Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

मार्थल के प्रयासों से कचरा बीनने, भीख मांगने के बजाय स्कूल जा रहे हैं बच्चे

Published - Fri 12, Feb 2021

बुनियादी सुविधाओं की कमी और दुर्व्यवहार के चलते मार्थल ने स्कूल जाना छोड़ दिया था। पर दूसरी बार मौका मिलने पर उन्होंने अपना जीवन तो सुधारा ही, अब अन्य बच्चों को भी अपने सपने साकार करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। 

marthal

मार्थल चेन्नई में रहती है और एक बीपीओ में अकाउंटेंट का काम करती हैं। वह व्यासरपदी शहरी झुग्गियों में पली-बढ़ी हैं। यह इलाका अपराधियों का बसेरा माना जाता है। ऐसी जगह से पढ़-लिखकर निकलना और एक अकाउंटेंट के तौर पर काम करना उनके समुदाय में बहुत से लोगों के लिए प्रतिष्ठित नौकरी हो सकती है। मगर मार्थल के सपने और बढ़े है। वह आईएएस बनना चाहती है। 
मार्थल के पिताजी सिलाई का काम करते हैं। वहीं एकमात्र परिवार चलाने का जरिया है। मार्थल को पिता ने उनको शुरू से ही स्कूल भेजा। हालांकि स्कूल की बुनियादी सुविधाएं अच्छी नहीं थी। इसके साथ ही स्लम एरिया से आने वाले बच्चों के लिए वहां के अध्यापकों की मानसकिता भी ठीक नहीं थी। उन बच्चों के साथ हमेशा ही मौखिक दुर्व्यहार किया जाता था। इससे आहत होकर मार्थल ने आठवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया। उनके साथ ही कई अन्य बच्चों ने भी स्कूल जाना छोड़ दिया। उसी दौरान क्राई इंडिया के एक सहयोगी संगठन के कुछ लोग उनकी बस्ती में आए। उन्होंने शिक्षा जारी रखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। इसके आलवा सभी बच्चों के माता पिता से भी बात की। इसके बाद उन लोगों ने स्कूल जाना शुरू किया। साथी ही संस्थान ने स्कूल के अध्यापकों से भी बात की। इसके  बाद शिक्षकों को जागरूक किया गया और स्कूल में ढांचागत सुविधाएं भी बढ़ाई गईं। इससे स्कूल में बस्ती के बच्चों की संख्या बढ़ गई और शिक्षकों के व्यवहार में भी बदलाव आया। मार्थल सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा पास कर चुकी हैं। वह अभी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही हैं। 

फुटबॉल टीम बनाई

परीक्षा की तैयारी की मेहनत के बीच वह 10वीं और 12वीं के बच्चों के लिए फुटबॉल सिखाने के लिए भी समय निकाल लेती है। उन्हें उम्मीद है कि खेल छोटे बच्चों को बड़े सपने देखने का मौका देगा, जैसा कि उसने उसे दिया। दरअसल, मार्थल ने जब दोबारा स्कूल शुरू किया तो स्कूल के माध्यम से ही उन्होंने फुटबॉल खेलना भी शुरू कर दिया। फुटबॉल ने मार्थाल को प्रेरित रहने में मदद की। इसने उसकी आत्मा को ऊपर उठाया और आत्मविश्वास दिया। इसके बाद मार्थल ने एक ऐसी फुटबॉल टीम बनाई जिसमें भीख मांगने, कचरा बीनने और गलत काम करने वाले बच्चे खेले। इसका उद्देश्य यही था कि बच्चे खेल में खुद को निखारें और बच्चे गलत काम की ओर आकर्षित न हो। झुग्गी के कई बच्चे अब कॉलेज जाने लगे हैं।   

सिविल सेवा की तैयारी

परिवार को आर्थिक सहयोग देने के लिए मार्थल निजी नौकरी भी करती हैं। इसके अलावा वह बस्ती की छवि सुधारने के लिए भी काम कर करती है। मार्थल को भरोसा है कि युवा ही इसकी सूरत बदलेंगे। इसलिए वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी कर रही हैं।