मणिपुर की मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर भारत के लिए पदकों का खाता खोला। उन्हें बस मलाल इस बात का रह गया कि गोल्ड नहीं ला सकीं। ओलंपिक में भारोत्तोलन में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली वो पहली महिला खिलाड़ी हैं।
नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों का एक बड़ा दल भाग लेने पहुंचा। जिन खिलाड़ियों से उम्मीद थी, वो अच्छा नहीं कर सके। ओलंपिक में पिछली बार की तरह ही बेटियों ने भारत का मान रखा। भारत की झोली में पहला ओलंपिक पदक डाला मणिपुर की खिलाड़ी साइकोम मीराबाई चानू ने। मीराबाई ने भारत के लिये भारोत्तोलन में सिल्वर मेडल जीता। भारतोलन में ओलंपिक का सिल्वर मेडल जीतने वाली वो भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं। रियो ओलंपिक में चूकने के बाद मीरा ने खुद से बाद किया था कि वो ओलंपिक मेडल जरूर लाएंगी और टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने ये सपना पूरा किया। गोल्ड न ला पाने की कसक दिल में है, जिसे वो अगले ओलंपिक में पूरा करना चाहती हैं।
बचपन से ही था वजन उठाने का शौक
मणिपुर के नोंकपोक काकचिंग के एक मैतेई हिंदू परिवार मे मीराबाई का जन्म 8 अगस्त 1994 को हुआ। पिता पीडब्ल्यूडी में कार्यरत्त थे और माता गृहणी थीं। छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई को बचपन से ही वजन उठाने का शौक रहा। बचपन में वो अपनी क्षमता से ज्यादा वजन यूं ही उठा लेतीं। जब वह 5-6 साल की थी तो वह पानी से भरी बाल्टी लेकर पहाड़ों पर चढ़ जाती। उनकी प्रतिभा को माता-पिता ने दस साल की उम्र होने पर पहचाना। जब मीरा 10 साल की थी तब अपनी बड़ी बहनों के साथ खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ी के भारी गट्ठर उठा कर लाती थी। मीरा की बड़ी बहनें भी इतना वजन नहीं उठा पाती थीं। जबकि उनके भाई इस वजन को उठाने में हाफ जाते। मीराबाई बचपन से ही खेलों की ओर रुझान रहा। वह टीवी पर फिल्में और सीरियल की जगह स्पोर्ट्स देखती। एक बार उन्होंने वेटलिफ्टर कुंजू रानी को वेटलिफ्टिंग करते देखा और माता-पिता से अपनी इच्छा जाहिर की। माता-पिता को पता था कि बेटी वजन उठा सकती है, इसलिए उन्होंने बेटी को आगे बढ़ने का साहस और साथ दिया।
चुनौतियों से भी किया सामना
परिवार के सामने दिक्कत ये थी कि उनके गांव के आसपास कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं था। ट्रेनिंग सेंटर उनके गांव से बीस किलोमीटर दूर इंफाल में था। लेकिन माता-पिता बेटी को घर से इतना दूर अकेले नहीं भेजना चाहते थे। पर मीरा की जिद और लगन के आगे उन्हें भी झुकना पड़ा। मीरा ने शुरुआत में गांव में ही बांस के बंडलों को उठाकर अभ्यास करना शुरू किया और उसके बाद इंफाल जाकर ट्रेनिंग लेने लगीं। चूंकि परिवार में कमाने वाले अकेले पिता थे, तो मीरा रोजाना ट्रक ड्राइवरों से लिफ्ट मांगकर रोजाना चालीस किलोमीटर का सफर कर ट्रेनिंग करने जातीं। वेट लिफ्टिंग के लिए डाइट काफी यूनिक लेनी होती है, तो इसके इंतजाम के लिए परिवार ने गांव में ही चाय-नाश्ते की दुकान खोली। पिता नौकरी के बाद दूसरों के खेतों में हल चलाते और इस तरह उनकी डायट का इंतजाम हो पाता। इंफाल में ही ट्रेनिंग के दौरान ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लिया और मेडल भी जीता। इसी दौरान उनका चयन साई में हो गया और वह इंफाल में ही रहने लगीं। 2016 रियो ओलिंपिक में एक बार भी सही वेट नहीं उठा पाने के कारण मीराबाई को डिसक्वालिफाई कर दिया गया था। इस विफलता के बाद परिवार वाले उन पर शादी का दबाव बना रहे थे। उनका कहना था कि अब खेल बहुत हुआ, शादी करो और घर बसाओ, लेकिन देश के लिए मेडल जीतने का जुनून रखने वाली मीरा ने साफ इनकार कर दिया। कहा- जब तक ओलिंपिक में मेडल नहीं जीतूंगी तब तक शादी नहीं करूंगी।
कई बड़े मुकाबले किए अपने नाम
2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स (ग्लासगो) में 48 किलोग्राम वर्ग में मीरा ने सिल्वर मेडल जीता। 2016 में गुवाहाटी में संपन्न 12वें साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता। 2018 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया जोकि महिला वर्ग की 48 किलोग्राम वेट लिफ्टिंग में था। 2016 में संपन्न रियो ओलंपिक में भी चयन हुआ था, लेकिन इसमें इनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। चानू ने 24 जुलाई 2021 को ओलम्पिक में 49 किग्रा भारोत्तोलन में भारत के लिए पहला रजत पदक जीता। उन्होंने स्नैच में 87 किलोग्राम भार उठाते हुए,क्लीन एंड जर्क में 115 किलोग्राम सहित कुल 202 किलोग्राम वजन उठा कर रजत पदक पर कब्जा किया।
मिल चुके हैं कई बड़े सम्मान
चानू को भारत सरकार द्वारा “पदम श्री” से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी इन्हें दिया गया। हाल ही में ओलंपिक में पदक जीतने पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीराबाई चानू से मुलाकात की और हाथ जोड़कर उन्हें सम्मानित किया। साथ ही उन्हें 2 करोड़ रुपये और प्रमोशन देने की भी घोषणा की। वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने मीराबाई चानू को राज्य पुलिस विभाग में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में नियुक्त की। साथ ही एक करोड़ रुपये इनाम के रूप में देने की घोषणा की है। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने पहले ही ये ऐलान किया था कि सोना जीतने पर 75 लाख रुपये, चांदी जीतने पर 40 लाख और तांबा जीतने पर 25 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा. मतलब आईओए की तरफ से मीराबाई चानू को 40 लाख का कैश इनाम दिया जाएगा।
भारत के लिए गोल्ड जीतना है सपना
मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत को पहला मेडल दिलाया और भारतोलन में सिल्वर मेडल जीता। भारत के लिए महिला वर्ग में सिल्वर मेडल जीतने वाली वे भारत की एकमात्र खिलाड़ी हैं। मीराबाई कहती हैं कि बेशक वो इस बार गोल्ड जीतने से चूक गईं, लेकिन उनका लक्षय अगले ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है और वो ऐसा करके ही रहेंगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.