जिंदगी में कई बार सबकुछ ठीक लगता है, लेकिन फिर अचानक ऐसा मोड़ आता है कि मुट्ठी से रेत की तरह सारी खुशियां खिसक जाती हैं। ऐसे हालात में ज्यादातर लोग टूट जाते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि अब वे क्या करें, कई लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो हालातों से न केवल लड़ते हैं, बल्कि खुद के लिए तय की गई मंजिल को भी हासिल करते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं कोमल गनात्रा। तमाम परेशानियों के बीच कोमल के आईएएस अफसर बनने का सफर काफी चुनौतीपूर्ण रहा। कोमल का यह सफर कई महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है। आइए जानते हैं कोमल के शून्य से सर्वोच्च के सफर के बारे में....
नई दिल्ली। साल 2012 में सिविल सेवा की परीक्षा पास करने वाली कोमल गनात्रा गुजरात से एक मात्र चयनित महिला उम्मीदवार थीं। एक असफल विवाहित जीवन और समाज के तानों को नजरअंदाज कर कोमल ने अपने आप को सशक्त करने का फैसला लिया और चौथे प्रयास में IRS अफसर बनीं। कोमल का संघर्ष प्रत्येक महिला को जीवन में अपनी खुद की पहचान बनाने के लिए प्रेरित करती है। कोमल मूलत: गुजरात की रहने वाली हैं। उनके दो छोटे भाई हैं। पिता शिक्षक हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। कोमल के मुताबिक उनके पिता हमेशा ही उन्हें जीवन में कुछ करने के लिए प्रेरित करते थे। वह कोमल को आईएएस अफसर बनाना चाहते थे। कोमल बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थीं।
साल 2008 में शादी के बाद बदल गई जिंदगी
कोमल की 26 साल की उम्र में न्यूजीलैंड के एक एनआरआई से शादी हुई थी। उस समय कोमल यूपीएससी के साथ स्टेट पीसीएस की तैयारी भी कर रही थीं। शादी के दौरान ही उनका गुजरात सिविल सेवा का मेंस क्लीयर हो चुका था, लेकिन पति ने उन्हें इंटरव्यू के लिए नहीं जाने दिया। शादी के 15 दिन बाद ही कोमल के पति जरूरी काम बताकर न्यूजीलैंड वापस चले गए और फिर लौट कर भारत नहीं आए। कोमल ने पति से कई बार बात करनी चाही। उनके परिजनों ने भी दामाद से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन न तो बात हो सकी और न ही वह दोबारा मिलने आए। कोमल के लगातार प्रयास के बावजूद कोई भी हल नहीं निकला, तो उन्होंने अपने मायके वापस लौटने का निर्णय लिया, लेकिन अब जीवन काफी चुनौतीपूर्ण हो चुका था। आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण उनमे आत्मसम्मान की कमी बढ़ती चली गई। साथ ही पड़ोसी और रिश्तेदारों के तानों से उनका जीवन तनावपूर्ण होता गया।
कोई रास्ता नहीं मिलने पर तय किया तैयारी करना
लगातार खराब होते हालातों से भागने की बजाय कोमल ने उनसे लड़ने का फैसला किया। इन मुश्किल दिनों में कोमल को बार-बार पिता की वे बातें याद आतीं, जिनमें वह कहते थे कि उनकी बेटी आईएएस अफसर बनेगी। पिता की इन्हीं बातों को याद कर कोमल को हौसला मिला और उन्होंने दोबारा यूपीएससी की तैयारी करने की ठान ली। कोमल कहती हैं, इस घटना के बाद उन्होंने सीख लिया कि एक औरत की पहचान उसके पति से नहीं, बल्कि खुद की कामयाबी से होती है। शादी इंसान को संपूर्ण नहीं बनाती, बल्कि उसका सफल कॅरियर ही उसे आत्मसम्मान दिलाता है और सम्पूर्ण बनाता है।
तैयारी के लिए अकेले गांव में रहीं
कोमल यह जान चुकी थीं कि यूपीएससी की तैयारी के लिए उन्हें समाज से दूर रह कर एकाग्रता से पढ़ना होगा। इसीलिए उन्होंने अपने मायके से 40 किलोमीटर दूर एक गांव में रहने का फैसला किया। वह उसी गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने लगीं। कोमल बताती हैं कि वह गांव इतना पिछड़ा था कि न तो वहां कोई अंग्रेजी अखबार आता था और ना ही कोई मैगजीन। उनके पास उस समय इंटरनेट की सुविधा भी नहीं थी। वह हर शनिवार और रविवार को 150 किलोमीटर की यात्रा कर ऑप्शनल सब्जेक्ट की कोचिंग लेने अहमदाबाद जाती थीं।
चौथे प्रयास में हासिल की सफलता
कोमल ने 3 असफल प्रयासों के बाद साल 2012 में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास की। कोमल बताती हैं कि उन्होंने अपनी तैयारी की दौरान एक भी छुट्टी नहीं ली। जब वह पहली बार इंटरव्यू देने दिल्ली आईं तब वह शनिवार को स्कूल में पढ़ाकर गुजरात से दिल्ली के लिए रवाना हुई थीं और सोमवार को उन्होंने अपना इंटरव्यू दिया था। कोमल कहती हैं कि ओपन लर्निंग से ग्रेजुएशन करने से उन्होंने सेल्फ-स्टडी की अहमियत समझी। वह कहती हैं जिन परिस्थितियों में महिलाएं अक्सर टूट जाती हैं, उन्होंने धैर्य बनाए रखा और अपने जीवन को एक सुरक्षित मार्ग की ओर बढ़ाया। उनकी सकारात्मक सोच, धैर्य, मेहनत और एकाग्रता के कारण ही यह सफलता उन्हें मिली है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.