किंकरी देवी ने हिमाचल के जंगलों को बचाने के लिए खनन माफियाओं से दशकों तक मुकाबल किया और जल, जंगल, जमीन को नुकसान नहीं होने दिया।
नई दिल्ली। विकास की अंधी दौड़ में आज गांव से लेकर शहरों तक जल,जंगल, जमीन को लीला जा रहा है। हरियाली तो तेजी से गायब हो रही है। घने जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। लोग इसको लेकर जाग तो रहे हैं, लेकिन बहुत देर से जागे हैं। ऐसे लोग गिनती के ही होंगे, तो जल, जंगल, जमीन के लिए आवाज उठाते होंगे। लेकिन जो विरोध में खड़े हो जाते हैं, वो इतिहास बनाते हैं। ऐसी ही एक महिला हिमाचल प्रदेश की भी थीं, जिन्होंने आवाज उठाई और जीती भीं।
दशको पहले उठाई थी आवाज
किंकरी देवी अनपढ़ थीं, लेकिन उन्होंने जो किया, वो पढ़े-लिखे भी नहीं कर पाते। हिमाचल के घान्टो गांव में जन्मीं किंकरी देवी गरीब परिवार में पैदा हुईं थीं। बचपन में जब होश संभाला तो परिवार संभालने के लिए बाल मजदूरी करनी पड़ी। कम उम्र में ही उनका विवाह कर दिया गया। उनका पति एक बंधुआ मजदूर था। जब उनकी उम्र महज बाइस साल थी, तो पति का निधन हो गया और मजबूरी में उन्हें मजदूरी करनी पड़ी। बात 1985 की है। देहरादून की खदानों के बंद हो जाने के बाद हिमाचल के सिरमौर में चूना पत्थर का काम फैला। नदियों में खनन के कारण नदियां मैली होने लगीं। जल-जंगल-जमीन को भारी नुकसान पहुंचाया जाने लगा। तब किंकरी देवी ने पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को जागरुक किया। पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताया। स्थानीय लोग उनके साथ जुड़ते गए। उनकी मेहनत का ही प्रयास था कि 1987 में पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड नाम की संस्था की सहायता से शिमला हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई और 48 खदान मालिकों को किकंरी अदालत तक खींच लाने में सफल रहीं। किंकरी ने शिमला में कोर्ट के सामने 19 दिन की भूख हड़ताल भी की। आखिर किंकरी की जीत हुई और 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
मिली अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
इस जीत से न केवल किंकरी को देश में पहचाना गया, बल्कि विदेश में भी उनके नाम की गूंज सुनाई दी। 1995 में इंटरनेशल वुमन कॉन्फ्रेंस में हिलेरी क्लिंटन ने उन्हें आमंत्रित किया। देश में भी उन्हें कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1999 में रानी लक्ष्मी बाई स्त्री शक्ति पुरस्कार समेत तमाम पुरस्कार उन्हें मिले। क्रांतिकारी विचारों वाली किंकरी देवी ने 2007 में दुनिया को अलविदा कह दिया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.