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संयुक्त राष्ट्र ने गुजरात की खुशी को बनाया भारत में अपना ग्रीन एम्बेसडर

Published - Fri 25, Sep 2020

आज देश और दुनिया में प्रकृति को बचाने के लिए मुहिम चलाई जा रही है। इन सब के बीच भारत की एक बेटी लोगों के लिए मिसाल बन रही है। गुजरात के सूरत की रहने वाली 17 साल की खुशी चिंदालिया के प्रकृति संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने भी सराहा है।

नई दिल्ली। आज देश के ज्यादातर हिस्सों में कांक्रीट की इमारतें खड़ी करने के चक्कर में जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है। इससे प्रकृति प्रेमी काफी परेशान हैं। देश और दुनिया में प्रकृति को बचाने के लिए मुहिम चलाई जा रही है। इन सब के बीच भारत की एक बेटी लोगों के लिए मिसाल बन रही है। गुजरात के सूरत की रहने वाली 17 साल की खुशी चिंदालिया के प्रकृति संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने भी सराहा है। इतना ही नहीं खुशी को यूएन के इनवॉयरमेंट प्रोग्राम 'तुंजा ईको जनरेशन' ने भारत में अपना ग्रीन एम्बेसडर भी नियुक्त किया है।

घर के आसपास के हालात देख शुरू की मुहिम

अपने मुहिम की शुरुआत के बारे में खुशी बताती हैं कि मैंने एक दिन महसूस किया कि मेरे घर के आसपास हरियाली धीरे-धीरे कम हो रही है। जहां पहले बड़-बड़े पेड़ हुआ करते थे अब वहां पर कांक्रीट की इमारतें खड़ी हो गई हैं। आसपास के लोग भी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। चिड़ियों की चहचहाट भी अब नहीं सुनाई देती है। धूल और धुआं चारों ओर फैला था। रात में आसमान अब पहले जितना साफ नहीं दिखाई देता था। इन सब बातों ने मुझे कई रातों तक ठीक से सोने नहीं दिया। इस बारे में मैंने आसपास के लोगों से बात की तो वे भी इन मसलों पर ज्यादा गंभीर नजर नहीं आए। खुशी को इस बात की चिंता भी सता रही थी कि अगर यही हाल रहा तो उनकी छोटी बहन प्रकृति का आनंद नहीं ले पाएगी। यही सब सोचने के बाद खुशी ने पर्यावरण के लिए काम करना शुरू कर दिया। वह लोगों को ऑनलाइन ही पर्यावरण के प्रति लगातार जागरूक कर रही हैं।

यूएन के पर्यावरण कार्यक्रम के लिए ऑनलाइन किया आवेदन

खुशी को एक दिन संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की जानकारी हुई तो उन्होंने आवेदन कर दिया। खुशी के विचारों से प्रभावित होकर यूएन ने पर्यावरण कार्यक्रम के लिए उन्हें भारत का अपना क्षेत्रीय राजदूत बनाया है। कपड़ा व्यापारी बसंत चिंदलिया और एस्ट्रो वास्तु काउंसलर बिनीता की बड़ी बेटी खुशी बताती हैं कि लॉकडाउन और कोरोना महामारी के बीच उन्हें घर में रहने का बहुत ज्यादा समय मिला। इसका इस्तेमाल उन्होंने अपना पूरा समय पर्यावरण पर कार्य करने में लगाया है। खुशी भारत के उन 100 युवाओं में से एक है, जिनके निबंधों को यूनेस्को की पुस्तक में छापा जाएगा।