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अपने वेतन से शिक्षिका ने स्कूल को बना दिया एजुकेशन एक्सप्रेस

Published - Tue 08, Oct 2019

मध्य प्रदेश की शिक्षिका संतोष उईके ने स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए पूरे स्कूल को रेलगाड़ी का रूप दे दिया। अपने वेतन से स्कूल की शक्ल बदलवाने वाली शिक्षिका संतोष को इसका असर भी देखने को मिला और स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ गई।

santosh

मध्य प्रदेश । सरकार शिक्षा के लिए अरबो रुपये खर्च करती हैं, लेकिन फिर भी सरकारी विद्यालयों की ओर रुख करने वाले छात्रों की संख्या कम ही होती है। पिछड़े क्षेत्रों में जहां लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, वहां तो लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजते ही नहीं है। मध्य प्रदेश के ​डिंडोरी में भी कुछ ऐसा ही था। यहां की प्रधान अध्यापिका संतोष उईके ने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए परिवारों को समझाया, बच्चों से मिली लेकिन फिर भी स्कूल में छात्रों की संख्या कम ही थी। बच्चों को लुभाने के लिए संतोष ने कुछ करने की ठानी। उन्होंने स्कूल की सूरत को बदलने का प्रण लिया। चूंकि डिंडोरा आदिवासी इलाका है, तो पिछड़ेपन और गरीबी के कारण यहां अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने की जगह मजदूरी कराना ज्यादा पसंद करते थे। संतोष ने बच्चों को खींचने के लिए स्कूल की बिल्डिंग को रेलगाड़ी के रूप में बदल दिया। दूर से देखने में इमारत ऐसी लगने लगी मानों सचमुच की ट्रेन खड़ी है। कमरों के प्रवेशद्वार को रेलगाड़ी के द्वार की तरह ही रंग व रूप दिया गया है, साथ ही दीवारों पर खिड़कियों की आकृति बनी है। उनके इस प्रयास का लाभ ये हुआ कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे रेलगाड़ी के मोह में स्कूल पहुंचना शुरू हो गए। जो बच्चे नियमित विद्यालय नहीं आते थे, उन्होंने भी नियमित विद्यालय आना शुरू कर दिया। स्कूल रूपी इस रेलगाड़ी को नाम दिया गया है- एजुकेशन एक्सप्रेस एमएस खजरी। जिस स्थान पर इसे खड़ा दर्शाया गया है, वह है माध्यमिक शाला, खजरी जंक्शन। इस गाड़ी में अगला हिस्सा पूरी तरह इंजिन की तरह रंगा हुआ है, जिस पर एजुकेशन एक्सप्रेस लिखा है। यहां मध्यान्ह भोजन कक्ष का नाम अन्नपूर्णा कक्ष दिया गया है। गांव के लोग भी विद्यालय की इमारत को रेलगाड़ी का रूप दिए जाने से खुश हैं। गांव के लोग कहते हैं कि दूर से विद्यालय को देखने पर ऐसा लगता है, मानो सच में रेलगाड़ी खड़ी हो। यहां रेलगाड़ी नहीं आई, मगर विद्यालय की प्रधान अध्यापिका और उनके सहयोगियों ने स्कूल की इमारत को ही रेलगाड़ी बनाकर शौक पूरा कर दिया है। विद्यालय को आकर्षक बनाने के लिए शिक्षकों ने अपने वेतन से भी इसमें पैसा लगाया है। यह विद्यालय हर किसी के लिए एक नजीर बन गया है कि अगर शिक्षक चाहें तो बच्चों को विद्यालय आने के लिए अपने प्रयासों से प्रेरित कर सकते हैं।