कभी कैंसर पीड़ित रह चुके अपने पति से फाल्गुनी ने जाना कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक गरीबों की पहुंच आसान नहीं होती। इसलिए उन्होंने पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में लोगों को निःशुल्क इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र शुरू किए।
फाल्गुनी नेवतिया ने युवावस्था में कभी नहीं सोचा था कि वह एक समाज सेविका बनेंगी। लेकिन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात अरुण से हुई और उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया। फाल्गुनी का जन्म पश्चिम बंगाल के एक गुजराती परिवार में हुआ। कॉलेज में उनकी बातचीत अक्सर अरुण से होती रहती थी। इसी दौरान अरुण ने फाल्गुनी को बताया कि उसे दस वर्ष की उम्र में ब्लड कैंसर हो गया था। उनका इलाज हुआ और वह ठीक हो गए। कॉलेज के बाद दोनों ने शादी कर ली। फाल्गुनी एक स्कूल में गणित पढ़ाने लगी और अरुण पारिवारिक व्यवसाय संभालने लगे। अरुण ने जब अपनी बीमारी के अनुभव फाल्गुनी से साझा किए तब उन्हें अहसास हुआ कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं तक गरीबों की पहुंच आसान नहीं है। अगर अरुण का परिवार समृद्ध न होता, तो अरुण बच नहीं पाता। इसलिए उनके परिवार ने पास के ग्रामीण इलाके में गरीब तबके के लोगों के लिए एक मेडिकल डिस्पेंसरी शुरू की। वहां पहले सिर्फ जरूरी दवाइयां गरीबों को मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाती थीं। और फिर वर्ष 2007 में एक क्लिनिक शुरू करवाया। इस बीच, अरुण का रोग फिर से उभर आया। फाल्गुनी ने नौकरी छोड़ दी और अरुण का ध्यान रखने के साथ क्लिनिक के काम में मदद करने लगी। जैसे-जैसे लोगों को इस पब्लिक क्लिनिक का पता चल रहा था, इलाज के लिए आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी। जब लोग अधिक अने लगे तब उन्होंने दूसरे इलाकों में भी इसे फैलाने के बारे में सोचा और यहां से शुरुआत हुई, रूरल हेल्थ केयर फाउंडेशन की। इसके बाद कई ग्रामीण इलाकों में सेंटर्स खोले।
मिला उद्देश्य
इस बीच वर्ष 2013 में उनके पति अरुण का निधन हो गया। लेकिन गरीबों तक सही स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के उनके उद्देश्य को फाल्गुनी ने अपना सपना बना लिया। अरुण के द्वारा सिखाया गया उनका अनुभव उनके जाने के बाद भी फाल्गुनी के साथ रहा। और उन्होंने सब कुछ संभाल लिया।
परिवार का सहयोग
ससुराल वालों ने इस काम में फाल्गुनी को कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। घर का हर सदस्य फाउंडेशन के काम में हाथ बंटाता है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में रूरल हेल्थ केयर फाउंडेशन के कुल 17 सेंटर हैं। ये राज्य के आठ जिलों में फैले हुए हैं।
निःशुल्क इलाज
प्रत्येक सेंटर पर यही प्रयार रहता है कि दवाइयां कभी भी खत्म न हों, साथ ही लोगों को उनके लिए कोई शुल्क न देना पड़े। हर महीने हजारों लोग इलाज करवाने आते हैं। कुछ अन्य संगठनों के साथ मिलकर फाल्गुनी आंख और दांत से संबंधित बीमारियों का भी इलाज कर रही हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.