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दुलारी देवी ने पेटिंग बनाई और मिला पदमश्री

Published - Wed 27, Jan 2021

दरभंगा की दुलारी देवी अनपढ़ हैं, लेकिन पूरी दुनिया उनका सम्मान करती है। कभी आजीविका के लिए झाड़ू-पोछा लगाने का काम भी करना पड़ा, लेकिन अपने हाथों के जादू से उन्होंने मधुबनी पेटिंग को नई दिशा दी और इसी के चलते उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।

नई दिल्ली। कभी वो आजीविका चलाने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम करती थीं। अनपढ़ होने के कारण कोई ढंग का रोजगार नहीं मिला, लेकिन दुलारी के हाथों में एक जादू है। मधुबनी पेटिंग बनाने में उन्हें महारथ हासिल है। उनकी कला को दुनियाभर में पहचान मिल चुकी है और इसी के चलते उन्हें देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार मधुबनी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
आसानी नहीं थी राह
मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड के रांटी गांव की रहने वाली दुलारी देवी बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। मल्लाह जाति में जन्मीं दुलारी का बचपन बेहद संकट में बीता। परिवार ने गरीब के चलते बारह साल की उम्र में ही शादी कर दी। सात सात ससुराल में बिताए। इस दौरान एक पुत्री को जन्म दिया। बेटी की अचानक मौत हो गई, तो वह मायके आकर रहने लगीं। परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी, तो उन्होंने लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा कर आजीविका चलाई।
जब उनके हुनर को पहचाना गया
काम की तलाश में वो एक बार बिहार की प्रख्यात मिथिला आर्टिस्ट कर्पूरी देवी के घर गईं। जब भी काम से फुर्सत मिलती। वो
अपने घर-आंगन को माटी से पोतकर, लकड़ी की कूची बना कल्पनाओं को आकृति देने लगीं। कर्पूरी देवी का साथ मिला तो उनके हुनर को और पहचान मिलने लगी। दुलारी ने मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना ली। धीरे-धीरे वो इस कला में बेहद पारीखी हो गईं और आज देश और दुनिया में उनका नाम है।

सात हजार से ज्यादा पेटिंग बनाईं
दुलारी अब तक सात हजार से ज्यादा पेटिंग बना चुकी हैं। अलग-अलग विषयों पर बनाई गई उनकी पेटिंग कई जगह चयनित भी हुई है। वह राज्य पुरस्कार, के अलावा पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं। गीता वुल्फ की किताब के अलावा इग्नू के लिए मैथिली पाठ्यक्रम की पुस्तक उन्हीं की पेंटिंग चुनी गई। दुलारी देवी उन लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जिन्हें अपनी प्रतिभा को आगे ले जाना चाहते हैं।