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शुरू में तीरंदाजी में मन नहीं लगता था, बाद में चढ़ा जुनून

Published - Wed 28, Aug 2019

झारखंड की बेटी कोमोलिक बारी ने स्पेन में आयोजित तीरंदाजी के महिला एकल कैडेट रिकर्व वर्ग का स्वर्ण पदक जीतकर देश-दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन किया। उन्होंने फाइनल में जापान की वाका सोदोका को 7-3 से हराकर खिताब अपने नाम किया।

नई  दिल्ली। कमान से तीर उसने इस अंदाज में छोड़ा कि वह जाकर बीचोंबीच खुदे निशान में धंस गया और ऐसा करते ही झारखंड का नाम रोशन करने वाली जमशेदपुर की कोमोलिका बारी अब विश्व पटल पर छा चुकी थीं। 18 साल की इस तीरअंदाज ने स्पेन में आयोजित तीरंदाजी के महिला एकल कैडेट रिकर्व वर्ग का स्वर्ण पदक जीता। उसके इस बड़े कारनामे के चलते तीरंदाजी के खेल में 10 साल बाद विदेश में भारत का तिरंगा लहराया। यह क्षण बेहद ही भावुक करने वाला था।

25 अगस्त का दिन भारत और खासकर झारखंड के लिए बेहद सौभाग्यशाली था। इस दिन झारखंड की बेटी कोमोलिक बारी ने स्पेन में आयोजित तीरंदाजी के महिला एकल कैडेट रिकर्व वर्ग का स्वर्ण पदक जीतकर देश-दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन किया। उन्होंने फाइनल में जापान की वाका सोदोका को 7-3 से हराकर खिताब अपने नाम किया। । जमशेदपुर की रहने वाली कोमोलिका टाटा आर्चरी एकेडमी की कैडेट हैं। उनकी इस उपलब्धि पर मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने उन्हें बधाई देते हुए कहा, शाबाश बिटिया। अपनी जीत पर कोमालिका बारी कहती हैं, मैं काफी खुश हूं। कोच के कारण ही खिताब जीत पाई हूं। मैं फाइनल में थोड़ी नर्वस थी, लेकिन हर तीर शूट करने से पहले मैं लंबी, लंबी सांसें लेकर अपने आप को एकाग्र करने की कोशिश कर रही थी।

आसान नहीं थी राह
कोमालिका के लिए अंडर-18 विश्व चैंपियन बनना किसी बड़ी राहत से कम नहीं है। कुछ माह पहले ही 17 साल की इस तीरंदाज ने दीपिका कुमारी जैसी तीरंदाज के साथ ओलंपिक क्वालिफाइंग सीनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में जगह बना ली, लेकिन इतने बड़े मंच पर यह तीरंदाज दबाव में बिखर गई। नतीजन पुरुष ओलंपिक क्वालिफाई कर गए और महिला टीम रह गई, लेकिन थोड़े ही समय में कोमालिका ने पहली बार सब जूनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए टीम में जगह बनाई और यहां वह दीपिका के बाद विश्व चैंपियन बनने वाली देश की दूसरी तीरंदाज बन गईं।

आर्चर बनने के पीछे दिलचस्प कहानी
कोमोलिका बारी के आर्चर बनने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। 2012 में आइएसडब्ल्यूपी में आयोजित आर्चरी समर कैंप में वह पहली बार शामिल हुईं, जहां उनकी मुलाकात कोच सुशांत पात्रो से हुई। कोच ने कोमोलिका में छिपी प्रतिभा को निखारा। कोमोलिका का शुरू में तीरंदाजी में मन नहीं लगता था। लेकिन जब कोमोलिका की ट्रेनिंग सेंटर में एक अन्य आर्चर सानिया शर्मा से दोस्ती हुई तो दोनों मिलकर तीरंदाजी करने लगीं। धीरे-धीरे यह उनका जुनून बन गया। इसके बाद कोमोलिका टाटा आर्चरी एकेडमी के ट्रायल में पहुंचीं, जहां उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर चयनकर्ताओं ने एकेडमी के लिए चुन लिया।

18 किमी का सफर रोज साइकिल से तय करती थीं
कोमोलिका के माता-पिता ने बेटी को एक आर्चर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत की और हर सुविधायें मुहैया कराईं। कोमोलिका ने भी खूब मेहतन की। अपने घर से लगभग 18 किलोमीटर का सफर वह रोज साइकिल से तय करती थीं और एकेडमी पहुंचते ही क्षण भर के लिए भी आराम नहीं करतीं थी बस तुरंत ही अपने अभ्यास में जुट जाती थीं।

मां ने शुरू कराई आर्चरी
कोमालिका ने मेड्रिड से खुलासा किया उन्हें फिट रहने के लिए मां ने 2012 में तीरंदाजी शुरू कराई थी। तब उन्हें जमेशदपुर में पास की ही अकादमी में लकड़ी का धनुष पकड़ा दिया गया। कुछ समय बाद उन्हें इस खेल में मजा आने लगा और उन्होंने नेशनल खेलने की ठानी। 2016 तक वह इंडियन राउंड (लकड़ी के धनुष से) में ही खेलती रहीं। बकौल कोमोलिका उनकी कामयाबी या फिर यहां तक पहुंचाने में आइएसडब्ल्यूपी, माता-पिता व कोच का सबसे बड़ा योगदान है। कोमोलिका की मां लक्ष्मी बारी आंगनवाड़ी में सेविका हैं। लक्ष्मी बारी कहती हैं कि हमने कोमालिका को तीरंदाजी सेंटर इसलिए भेजा था, क्योंकि इस खेल में कोई जोखिम नहीं है, लेकिन कोमालिका ने अपनी मेहनत से पूरे परिवार को इस खेल का मुरीद बना दिया। कोमालिका का छोटा भाई महेंद्र बारी भी अपनी दीदी की सफलता पर काफी खुश है।

मेरी जीत में कोच का बड़ा हाथ
दीपिका कहती हैं कि कोच धर्मेंद्र तिवारी ने उन्हें विश्व चैंपियन का सपना दिखाया और यहां तक पहुंचने में मदद की। कोच धर्मेंद्र बताते हैं कि उनके कहने पर ही 2016 में कोमालिका को टाटा अकादमी के लिए ट्रायल दिलाया गया। यहां वह चयनित हो गईं। तब से वह उन्हीं के पास हैं। अकादमी ने उन्हें महंगा रीकर्व धनुष दे रखा है। इसी से उन्होंने यह मेडल जीता है। धर्मेंद्र मानते हैं कि कोमालिका के लिए यह मेडल बहुत बड़ा है। अब उसके दिमाग से सीनियर विश्व चैंपियनशिप की विफलता को बोझ हट गया होगा।

बेटी के करियर के लिए पिता ने बेचा घर
12वीं की छात्रा कोमालिका पढ़ाई में भी होशियार हैं। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा 85 प्रतिशत अंकों से पास की थी। उनके पिता घनश्याम बारी एक छोटा से होटल चलाते हैं। साथ ही वह एलआइसी एजेंट का काम भी करते हैं। घनश्याम बारी कहते ह‌ैं, कोमालिका हमेशा मुस्कराती रहती है। जिस काम को भी हाथ लगाती है उसे पीछे नहीं छोड़ती है। स्कूल में वह एथलेटिक्स में भी अच्छी थी। अध्यापक ने उसे एथलेटिक्स में आने को कहा, लेकिन मां ने उसे तीरंदाजी में ही बने रहने को कहा। पिता का कहना है, हमने तो बिटिया को सिर्फ इसलिए तीरंदाजी सीखने के लिए भेजा था, ताकि वह फिट रहे, लेकिन हमें क्या पता था कि कोमालिका तीरंदाजी को अपना करियर बना लेगी। कोमालिका के पिता बताते हैं कि तीरंदाजी की दुनिया में बिटिया के बढ़ते कदम ने हमें आर्थिक परेशानी में डाल दिया। डेढ़ लाख से तीन लाख तक की धनुष कोमालिका को देना बस की बात नहीं थी, लेकिन तीरंदाजी की दुनिया में कोमालिका के बढ़ते कदम ने हमें घर बेचने पर मजबूर कर दिया।

पिता की इच्छा, बेटी ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करे
घनश्याम बारी कहते हैं कि कोमोलिका किस्तम की धनी है। बताते हैं कि जब उन्होंने अपने घर का सौदा किया तभी कोमालिका को टाटा आर्चरी एकडेमी में जगह मिल गई। एकेडमी में जगह मिलने के बाद कोमालिका को सारी सुविधा वहीं से मिलने लग गईं और घर बेचने के बाद जो पैसे आए, वह मेरे पास ही रह गए। घनश्याम बारी कहते हैं कि घर बेचने का दुख हुआ, लेकिन जब स्पेन से कोमालिका के कैडेट वर्ल्ड चैंपियन बनने की खबर मिली, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा कि घर-द्वार तो बनते रहेंगे, अब तो पहली इच्छा यही है कि कोमालिका ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करे।

2012 में की थी तीरंदाजी की शुरुआत
कैडेट वर्ल्ड चैंपियन बननेवाली टाटा आर्चरी एकेडमी की तीरंदाज कोमालिका बारी ने 2012 में आइएसडब्ल्यूपी (तार कंपनी) तीरंदाजी सेंटर से अपने करियर की शुरुआत की थी।तार कंपनी सेंटर के कोच सुशांतो पात्रो की मानें, तो 2012 में तार कंपनी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में समर कैंप का आयोजन किया गया था, जिसमें कोमालिका शिक्षा निकेतन की छात्रा के रूप में शामिल हुई थी। वह अपने चचेरे भाई राजकुमार बारी के साथ प्रतिदिन साइकिल पर सवार होकर अभ्यास के लिए आती थी। कोच के अनुसार एक महीने का समर कैंप तो खत्म हो गया, लेकिन कोमालिका ने अभ्यास जारी रखा और वह सेंटर की नियमित प्रशिक्षु बन गई।

2016 में टीएए में मिली जगह
तार कंपनी सेंटर में लगभग चार वर्षों के दौरान मिनी व सबजूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन के बाद कोमालिका को 2016 में टाटा आर्चरी एकेडमी (टीएए) में जगह मिल गई। टीएए पहुंचने के बाद द्रोणाचार्य पूर्णिमा महतो और धर्मेंद्र तिवारी जैसे दिग्गज प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में कोमालिका का सफर शुरू हुआ और महज तीन वर्षों के भीतर वह कैडेट वर्ल्ड चैंपियन के रूप में उभरकर सामने आ गई। कोमालिका अभी तक के करियर में लगभग डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी है। अब झारखंड की तीरंदाजी में उसे ओलंपियन दीपिका कुमारी के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है।

कैडेट वर्ल्ड चैंपियन बननेवाली दूसरी तीरंदाज
टाटा आर्चरी एकेडमी की तीरंदाज कोमालिका बारी रिकर्व डिवीजन में भारत की दूसरी तीरंदाज है, जिसने कैडेट वर्ल्ड चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया है। इससे पहले दीपिका कुमारी वर्ष 2009 में कैडेट वर्ल्ड चैपियन बनी थी। दीपिका ने अमेरिका के ऑग्डेन शहर में आयोजित कैडेट वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में यह उपलब्धि हासिल की थी। तब दीपिका भारत की पहली तीरंदाज थी, जिसने कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। मालूम हो कि अभी तक कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में झारखंड के तीरंदाजों ने भारत को पांच पदक दिलाए हैं। इसमें दो स्वर्ण, एक रजत व दो कांस्य पदक शामिल हैं।