प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही कार्यकाल में डिजिटल इंडिया पर जोर दिया और पेपरलेस होने के अलख जगाने की कोशिश की। इसका असर भी देखने को मिला, आज छोटे से छोटा व्यापारी डिजिटल लेनदेन पर ज्यादा भरोसा कर रहा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर स्थित मलिहाबाद तहसील के लतीफपुर ग्राम पंचायत आज ऐसे ही गांवों में शुमार है, जो पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है। इसका पूरा श्रेय जाता है यहां कि ग्राम प्रधान श्वेता सिंह को।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही कार्यकाल में डिजिटल इंडिया पर जोर दिया और पेपरलेस होने के अलख जगाने की कोशिश की। इसका असर भी देखने को मिला, आज छोटे से छोटा व्यापारी डिजिटल लेनदेन पर ज्यादा भरोसा कर रहा है। ग्राम पंचायतों को भी पेपरलेस करने की मुहिम चलाई गई, लेकिन यह पूरे देश में अब तक पूरी तरह सफल नहीं हो सकी है। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण अंचलों में साक्षरता की दर कम होना और पंचायत के पदाधिकारियों का टेक्नोफ्रैंडली न होना है। इन सब के बीच देश के कुछ ऐसे गांव और पंचायतें हैं, जहां डिजिटल इंडिया के सपने को साकार किया जा रहा है या कर दिया गया है। यह सब संभव हुआ है इन ग्राम पंचायतों के प्रधानों/सरपंचों की मेहनत और लगन की बदौलत। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर स्थित मलिहाबाद तहसील के लतीफपुर ग्राम पंचायत आज ऐसे ही गांवों में शुमार है, जो पूरी तरह से डिजिटल हो चुका है। इसका पूरा श्रेय जाता है यहां कि ग्राम प्रधान श्वेता सिंह को। कभी एमसीए की डिग्री पूरी कर मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करने वाली श्वेता जब भी अपने गांव आतीं उन्हें यहां का पिछड़ापन देख काफी दुख होता। एक दिन उन्होंने अपनी आरामदेह और मोटे पैकेज की नौकरी को अलविदा कहा और गांव की तस्वीर बदलने के लिए लतीफपुर पहुंच गईं। उन्होंने पहले गांव के लोगों को जागरूक किया फिर ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ इसमें जीत हासिल की। फिर वह दिन-रात एक कर गांव की सूरत बदलने के काम में जुट गईं। आज उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि लतीफपुर को उत्तर प्रदेश की पहली डिजिटल पंचायत होने का तगमा मिल चुका है। ग्राम पंचायत ने अपनी वेबसाइट भी बनाई है। साथ ही वाट्सएप पर एक ग्रुप भी बनाया है, जिसमें गांव के किसी भी शख्स को कोई भी परेशानी हो वह शिकायत कर सकता है। पूरा पंचायत भवन वातानुकूलित होने के साथ ही कंप्यूटराइज्ड है। पंचायती राज विभाग अब पूरे प्रदेश में लतीफपुर ग्राम पंचायत का मॉडल लागू करने की योजना बना रहा है।
एक क्लिक पर मिलता है पंचायत के आय-व्यय का ब्यौरा
ग्राम प्रधान श्वेता सिंह का शुरू से प्रयास रहा है कि ग्रामीणों को अपने काम के लिए प्रधान समेत पंचायत के किसी भी पदाधिकारी या अफसर के चक्कर न काटने पड़े। इसके लिए उन्होंने तकनीकी का सहारा लिया और ग्रामीणों की सहायता के लिए एक वाट्सएप ग्रुप बना डाला। इस ग्रुप में आने वाली रोजाना की शिकायतों का उसी दिन निदान करने की कोशिश की जाती है। इसे लेकर प्रदेश सरकार भी ग्राम प्रधान श्वेता सिंह की तारीफ कर चुकी है। कई पुरस्कार भी लतीफपुर गांव को मिल चुके हैं। पंचायत में पारदर्शिता के लिए उसके सभी आय-व्यय का ब्यौरा गांव की वेबसाइड पर उपलब्ध है। कोई भी सिर्फ एक क्लिक पर इसकी पूरी जानकारी हासिल कर सकता है। लतीफपुर ग्राम पंचायत का भवन की एक और खासियत है। इसमें ग्राम प्रधान से लेकर वार्ड सदस्य, एएनएम, आशा बहू, कोटेदार और अन्य सरकारी कर्मचारियों तक के बैठने के लिए अलग-अलग स्थान तय हैं। इसका मकसद यह है कि पंचायत में आने वाले लोगों को दर-दर भटकना न पड़े।
सरकार को एक साथ सौंपी पांच साल की कार्ययोजना
लतीफपुर ग्राम पंचायत उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी पंचायत है, जिसने प्रदेश सरकार को अपने पांच साल की कार्ययोजना एकसाथ बनाकर सौंप दी है। इसे मॉडल मानते हुए सरकार अब अन्य पंचायतों से भी इसी तरह प्लान बनाकर देने की बात कह रही है। इसके लिए जल्द ही नियम भी बनाने की बात अफसर कह रहे हैं। लतीफपुर की प्रधान श्वेता सिंह की मेहनत का ही नतीजा है कि पंचायत के पास अपने खुद के आय के साधन हैं। इनमें सोलर जेनरेटर, ट्रैक्टर, ट्रॉली, टैंकर, कृषि उपकरण और कंट्रक्शन का सामान शामिल हैं। इन्हें किराए पर देकर पंचायत कमाई करती है। गांव में गंदे पानी से निपटने के लिए भी शानदार स्ट्रक्चर है। गंदे पानी को पहले रीचार्ज किया जाता है, फिर इसे सिंचाई के काम में इस्तेमाल किया जाता है। श्वेता बताती हैं इसके पीछे की मंशा यह है कि पानी की बर्बादी न हो और गर्मी में गांव का वाटर लेबल भी नीचे न जाए।
गांव की बदहाली खींच लाई यहां
लखनऊ की रहने वाली श्वेता सिंह ने एमसीए करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर इंजीनियर कुछ सालों तक नौकरी की। इस बीच उनकी शादी डॉ. अखिलेश सिंह से हो गई। लेकिन उन्हें अपने गांव के पिछड़ेपन पर हमेशा अफसोस होता था। वह गांव के लिए कुछ अलग करना चाहती थीं। यही चाह उन्हें गांव खींच लाई। उन्होंने 2015 में चुनाव लड़ा जीत हासिल की, इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। श्वेता सिंह के मुताबिक हमे हमेशा भविष्य को ध्यान में रखकर योजना बनानी चाहिए। उनकी इस बात की झलक उनकी कार्यशैली में साफ नजर आती है। वह ग्राम पंचायत में सवा दो करोड़ रुपये की लागत से मॉडल बाजार बनवा रही हैं। इसका उद्देश्य ग्राम पंचायत के साथ ही आसपास के गांवों के लोगों को फल और सब्जियां का उचित मूल्य बिना दूर जाए मिल सके इसकी सहूलियत मुहैया कराना है।
जापान तक गांव की पहुंच
पंचायत को डिजिटल करने के साथ ही ग्रामीणों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार के दरवाजे खोलने की कोशिश में भी श्वेता लगी हुई हैं। इसके लिए उन्होंने 5 साल पहले एक कार्ययोजना बनाई थी, जो अब साकार हो रही है। योजना के मुताबिक तभी गांव में आम के पेड़ों को लगाया गया था, जो अब तैयार हो गए हैं। अब गांव में मैंगो हनी (शहद) बनाकर उन्हें जापान तक भेजा जा रहा है। यह शहद आम के पेड़ में तैयार होती है। ग्रामीण आम के पेड़ों में जब बौर आने लगते हैं, तभी उनमें बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन करते हैं। जिससे 45 दिन के भीतर ही शहद तैयार हो जाती है। मैंगो हनी में दूसरे फूलों का भी शहद होता है, लेकिन अधिकतर हिस्सा आम का ही होता है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.