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'विद्याधन' के जरिए बच्चों का जीवन संवार रहीं कुमारी

Published - Fri 30, Oct 2020

केरल निवासी कुमारी शिबूलाल हमेशा से ही समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं लेकिन शादी के बाद वह अमेरिका चली गई लेकिन सामाजिक क्षेत्र में कुछ नया करने की ललक उन्हें खींचकर अपने देश ले आई। अब वह विद्याधन छात्रवृत्ति कार्यक्रम के जरिए जरूरतमंदों की पढ़ाई के लिए मदद कर रही हैं।

kumari shibulal

नई दिल्ली। बतौर कुमारी शिबूलाल बचपन से ही मेरे माता-पिता ने सिखाया कि सफलता के लिए शिक्षा बेहद जरूरी है, इसलिए मैं शिक्षा क्षेत्र में कुछ बेहतर काम करने के बारे में सोचती रहती थी और मौका मिलने पर मैंने छात्रों की मदद करनी शुरू की। मेरा जन्म केरल के एक किसान परिवार में हुआ। बचपन से ही मेरे माता-पिता ने मुझे और मेरे भाई को यह सिखाया कि शिक्षा ही सफलता का एकमात्र रास्ता है। ऐसे में अपनी पढ़ाई के साथ शिक्षा का महत्व मैंने बचपन में ही सीखा और उसी दौरान इस क्षेत्र में कुछ सकारात्मक करने की इच्छा जगी। कॉलेज खत्म करने के बाद मेरी शादी इन्फोसिस के सह-संस्थापक एसडी शिबूलाल से हुई। इसके चलते मैं पहले मुंबई और फिर अमेरिका चली गई। हालांकि सामाजिक क्षेत्र में काम करने की इच्छा के साथ, हम वापस अपने वतन लौट आए। शिक्षा ने हमारे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव किया है। इसलिए हम इस उपहार को दूसरों के साथ भी बांटना चाहते थे, जो इससे वंचित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ बेहतर करने की इच्छा से मैंने सरोजनी दामोदर फाउंडेशन (एसडीएफ) का गठन कर काम करना शुरू किया। हमने विद्याधन छात्रवृत्ति जैसे कई कार्यक्रम उन बच्चों के लिए शुरू किए, जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। 

ताकि वे सक्षम बनें

छात्रों को छात्रवृत्ति देने के पीछे उद्देश्य उन्हें समग्र शिक्षा पाने में मदद करना है, ताकि वे सक्षम बनकर अपने समुदायों की मदद कर पाएं। विद्याधन छात्रवृत्ति दो बच्चों के साथ शुरू हुई थी,  पर अब इससे तकरीबन चार हजार छात्रों को मदद मिलती है। पिछले बीस वर्षों में हमने आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के हजारों मेधावी बच्चों की मदद की है।

विद्याधन कार्यक्रम

कई साल पहले कर्नाटक में विद्याधन कार्यक्रम में शामिल होने एक लड़का, मनोज आया, जो बतौर कृषि मजदूर काम करता था। उसने बताया कि वह डॉक्टर बनकर लोगों की जिंदगी बचाना चाहता है, क्योंकि डॉक्टरों ने उसकी और उसकी मां की जिंदगी बचाई है। मेरे संगठन ने उसे पूर्ण समर्थन दिया। अब वह बतौर डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहा है। ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं। 

मदद की दरकार

संस्था की मदद से आगे बढ़ने वाले अधिकतर बच्चे ग्रामीण परिवेश व किसान परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि परोपकार हर उस व्यक्ति को करना चाहिए, जो मदद के हाथ बढ़ाने में सक्षम है। मैं मदद करने के इच्छुक लोगों से भी ऐसे बच्चों को मिलवाती हूं, जिन्हें मदद की दरकार है।