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जामिदा बनीं पहली महिला इमाम, निडर होकर कर रहीं काम

Published - Thu 13, Feb 2020

मुस्लिम धर्म में महिलाओं का इबादत करना मना होता है, लेकिन पहली मुस्लिम महिला इमाम जामिदा ने इसका विरोध करते हुए पहले खुतबा पढ़ा और फिर कुरान।

jamitha imam

वह महिलाएं जो साहसी हैं, निडर हैं, बदलाव की चाह रखती हैं, सही मायनों में वही समाज में कुछ अलग कर सकती हैं, समाज को कुछ नया संदेश दे सकती हैं। पुरानी परंपराओं को तोड़ सकती हैं और लोगों को खासतौर से महिलाओं को नई दिशा दे सकती हैं। ऐसी ही नामुमिकन चीज को केरल के मल्लपुरम की रहने वाली जामिदा बीबी ने मुमकिन कर दिखाया है। उन्होंने न केवल मुस्लिम महिलाओं को जुम्मे की नमाज पढ़ाई बल्कि इबादत में हो रहे भेदभाव को भी तोड़ा।
मुस्लिम धर्म में महिलाओं का इबादत करना मना होता है, लेकिन पहली मुस्लिम महिला इमाम जामिदा ने इसका विरोध करते हुए पहले खुतबा पढ़ा और फिर कुरान। वह बच्चों को भी इसे पढ़ा
रहीं हैं और इसके संदेशों को भी लोगों तक पहुंचा रहीं है, जो किसी में भेदभाव नहीं करता। वह देश की पहली महिला इमाम कही जा रही हैं।

कुरान मर्द और औरत में भेद नहीं करता
उन्होंने सुन्नत सोसायटी के मुख्यालय चेरूकोड में जुम्मे की नमाज भी अदा करवाई। जामिदा का कहना है कि 'कुरान अगर मर्द और औरत में भेद नहीं करता तो फिर क्यों सिर्फ पुरुष ही नमाज पढ़ाएं, महिलाएं क्यों नहीं । ऐसा कोई नियम नहीं है कि जुम्मे की नमाज की इमामत केवल मर्द ही कर सकते हैं, यह केवल पुरुषों ने अपने वर्चस्व के लिए किया है।'

काम रोकने की कई बार हुई कोशिश, पर नहीं रुके कदम
पहली मुस्लिम इमाम जामिदा की जिंदगी इतनी आसान नहीं रही। उनके इस कार्य से एक वर्ग ऐसा भी है जो बिल्कुल खुश नहीं है, वह जामिदा को बिल्कुल पसंद नहीं करता। जामिदा काफी समय से बच्चों को कुरान और हदीस पढ़ा रही हैं, लोकिन जिस महल कमेटी में वो पढ़ाती थीं, वहां उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई। उन्हें काफी परेशान किया गया, यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी मिलीं पर जामिदा इमाम रुकी नहीं। वह कहती हैं ऐसी चीजों से हौसले और बुलंद होते हैं, कदम नहीं रोकते।