मेघालय की लैक्विट्यू सियामीलीह का तीस साल पहले आर्थिक तंगी के कारण स्कूल छूट गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। तीस साल बाद बारहवीं पास कर दिखा दिया कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती।
नई दिल्ली। अक्सर छोटी उम्र में परेशानियों के बीच पढ़ाई छूटने के बाद लोग दोबारा पढ़ने की ओर ध्यान ही नहीं देते और सोचते हैं कि उनकी उम्र निकल चुकी है। लेकिन मेघालय की लैक्विट्यू सियामीलीह ने ऐसा नहीं सोचा। मेघालय के री भोई जिले की रहने वाली इस महिला का आर्थिक तंगी और गणित में कमजोर होने के कारण 1989 में स्कूल छूट गया। तब वो दसवीं कक्षा में थीं। धीरे-धीरे उम्र 21 की हुई, तो परिवार ने शादी कर दी। इस बीच चार बच्चों की मां बन गईं, लेकिन शादी चली नहीं और टूट गई। वो जानती थीं कि शिक्षित होना कितना जरूरी है और शिक्षा के बिना इंसान कुछ भी नहीं है। लेकिन बच्चों को बड़ा करने और जिंदगी की आपाधापी में सबकुछ पीछे छूटता जा रहा था। 2015 में उन्होंने महसूस किया पढ़ना चाहिए और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग के इवनिंग क्लास में एनरोल करवाया। उस समय वो एक लोकल स्कूल में खासी पढ़ाती थीं। 2 साल बाद उन्होंने दसवीं की परीक्षा उर्तीण कर ली।
लेनी पड़ी अधिकारियों की परमिशन
दसवीं पास करने के बाद उन्होंने आगे पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया और जिस स्कूल में वो पढ़ाती थीं, वहां के अधिकारियों से स्पेशल परमिशन ली और बारहवीं की पढ़ाई शुरू की। एक स्कूल में रेगुलर एडमिशन लिया और बच्चों की तरह ही यूनिफ़ॉर्म पहनकर कॉलेज जाती और क्लास करती। उन्होंने, खासी, पॉलिटिकल साइंस, इकॉनॉमिक्स, एजुकेशन और इंग्लिश लिया था। मेहनत और लगन का परिणाम ये रहा कि बारहवीं में लाखों बच्चों के साथ उन्होंने भी परीक्षा दी और थर्ड डिविजन से पास हो गईं। वह कहती हैं कि वो खासी में ग्रेजुएशन करना चाहती हैं
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.