महिला हैं तो घर का कामकाज ही देखेंगी...ऐसा नहीं है। आज रूबरू होते हैं ऐसी ही अपराजिताओं से जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भी काम किया। खुद की पहचान बनाने की तासीर इतनी कि शादी के 20 साल बाद नया हुनर सीखा और इस हुनर को ही कारोबार बना लिया।
आगरा। महिला हैं तो घर का कामकाज ही देखेंगी...ऐसा नहीं है। आज रूबरू होते हैं ऐसी ही अपराजिताओं से जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भी काम किया। खुद की पहचान बनाने की तासीर इतनी कि शादी के 20 साल बाद नया हुनर सीखा और इस हुनर को ही कारोबार बना लिया। मुसीबत आई तो ब्यूटी पार्लर खोलकर परिवार का सहारा बनीं, पति के कंधे से कंधा मिलाकर व्यापार चला रही हैं। सोच ऐसी कि लॉकडाउन में नौकरी गई तो ऑनलाइन कारोबार शुरू कर दिया।
पिता संग गैराज में किया काम, बनी सहारा
पिता पर घर की जिम्मेदारी थी। उनके गैराज में हाथ बंटाना शुरू किया। उसके बाद शादी हो गई। हालांकि ये सफल नहीं हो पाई। अलग रहने लगी। ब्यूटी पार्लर शुरू किया। बहनों की शादी की। मगर, एक हादसे में रीढ़ की हड्डी में समस्या आ गई। ज्यादा देर खड़े होने में समस्या आती थी। इसलिए सदर में बुटीक का काम डाला। जिसे करते हुए आज 30 साल हो गए हैं। इसमें रहते हुए निर्धन बेटियों और महिलाओं को निशुल्क ब्यूटी पार्लर और बुटीक का कोर्स भी करती हूं। -आशा कपूर, विभव नगर
40 साल में पेंटिंग बनानी शुरू कीं, ऑनलाइन बेच रहीं
मैं 20 वर्ष की थी। स्नातक किया ही था कि शादी हो गई। बहुत कुछ करने के अरमान अधूरे रह गए। अपनी पहचान नहीं बनाने का मलाल सालों तक खटकता रहा। 20 साल गुजर गए। एक दिन मन में पेंटिंग करने का ख्याल आया। दुकानदारों से उसे बनाने की जानकारी लेनी शुरू की और काम आरंभ कर दिया। पेंटिंग बनाती ही नहीं बल्कि ऑनलाइन बेचती भी हूं। पति शुरुआत में हिचकिचाये। कहां-कैसे करोगी जैसे सवाल भी किए। लेकिन बाद में मान गए। आज अपनी एक अलग पहचान बनाने पर गर्व होता है। -शैली चावला, ओल्ड ईदगाह
20 नौकरी के बाद अब कारोबारी हूं
मैं पिछले करीब 20 सालों से जॉब कर रही हूं। लंबा समय होटल इंडस्ट्री में गुजरा है। लॉकडाउन ने झटका दिया। वर्षों की नौकरी एकदम से चली गई। निराशा हुई लेकिन हार नहीं मानी। खुद से ऑनलाइन बिजनेस स्थापित किया। इसमें बेडशीट, सूट समेत घर-गृहस्थी से जुड़े समान की बिक्री करती हूं। इसे कम समय में ही अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। -अनु ओबरॉय, प्रताप नगर
दुकान कर दी थी ध्वस्त, पति का दिया साथ
करीब पांच वर्ष पहले की बात है। पति की बाग फरजाना में वर्षों पुरानी दवा की दुकान थी। जिसे सरकारी अभियान में ध्वस्त कर दिया गया। वो समय बहुत तनावपूर्ण था। एकदम से स्थापित काम उजड़ गया था। पति को अकेला और निराश देख उनका सहारा बनी। घर से ही एक दवा कंपनी वितरण एजेंसी ली। इसमें मैं ऑफिस का काम और पति मार्केटिंग का जिम्मा संभालते हैं। इतना ही नहीं डांसिंग क्लासेज भी चलाती हूं। -स्वाति गुप्ता, नगला पदी
लोगों को नहीं था विश्वास, लगा पाऊंगी फूड काउंटर
आर्थिक रूप से अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती हूं। जहां किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं है। मगर, सवाल खुद के पैरों पर खड़े होने का था। इसलिए फूड काउंटर्स लगाना शुरू किया। यह आसान नहीं था। कैटरर्स कहते कि आप महिला होकर कैसे कर पाएंगी। जिले में इस क्षेत्र में मैं अकेली महिला हूं। कई कैटरर से मुलाकात कर विभिन्न आयोजनों में फूड काउंटर लगाए। 2.5 साल हो गए। अपना खुद का ब्रांड भी स्थापित किया है। -ऋतु चावला, फतेहाबाद रोड
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.