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पुरानी जींस से नए जमाने की समाज सेवा

Published - Tue 14, Jan 2020

फैशन के इस दौर में हम जींस का रंग फीका होने या फैशन बदलने के बाद ही उसे चलन से बाहर कर देते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी पुरानी जींस किसी के चेहरे पर खुशी ला सकती है, शायद नहीं। लेकिन जोधपुर राजस्थान की मृणालिनी राजपुरोहित और उसके दो दोस्तों ने पुरानी जींस पुरानी जींस से समाजसेवा का एक काम शुरू किया, जो गरीब स्कूली बच्चों के चेहरे पर खुशी ला रहा है।

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नई दिल्ली। राजस्थान का जोधपुर शहर। राजसी ठाठ-बाठ, पुराने महल लिए ये शहर जाना जाता है। इसी शहर की बेटी मृणालिनी राजपूत जो फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हैं, उन्होंने अपने दो दोस्त अतुल गहलोत और निखिल मेहता के साथ मिलकर एक स्टार्टअप शुरू किया 'सोलक्राफ्ट।' इसका मकसद पुरानी हो चुकी जींसों से जरूरतमंद गरीब बच्चों के लिए स्कूल किट जिसमें बैग, जूते आदि शामिल हैं बनाना था। उनका स्टार्टअप आज गरीब बच्चों की मदद भी कर रहा है और लोगों को रोजगार भी दे रहा है।

पहले स्टार्टअप, फिर एनजीओ अब कंपनी
मृणालिनी और उनके दोस्त इस्तेमाल हो चुकी डेनिस जींस की अपसाइकिल कर पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचा रहे हैं। एक जींस को गलने में कम से कम सौ साल का समय लगता है। ऐसे में ये इस्तेमाल हो चुकी पुरानी जींस जरूरतमंद बच्चों के लिए बैग, चप्पल, पेंसिल बॉक्स बना रहे हैं। मृणालिनी फैशन डिजाइनर, अतुल व्यवसायी और निखिल मेहता इंजीनियर हैं। स्टार्टअप को एनजीओ से कंपनी के रूप में कन्वर्ट कर रहे सोलक्रॉफ्ट के फाउंडर सीओओ अतुल गहलोत बताते हैं कि अभी तक वे अपना प्रॉडक्ट विभिन्न स्तरों से आंगनबाड़ी की महिलाओं के माध्यम से गलियों, गांवों के बच्चों तक पहुंचाते रहे हैं लेकिन अब उसे सिस्टमेटिक लेबल पर ले जाने के लिए जिले के स्कूल-कॉलेजों से कंपनी की टीम संपर्क कर रही है। टीम के लोग इलाके के हर सरकारी स्कूल में जाकर प्रिंसिपल से अपने प्रॉडक्ट की लिस्ट साझा करते हुए एक बड़ा रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। इस काम के लिए अब तक उन्हें पांच लाख रुपए की फंडिंग मिल चुकी है। वह आगामी दो साल के भीतर चार करोड़ रुपए के कारोबार का लक्ष्य कर चल रहे हैं। उनके एनजीओ 'सोलक्रॉफ्ट' नाम से रजिस्ट्रेशन नहीं मिला तो उनकी स्टार्टअप कंपनी 'जेनसोल प्राइवेट लिमिटेड' नाम से रजिस्टर्ड करानी पड़ी है।

कर चुके हैं कई बच्चों की मदद
उनकी कंपनी को नौ माह से ऊपर का समय हो चुका है। अब तक वो 1200 बच्चों की मदद कर चुक हैं। ‘सोलक्राफ्ट’ की टीम ने जरूरतमंद बच्चों तक अपने उत्पाद पहुंचाने के अलावा लोगों को रोजगार देने का भी काम किया है। अभी 5 कारीगर सोलक्राफ्ट के साथ जुड़कर अपनी आजीविका कमा रहे हैं। उनकी टीम ने  जीन्स पेंट्स और डेनिम को टारगेट किया है। किसी भी जींस या डेनिम को लोग कुछ साल से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते। चूंकि इस कपड़े की खासियत यह होती है कि बहुत बार पहने जाने के बाद भी यह फटता, घिसता नहीं और मजबूत बना रहता है। हालांकि गांव के बच्चे आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं, तो उनकी टीम विशेषतौर पर उनके लिए ही आइटम डिजाइन करती है। इनकी कोशिश रहती हैं कि बुनियादी सुविधाओं से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले उन बच्चों की मदद की जाए, जिनके पास अच्छा बैग और चप्पल नहीं है। इसके लिए टीम ने स्कूल बैग, चप्पल, ज्योमैट्री बॉक्स को मिलाकर एक किट तैयार की है। यह सभी उत्पाद डेनिम फैब्रिक को अपसाइकिल करके बनाए गए हैं। टीम सालभर के दौरान बांटे गए किट्स को जाकर देखती है कि उनके उत्पाद कितने उपयोग किए गए। यदि बैग, चप्पल या अन्य कोई उत्पाद फट गए हैं या कुछ और परेशानी है, तब भी कोशिश रहती है कि उन्हें बदल दे।

दो लाख बच्चों तक पहुंचना है लक्षय
टीम ने आने वाले दो साल में दो लाख बच्चों तक पहुंचने का लक्षय बनाया है। इसके लिए उन्होंने अपनी किट की कीमत 399 रखी है। फंडिंग के माध्यम से वो अपने काम को आगे बढ़ा रही हैं। टीम आने वाले दिनों में ‛डेनिम कलेक्शन ड्राइव’ शुरू होने जा रही है, ताकि काम में न आ रही जींस/डेनिम आसानी से मिलना शुरू हो जाए। कुछ बड़े कॉर्पोरेट घरानों से सीएसआर फंड को लेकर बातचीत जारी है। टीम ने एक लाख किट बांटने का उद्देश्य रखा गया है, इसके लिए 10 टन डिस्कार्ट डेनिम जींस को अपसाइकिल किया जाना है।

बच्चों को खुश देखकर खुश होती है टीम
मृणालिनी राजपुरोहित की टीम जब बच्चों को निशुल्क किट बांटती है, तो बच्चों को खुश देकर उनकी टीम बेहद खुश होती है। मृणालिनी कहती है कि बेशक ये हमारे लिए बहुत छोटा सा प्रयास है, लेकिन गरीब बच्चों के लिए ये किसी बेशकीमती गिफ्ट से कम नहीं है।