बाद मैंने इसे बड़े पैमाने पर शुरू किया। अब मैं कश्मीर के उन सुदूर इलाकों में जाकर माहवारी के प्रति जागरूकता फैलाने व सैनिटरी पैड बांटने का काम कर रही हूं, जहां महिलाओं के पास साफ कपड़े भी नहीं होते। इसके चलते वे अक्सर किसी लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो जाती हैं।