जयपुर में एक रेलवे स्टेशन ऐसा है, जिसे सिर्फ महिलाएं ही संभालती हैं। ये स्टेशन देश का एक मात्र ऐसा रेलवे स्टेशन है, जो महिलाओं के हाथों में है।
नई दिल्ली। महिलाएं क्या कुछ नहीं कर सकतीं। आज के दौर में आगे बढ़ती महिलाएं ये साबित कर चुकी हैं। महिला शक्ति का एक ऐसा ही बेहतरीन उदाहरण जयपुर में भी है, जहां एक रेलवे स्टेशन की बागडोर पूरी तरह महिलाओं के हाथों में है। यहां टीटी से लेकर सुरक्षाकर्मी तक सभी महिलाएं ही हैं। तीन सालों से महिला कर्मचारियों द्वारा संचालित किया जा रहा ये स्टेशन साफ-सुथरा भी है और यात्रियों को किसी भी तरह की दिक्कत भी नहीं होती।
ये स्टेशन दिल्ली-जयपुर रेल रूट पर है, जो गांधीनगर में है। यहां स्टेशन मास्टर से लेकर सफाई कर्मचारी तक का कार्य महिलाएं संभाल रही हैं। इस स्टेशन पर करीब चालीस महिला कर्मचारी कार्यरत्त हैं।
2018 में रेलवे ने महिलाओं को सौंपा ये स्टेशन
देश का पहला महिलाओं द्वारा संचालित ये स्टेशन फरवरी 2018 में रेलवे ने महिलाओं को सौंपा था। इससे पहले ये रिकॉर्ड माटुंगा रेलवे स्टेशन के नाम था, लेकिन वो एक उप-नगरीय रेलवे स्टेशन है। गांधीनगर के रेलवे स्टेशन पर प्रतिदिन सात हजार से ज्यादा यात्रा सफर करते हैं और इस स्टेशन से रोजाना पचास से ज्यादा ट्रेन गुजरती हैं। महिलाओं के हाथों संचालित इस स्टेशन पर किसी तरह की परेशानी नहीं देखने को मिली है। बेहतर संचालन और सुरक्षा की दृष्टि से पूरा स्टेशन सीसीटीवी कैमरों से लैस है।
आरपीएफ स्टॉफ भी महिलाओं का
यहां तैनात सुरक्षाबल भी महिलाओं का ही है। इसके साथ-साथ यहां सफाई कर्मी भी महिलाएं ही हैं। इस स्टेशन पर एक पैड वेडिंग मशीन भी लगाई गई है। स्टेशन पर तैनात सभी महिलाकर्मी सखी नाम के एक व्हाट्सएप ग्रुप से भी जुड़ी हुई हैं, जो इन्होंने खुद बनाया है। ये रेलवे स्टेशन महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.