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मजदूरी की, रिक्शा चलाया पर नहीं टूटने दिया बेटे का सपना, बनाया हॉकी खिलाड़ी

Published - Wed 20, Jan 2021

न हिन्दी का न ऊर्दू की जुबानी लिखूं, मां तो बस मां है, बताओ मैं उसे क्या लिखूं.... मां के प्रेम और समर्पण को बयां करती ये लाइनें यूपी के सफेदाबाद में रहने वालीं मालती पर एकदम सटीक बैठती हैं। उन्होंने पति से अलग होने के बाद बेटे के सपने को पूरा करने के लिए न केवल मजदूरी की, बल्कि रिक्शा भी चलाया। इस दौरान उन्हें कई तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ा। लोगों के ताने सुने, फब्तियों को सहा, लेकिन बेटे का हॉकी खिलाड़ी बनने का सपना न टूटे इसलिए सबकुछ चुपचाप सहती रहीं। मालती की मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनका बेटा देश में सब जूनियर का बेहतरीन खिलाड़ी है। आइए जानते हैं मालती के संघर्ष के बारे में ....

नई दिल्ली। मालती लखनऊ-बाराबंकी सीमा पर स्थित सफेदाबाद की रहने वाली हैं। गरीब परिवार से तल्लुक रखने के कारण कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। पिता को उम्मीद थी कि शादी के बाद बेटी की जिंदगी खुशनुमा रहेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, पति और ससुराल वाले आए दिन किसी न किसी बात को लेकर उलहना देते। आए दिन अभद्रता की जाने लगी। इसी बीच उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद हालात और खराब हो गए। रोज-रोज की कलह से ऊबकर बेटा जब तीन महीने का था तो मालती उसे लेकर पति से अलग हो गईं। मायके की माली हालत अच्छी न होने के कारण मालती के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वह अपना और बेटे का पेट कैसे पालें। मजबूरन उन्हें लोगों के घरों में काम करना पड़ा। खेतों और बन रहे घरों में मजदूरी करनी पड़ी, इससे उनका घर तो किसी तरह चल जाता, लेकिन बेटे पर वह ध्यान नहीं दे पातीं। मजबूरी में उन्हें ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज के बगल में दीवार से सटाकर टीन डालकर रहना पड़ा। धीरे-धीरे बेटा आलोक बड़ा हुआ तो उसकी हॉकी में दिलचस्पी बढ़ी। उसकी लगन देख मालती ने उसे हॉकी खिलाड़ी बनाने का फैसला किया। लेकिन अब परेशानी यह थी कि बेटे को हॉकी खिलाने के लिए पैसे कहा से आए। कई दिनों तक पसोपेश में रहने के बाद मालती ने मेहनत-मजदूरी करके रुपये जुटाए और किराये पर ई-रिक्शा लेकर चलना शुरू किया। आमदनी हुई तो खुद का ई-रिक्शा खरीद लिया। इसी आमदनी से धीरे-धीरे बेटे आलोक को हॉकी खिलाई। बेटा देखते-देखते देश में सब जूनियर का बेहतरीन खिलाड़ी बन गया।

शुरुआत के दिनों में हुई काफी दिक्कत

मालती बताती हैं कि शुरुआत में जब वह रिक्शा चलाने निकलीं तो उनके पिता खूब रोए। मालती ने उन्हें समझाया कि किसी काम में कोई बुराई नहीं है। लड़कियां अब मर्दों की तरह काम करती हैं। धीरे-धीरे पिता को यह बात समझ में आ गई। 2014 में उन्होंने खुद का रिक्शा खरीद लिया। तब से उनके परिवार का खर्च इसी से चल रहा है। मालती के मुताबिक शुरुआत में मर्दों के बीच रिक्शा चलाना बेहद मुश्किल काम था। रिक्शे वाले तरह-तरह की बातें करते थे। लेकिन धीरे-धीरे इसकी आदत हो गई है। कई बार नजरंदाज कर देती हैं, तो कई बार वहीं सड़क पर करारा जबाव भी दे देती हैं। वह चाहती हैं कि उनका एक खुद का घर हो। जहां वह इज्जत की जिन्दगी जीयें। उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि उनका बेटा खूब तरक्की करे और बड़ा आदमी बने।

यूपी की सब जूनियर हॉकी टीम का स्टार खिलाड़ी है आलोक

शुरू में मालती को यह नहीं पता था कि बेटे को हॉकी कहा सिखाई जाए। इसी बीच किसी से उन्हें जानकारी मिली कि उनके घर के पास ही केडी सिंह बाबू सोसायटी की हॉकी अकादमी है। इसमें ओलंपियन सैयद अली, सुजीत कुमार, साई प्रशिक्षक राशिद जैसे लोग ट्रेनिंग देते हैं। यह जानकारी होते ही मालती बेटे को लेकर वहां पहुंच गईं और उसका दाखिला करा दिया। बेटे आलोक की लगन देख कोच ने भी उसका हौसला बढ़ाया और देखते ही देखते वह फारवर्ड का बेहतरीन खिलाड़ी बन गया। फिलहाल आलोक उत्तर प्रदेश की सब जूनियर हॉकी टीम का स्टार खिलाड़ी है। आलोक अखिल भारतीय केडी सिंह बाबू हॉकी प्रतियोगिता में पिछले तीन वर्षों से बेहतरीन खेल दिखा रहा है। हर मैच में तीन-चार गोल उसके नाम जरूर होते हैं। उसकी इसी काबिलियत को देखते हुए पंजाब की चीमा अकादमी ने उसे अपने यहां खेलने का न्योता दिया है। मालती कहती हैं मन तो नहीं कर रहा कि बेटे को भेजें। पर उसके भविष्य को देखते हुए उसे भेजना पड़ेगा।