तमिलनाडु की रहने वाली मालविका अय्यर के जीवन में उस समय अंधेरा छा गया, जब एक ग्रेनेड में हमले में उन्होंने अपने दोनों हाथ गंवा दिए लेकिन उसके बावजूद उन्होंने हिम्म्त नहीं हारी, अपना आत्मविश्वास नहीं खोया और अपनी पढ़ाई पूरी की।आज मालविका संयुक्त राष्ट्र, विश्व आर्थिक मंच जैसी संस्थाओं में दिव्यांगों के हितों में अपनी बात रख चुकी हैं। आज वो अंतरराष्ट्रीय स्तर की मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
नई दिल्ली। बतौर मालविका मेरा जन्म तमिलनाडु के तंजौर जिले में हुआ। हम राजस्थान के बीकानेर चले गए, जहां मेरे पिता इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। तेरह वर्ष की उम्र में एक ग्रेनेड विस्फोट के चलते मैं बुरी तरह जख्मी हो गई। इस हादसे में मेरी दोनों हथेलियां चली गईं। फिर मैंने क्रैश कोर्स में पंजीयन कराया और काफी मेहनत से पढ़ाई की। एक राइटर की सहायता से बोर्ड एग्जाम दिया और अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई। मुझे राज्य स्तर पर रैंक हासिल हुई और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने मुझे राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया। यह मेरी पहली जीत थी।
कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने अर्थशास्त्र में स्नातक और फिर सामाजिक कार्य में परास्नातक किया। इसके बाद मैंने दिव्यांगों पर पीएचडी की। मैं फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर की मोटिवेशनल स्पीकर हूं और दिव्यांगजनों के हकों के लिए काम करती हूं। इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने जिन सात महिलाओं को अपने ट्वीटर हैंडल सौंपे थे, उनमें से एक मैं भी थी। मैं अपने वर्कशॉप्स और प्रेरक बातों के जरिये दिव्यांगों के प्रति लोगों के नजरिये को बदलने में लगी हूं। मैं चाहती हूं कि सामाजिक तौर पर दिव्यांगों को आम लोगों की तरह अपनाया जाए।
दुनिया भर में दिए भाषण
दिव्यांगजनों के अधिकारों पर बात करने के लिए मुझे संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में भी भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। इसके साथ ही वर्ल्ड इकोनॉमिक्स फोरम में इंडिया इकोनॉमिक समिट के दौरान भी मैंने संबोधित किया। पूरी दुनिया में अब तक मैं तीन सौ से ज्यादा प्रेरक भाषण दे चुकी हूं।
कई सपने टूट गए
हादसे से पहले मैं कथक नृत्यांगना थी, लेकिन अब उतनी अच्छी तरह से नृत्य नहीं कर पाती हूं। मैं फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी, पर वह भी नहीं हो पाया। एक समय इन सब चीजों के बारे में सोचकर दुख होता था। पर मैंने खुद को समझाया और अब दिव्यांगों के प्रति लोगों की सोच बदलने का काम कर रही हूं।
परिवार का साथ
कॉलेज के शुरुआती साल काफी कष्टपूर्ण थे। लोग मेरे भविष्य को लेकर चिंता जताते। मैं हमेशा खुद को ढंककर रखती थी और हादसे के बारे में बात नहीं करती थी लेकिन मेरा परिवार हर मौके पर मजबूती से मेरे साथ खड़ा रहा और उन्होंने मुझ पर यकीन किया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.