जिस उम्र में लोगों का चलना-फिरना भी मुश्किल होता है, उस उम्र में एक महिला ऐसी हैं, जिनके आगे बड़े से बड़ा फाइटर पानी मांग जाता है। इन्हें केरल की आइरन लेडी के नाम से जाना जाता है। इनकी चुस्ती-फुर्ती किसी 20 साल के युवा जैसी है।
नई दिल्ली। जिस उम्र में लोगों का चलना-फिरना भी मुश्किल होता है, उस उम्र में एक महिला ऐसी हैं, जिनके आगे बड़े से बड़ा फाइटर पानी मांग जाता है। इन्हें केरल की आइरन लेडी के नाम से जाना जाता है। इनकी चुस्ती-फुर्ती किसी 20 साल के युवा जैसी है। यह आज भी अपनी एकेडमी में आने वाले युवाओं को मार्शल ऑर्ट की एक विशेष विधा की ट्रेनिंग देती हैं। एकेडमी में भारतीयों के साथ अफ्रीका और स्पेन के भी 160 युवा ट्रेनिंग लेने हर साल आते हैं। इन्हें यहां पर फ्री में ट्रेनिंग दी जाती है। यह काम केरल में पिछले 10 साल से भी ज्यादा समय से कर रहीं महिला का नाम है मीना राघवन। उनकी एकेडमी में ट्रेनिंग लेने वाले युवाओं के साथ आसपास के लोग उन्हें दादी मां कहकर बुलाते हैं।
कलारिपयाट्टू में हासिल है महारत
केरल की रहने वालीं मीना राघवन जब महज 7 साथ की थीं, तभी से उन्होंने वीपी राघवन की देखरेख में मार्शल आर्ट की सबसे घातक विधाओं में से एक कलारिपयाट्टू की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी। उस समय तक केरल में इस विधा को केवल पुरुष ही सीखते थे। उनका उद्देश्य भी केवल तीज-त्योहारों पर केवल इस पुरानी युद्ध कला का महज प्रदर्शन करना होता था। महिलाएं इससे दूर ही रहती थीं। लेकिन पारंपरिक सोच से अलग मीना ने इस कला को सीखने का फैसला लिया और उनके परिवार ने भी उनका पूरा सहयोग किया। मार्शल ऑर्ट की इस विधा में तलवार और ढाल के साथ हाथ-पैरों से भी अपना बचाव और हमला किया जाता है। मीना राघवन ने महज 17 साल की उम्र में ही इस कला में महारत हासिल कर ली। उन्होंने जिला और प्रदेश स्तर पर इस विधा का प्रदर्शन कर कई खिताब अपने नाम किए।
पति की मौत के बाद खोली एकेडमी
मीना राघवन की शादी 17 साल की उम्र में परिवार वालों ने कर दी। इसके बावजूद उन्होंने कलारियापट्टू का अभ्यास करना नहीं छोड़ा। उस समय तक एक मिथक था कि लड़कियां 20 साल की उम्र से ज्यादा होने पर इस कला को न तो सीख सकती हैं और न ही इसका अभ्यास कर सकती हैं, लेकिन मीना राघवन ने इस मिथक को तोड़ा और अभ्यास जारी रखा। इस बीच उन्होंने दो बेटे और दो बेटियों को जन्म दिया। उनके पति ने भी कभी उन्हें कलारिपयाट्टू से दूर रहने को नहीं कहा। 2007 में मीना अपने पति की असामायिक मृत्यु के बाद टूट गईं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानीरि पति की याद में कदथनदन कलारी संगम एकेडमी खोली। इस समय तक उनकी उम्र 56 साल हो गई थी। उन्होंने यहां पर मुफ्त में युवाओं को मार्शल आर्ट की इस लुप्त होती विधा को सीखाना शुरू किया। कुछ ही सालों में इसकी प्रसिद्धि इतनी फैली कि देश के कोने-कोने के साथ विदेश से भी युवा यहां कलारिपयाट्टू सीखने आने लगे।
एकेडमी के हर युवा को देती हैं मां जैसा प्यार
मीना राघवन अपनी एकेडमी में आने वाले हर युवा को अपने बच्चों की तरह प्यार करतीं हैं। वह उन्हें जहां खुद ट्रेनिंग देते हुए कलारिपयाट्टू की बारीकियों से रूबरू कराती हैं, वहीं उनके लिए खुद ही खाना भी बनाती हैं। मीना राघवन का कहना है कि वह इस कला का विस्तार देखना चाहती हैं। वह अपनी दोनों बेटियों को भी यह सीखा चुकी हैं। मीना कहती हैं कि आज समाज में जिस तरह असुरक्षा का भाव है, खासकर लड़कियों के लिए माहौल एकदम माकूल नहीं है, ऐसे में यह कला उनके लिए काफी मददगार हो सकती है।
पद्मश्री से हो चुकी हैं सम्मानित
मीना राघवन के योगदान और उनके हौसले को देखते हुए भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक पद्मश्री से 2017 में उन्हें सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें राज्य सरकार भी कई तरह के अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.