बचपन में ही जूली अपने माता-पिता के प्यार से वंचित हो गई, फिर भी मेरा पालन-पोषण बेहतर ढंग से हुआ। जब उन्होंने झुग्गियों के बच्चों की शिक्षा के प्रति बेरुखी देखी, तो उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग तरीके का उपयोग किया।
असम में गुवाहाटी की जूली काकोटी ने मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। जूली ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। उनका पालन-पोषण चाचा-चाची ने किया और उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं रखी। जूली के घर के पास एक मलिन बस्ती है। जब भी वह वहां से गुजरती थी तो अक्सर वहां पर दर्जनों बच्चें खेलते हुए दिख जाते थे। यह बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। चूंकि उनके माता-पिता की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, इसलिए जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं, उनमें से अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलती, क्योंकि छात्र-शिक्षक अनुपात सही नहीं है। जूली ने उन बच्चों से बात की तो पता चला कि स्कूल में पढ़ाई से अलग कोई गतिविधि नहीं होती, इसलिए पढ़ने में उनका मन नहीं लगता।
इसके बाद जूली ने आसपास के कुछ लोगों से सलाह कर उन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के बारे में फैसला किया, तो उन लोगों ने सहयोग करने का आश्वासन दिया। इसके बाद वहां जूली ने एक अस्थायी स्कूल की शुरुआत की। वह बच्चों को प्रति दिन तीन से चार घंटे तक पढ़ाने के साथ उनके लिए नृत्य, कला और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं की कक्षाएं आयोजित करने लगी। धीरे-धीरे इसमें बच्चे आने शुरू हो गए। इसके बाद आठ लोग उनके साथ और जुड़े, जो प्रतिदिन बच्चों को पढ़ाने आते हैं।
किताबों में नहीं बांधती
जूली बच्चों को किताबों के दायरे में ही बांध कर नहीं रखती हैं। उन्हें पढ़ाने के साथ समझाने का प्रयास करती हैं। वह यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक छात्र समझे कि वह क्या प्रश्न पूछ रहा है, और उससे क्या समझ रहा है। वह उनके सवालों का समाधान करने की पूरी कोशिश करती हैं।
इससे बेहतर कुछ नहीं
मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा की दशा गंभीर है। जूली कहती हैं, मैं हमेशा सोचती थी कि बच्चों को सही शिक्षा देने से बेहतर समाज का निर्माण होगा। इन बच्चों को शिक्षा देने के बाद मुझे एहसास हुआ कि इससे बेहतर काम कुछ और नहीं हो सकता था।
प्रतिदिन तीन घंटे
जूली गुवाहाटी विश्वविद्यालय की छात्रा है। वह अपनी कक्षाओं में भाग लेने के बाद बच्चों के साथ तीन से चार घंटे बिताती हैं। उनकी इसी कोशिश के चलते तकरीबन 60 से अधिक बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं, जबकि दर्जनों बच्चे रोजाना कक्षाएं कर रहे हैं। वह अपनी पढ़ाई के साथ इन बच्चों को भी पढ़ा रही हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.