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मां ने एक-एक रुपये जोड़कर पढ़ाया, बच्चों को ट्यृशन पढ़ाकर बनीं पीसीएस, अब जीता मिसेज इंडिया का खिताब

Published - Wed 18, Sep 2019

ऋतु ने पहले अपनी मेहनत के दम पर पीसीएस परीक्षा पास कर अपने सपनों की तस्वीर में रंग भरा, फिर अपनी व्यस्ततम जिंदगी से थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर मिसेज इंडिया 2019 बन उन लोगों के सामने मिसाल कायम की, जो हर समय वक्त का बहाना बताकर कुछ नया करने से कतराते रहते हैं। 2004 बैच की पीसीएस अफसर ऋतु फिलहाल एलडीए में ज्वांइट सेकेट्री के पद पर तैनात हैं। ऋतु की शादी 2008 में आईएएस अफसर और अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास एलवाई से हुई थी। वह दो बच्चों (एक बेटा और एक बेटी) की मां हैं।

लखनऊ। हौसला और कुछ करने की चाहत हो तो इसमें आर्थिक परेशानी बाधा नहीं बन सकती है। यह बात एकदम सटीक बैठती है पीसीएस अफसर ऋतु सुहास पर। ऋतु ने पहले अपनी मेहनत के दम पर पीसीएस परीक्षा पास कर अपने सपनों की तस्वीर में रंग भरा, फिर अपनी व्यस्ततम जिंदगी से थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर मिसेज इंडिया 2019 बन उन लोगों के सामने मिसाल कायम की, जो हर समय वक्त का बहाना बताकर कुछ नया करने से कतराते रहते हैं। 2004 बैच की पीसीएस अफसर ऋतु फिलहाल एलडीए में ज्वांइट सेकेट्री के पद पर तैनात हैं। ऋतु की शादी 2008 में आईएएस अफसर और अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास एलवाई से हुई थी। वह दो बच्चों (एक बेटा और एक बेटी) की मां हैं। मिसेज इंडिया प्रतियोगिता के लिए ऋतु ने काफी तैयारी की थी। अपने व्यस्त शेड्यूल में वह रात में घर पहुंचने के बाद किताबें पढ़ने के साथ प्रतियोगिता से जुड़ी अन्य तैयारियां करती थीं। 10 सितंबर से आयोजित इस प्रतियोगिता में देश के 20 राज्यों से 60 महिलाओं ने हिस्सा लिया था। उन्होंने टैलेंट, कॉस्ट्यूम व प्रश्नोत्तरी राउंड में सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़कर यह खिताब अपने नाम किया। ऋतु बताती है, वे इस खिताब के लिए पिछले 9 महीने से तैयारी कर रही थीं। जनवरी में लखनऊ में स्टेट लेवल जीता, इसके बाद इंडिया लेवल की प्रतियोगिता की तैयारियां शुरू की। इसमें डांस, रैंप वॉक आदि शामिल था। ऋतु को यहां 21 नंबर मिला था। ऋतु के मुताबिक 21 उनका लकी नंबर है।  

तंगहाली में गुजरा बचपन
 ऋतु के पीसीएस बनने की राह काफी मुश्किलों भरी रही। 16 अप्रैल 1983 को लखनऊ के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मीं ऋतु के पिता आरपी शर्मा लखनऊ हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं। वहीं, मां जनक देवी गृहणी हैं।  ऋतु बताती हैं कि हम 2 बहन और एक भाई हैं। हमारी पढ़ाई के समय पापा की इनकम ज्यादा नहीं थी। इस वजह से हमे काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्ट्रगल करना पड़ा।

पीसीएस की तैयारी के फैसले पर नाराज हो गए थे रिश्तेदार
ऋतु ने बताया कि मेरे खानदान में लड़कियों के घर से बाहर निकलने को अच्छा नहीं समझा जाता था। मैंने 2003 में जब पीसीएस की तैयारी करने का फैसला किया, तो तब काफी समस्याओं का सामना  करना पड़ा। रिश्तेदार मेरे घर से बाहर निकलकर पढ़ाई करने से खुश नहीं थे, वे विरोध में उतर आए थे, लेकिन मेरे मम्मी-पापा ने पूरा सहयोग किया और मेरे फैसले के साथ खड़े रहे। मां एक-एक रुपये जोड़ा करती थी, ताकि हम भाई-बहनों की छोटी-छोटी जरूरतें पूरी हो सकें।

अखबार तक खरीदने के नहीं होते थे पैसे
ऋतु ने बताया कि मेरे पास पीसीएस की कोचिंग की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने सेल्फ स्टडी करने का डिसीजन लिया। मैं एक अंग्रेजी अखबार रोजाना पढ़ती थी, लेकिन महीने के आखिर में मेरे पास पेपर वाले को देने के लिए 100 रुपए भी नहीं होते थे। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मैंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।

सहेली के नोटस की मदद से की सेल्फ स्टडी    
ऋतु ने बताया कि उनकी एक सहेली पीसीएस की कोचिंग करती थी। मैं रोजाना शाम को उसके घर जाकर उसके नोट्स से अपना नोट्स तैयार करती थी। बाद में उसे पढ़ा करती थी। 2003 में मैंने एग्जाम दिया, लेकिन किसी ने कोर्ट में ऑब्जेक्शन कर दिया, जिसकी वजह से रिजल्ट एक साल बाद घोषित हुआ। बेरोजगारी के दौर में मेरे लिए एक साल का समय काटना बड़ा मुश्किल था। मेरे लिए एक दिन एक साल के बराबर था। 2004 में मेरा रिजल्ट आया और मैं उसमें पास हो गई। इसके बाद जिंदगी काफी आसान हो गई। रिश्तेदारों के मुंह भी बंद हो गए।

 

पीसीएस के इंटरव्यू के लिए ऐसे की तैयारी
ऋतु ने पीसीएस इंटरव्यू के लिए रोजाना शीशे के सामने बैठकर खुद को देखते हुए अंग्रेजी में बोलने की प्रैक्टिस करती थीं। इससे उनके बोलने की झिझक खत्म हो गई। ऋतु को पहली पोस्टिंग मथुरा में एसडीम के तौर पर मिली। उसके बाद एसडीएम आगरा, जौनपुर और सोनभद्र में भी उन्होंने अपने सेवाएं दीं। बाद में अपर नगर आयुक्त इलाहाबाद के पद पर अप्वाइंट हो गई।

बूथ दोस्त एप बनाकर आईं थीं चर्चा में
ऋतु सुहास ने 'बूथ दोस्त' नाम से एक मोबाइल एप को बनाया है। इसका इस्तेमाल  यूपी निकाय चुनाव में आजमगढ़ जिले में किया गया था। इलेक्शन कमीशन ने ऋतु के इस काम को सराहा। इस एप के लिए विश्व दिव्यांग दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऋतु को सम्मानित भी किया था। ऋतु बताती है, मैंने पिछले साल जून में ‘बूथ दोस्त’ नाम से एक मोबाइल एप तैयार किया था, जिसे इस साल चुनाव में लागू किया गया। ये फ्री ऑफलाइन एप है। इसके जरिए आजमगढ़ सदर और तहसील के लोगों ने दिव्यांगों को ट्रेस किया और उनसे फार्म भरवाकर उनसे वोटिंग कराई।