जो मुसीबतों से हार नहीं मानता और उनका मुकाबला करता है, वहीं जीवन में सफलता को छूता है। भारतीय ताइक्वांडो खिलाड़ी निशिता सुनीत कोटवाल उन्हीं लोगों में से एक हैं।
मुंबई। ताइक्वांडो से जुड़े कई खिताब अपने नाम कर चुकी निशिता अपने खेल को लेकर इतनी समर्पित है कि वो किसी रेगुलर स्कूल से पढ़ाई ना कर ओपन स्कूल से शिक्षा हासिल कर रही है। ये इसलिए ताकि वो ज्यादा से ज्यादा वक्त अपने खेल को दे सके। खास बात ये है कि निशिता के इस फैसले का उनके माता-पिता ने भी साथ दिया। महाराष्ट्र के पुणे की निशिता के परिवार में खेल एक परंपरा बन चुकी है। वो एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जहां पिता से लेकर दादी तक किसी ने किसी रूप में खेलों से जुड़े रहे हैं। उनकी दादी अचला कर्निक राष्ट्रीय स्तर की बैंडमिंटन खिलाड़ी रही हैं। पिता भी खिलाड़ी रह चुके हैं और खुद निशिता नेशनल लेवल की ताइक्वांडो खिलाड़ी हैं। अब तक वो 3 बार ताइक्वांडों में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीत चुकीं हैं। उनका सपना है कि नेशनल तो जीत चुकीं, वो अब भारत के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल लेकर आएं।
साधन सीमित हैं लेकिन हौसला बुलंद है
निशिता मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पास खेलों के लिए संसाधन बेहद कम हैं, लेकिन वो हारी नहीं मानतीं। स्थानीय स्तर पर ही वो सीमित साधनों से ताइक्वांडों की ट्रेनिंग ले रही हैं। उनको अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग के साथ अच्छे उपकरण, सेंसर युक्त दस्ताने और दूसरे साजो सामान के लिए पैसों की सख्त जरूरत है। लेकिन अभी तक उनके पास मदद पहुंची नहीं है। वो कहती हैं कि पिता ने उनकी उम्मीद से ज्यादा मदद की है, लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया है। वो कहती हैं कि अगर उनको मदद मिले, तो वो बड़े मुकाबले जीत सकती हैं।
बचपन से ही है लगाव
निशिता जब पांच साल तक थीं, तो तभी उनका लगाव इस खेल के प्रति जागा और वह कम उम्र में ही ताइक्वांडों की ट्रेनिंग लेने लगीं। उनके पिता खुद कॉलेज स्तर पर ताइक्वांडो के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। उनके पिता के जानकार अरविंद निषाद ने उनको इस खेल की ओर मोड़ा और ट्रेनिंग शुरू की। निशिता को नेशनल लेवल का खिलाड़ी बनने में मदद की। निशिता को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब मिली जब उन्होने अंडर 14 कैटेगरी में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल हासिल किया।
चुनौतियां भी कम नहीं
निशिता को हमेशा चुनौतियों से जूझना पड़ा। जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। पिछले साल स्टेट लेवल के फाइनल मैच में उनका मुकाबला अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी के साथ हुआ। इस दौरान उनको काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा। निशिता के पास खेलों की तैयारियों के लिए महंगे उपकरण जैसे प्रोटेक्शन गियर के लिए सेंसर चेस्ट गार्ड, सेंसर युक्त मोजे, सेंसर हेड गॉर्ड जैसे कई उपकरण नहीं है, लेकिन इसकी कमी के बाद भी उन्होंने अपना ध्यान खेल से नहीं हटने दिया औरअपनी मेहनत के दम पर उन्होने 2016 और 2017 में अंडर 17 कैटेगरी में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल हासिल किया। फिलहाल निशिता का लक्ष्य आने वाले यूथ ओलम्पिक में हिस्सा लेकर गोल्ड मेडल हासिल करना है। इसके लिए वो बुल्गारिया में ट्रेनिंग ले रही हैं। इसके अलावा वो कई दूसरे देशों में जाकर और टूर्नामेंट खेलना चाहती हैं। जिससे उनकी वर्ल्ड रेंकिंग में सुधार हो सके और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर सकें।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.