पलामू की रहने वाली बानो ने दस-दस रूपये जमाकर अपने ऊपर चढ़ा दस हजार का कर्ज भी उतारा और खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ बिजनेस भी कर रही हैं।
नई दिल्ली। कभी-कभी जीवन में हर किसी के साथ ऐसा होता है कि वह ऐसे मोड़ पर फंस जाता है, कि उसे मुसीबत के समय में एक रुपया भी बड़ी रकम लगने लगता है। और यही वो समय होता है, जब इंसान समय और मेहनत की कद्र जान जाता है और आगे बढ़कर दिखाता है। झारखंड पलामू के मेदिनीपुर के थानवा गांव की रहने वाली बानों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। हसरत बानों का परिवार बेहद संपन्न नहीं हैं और गांव में कमाई का कोई जरिया भी नहीं हैं। ऐसे में उन्हें पैसों की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने गांव के साहूकार से दस हजार रुपये का कर्जा लिया। मूल और ब्याज चुकाने के बाद भी कर्जा सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा था। कई सालों से बानो साहूकार का पैसा नहीं चुका पाईं। हसरत बानो को पैसा न चुकाने के कारण बेइज्जत भी होना पड़ा। बानो ने ठान लिया कि कुछ ऐसा काम करेंगी कि कर्जा भी उतर जाए और गांव की किसी भी महिला को कर्ज लेने के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।
दस-दस रुपये जमा कर चुकाया दस हजार का कर्ज
हसरत बानो को अपने गांव थानवा में महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह के बारे में पता चला। 2013 में उन्होंने इस समूह को ज्वाइन किया। ये समूह महिलाओं से हर हफ्ते दस-दस रुपये जमा करता था। इसका सदस्य बनने के बाद हसरत बानो ने सहायता समूह से पैसा लेकर साहूकार का कर्ज चुकाया और दस-दस रुपये जमाकर स्व सहायता समूह से ली राशि भी लौटा दी। कर्जा उतरने के बाद उन्होंने इस समूह से अस्सी हजार रुपये का ऋण लिया और एक आटा चक्की और एक जूते की दुकान खोली। कारोबार चल निकला और आमदनी होने लगी। स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के कारण उनका जीवन पूरी तरह बदल चुका था। उनकी कमाई भी महीने में बीस हजार से ऊपर होने लगी। पति दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार उन्हीं पर निर्भर था, तो हसरत बानो के इस काम से परिवार भी संपन्न हुआ और परेशानियां भी खत्म हो गईं। हसरत बानों आसपास के गांवों की महिलाओं को भी समूह से जुड़ने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए जागरुक करने का काम कर रही हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.