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लंदन की नौकरी छोड़ लद्दाख आईं नेहा ने बदल दी 6 गांवों की तस्वीर

Published - Sun 23, Aug 2020

लंदन में नेहा के पास रहने को अच्छा घर और मोटी सैलरी थी। इन सबके बावजूद जब भी वह अपने देश के किसानों के हालात और उनकी बदहाली देखतीं तो उनका दिल पसीज उठता था। काफी दिनों की कसमकस के बाद एक दिन नेहा ने लंदन की नौकरी को छोड़ भारत लौटने का फैसला किया और सीधे यहां चली आईं। कुछ दिन चंपारण में रहने बाद नेहा ने देश के सबसे दुर्गम क्षेत्र माने जाने वाले लद्दाख में बसने और यहां के किसानों की तकदीर संवारने का फैसला किया।

नई दिल्ली। लंदन और अमेरिका जैसे देशों में अच्छी नौकरी पाकर वहीं सेटल होने का सपना आज देश के हर युवा का है। लेकिन कई युवा ऐसे भी हैं, जो यह मुकाम हासिल करने के बावजूद अपने देश लौटकर यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं। ऐसी ही एक युवा हैं नेहा उपाध्याय। मूलत: बिहार के चंपारण की नेहा लंदन में बतौर रिसर्च ऑफिसर नौकरी कर रही थीं। उनके पास रहने को अच्छा घर और मोटी सैलरी थी। इन सबके बावजूद जब भी वह अपने देश के किसानों की हालात और उनकी बदहाली देखतीं तो उनका दिल पसीज उठता था। काफी दिनों की कसमकस के बाद एक दिन नेहा ने लंदन की नौकरी को छोड़ भारत लौटने का फैसला किया और सीधे यहां चली आईं। कुछ दिन चंपारण में रहने बाद नेहा ने देश के सबसे दुर्गम क्षेत्र माने जाने वाले लद्दाख में बसने और यहां के किसानों की तकदीर संवारने का फैसला किया। फिर क्या था वह लद्दाख पहुंचीं और किसानों को ऑर्गेनिक खेती के गुर सिखाने के साथ ही सोलर तकनीक और प्रोसेसिंग से भी रूबरू कराया। आज नेहा 6 गांवों के तकरीबन 650 किसानों के जीवन में खुशहाली ला चुकी हैं।

2012 से ही कुछ करना चाह रही थीं

34 वर्षीय नेहा एक सोशल एंटरप्राइज, गुण ऑर्गनिक्स की फाउंडर हैं। वह किसानों की मदद करने के साथ ही उन्हें पहचान भी दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही हैं। नेहा ने साल 2012 में लंदन से अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी की और इसके बाद वहीं पर बतौर रिसर्च ऑफिसर नौकरी करने लगीं। पहले कुछ दिन तो नेहा को लगा कि वह जो चाहती थीं वह उन्हें मिल गया, लेकिन फिर उन्हें उलझन महसूस होने लगी। वह जब भी टीवी या अखबार में भारत के किसानों की बदहाली के बारे में पढ़ती या देखतीं परेशान हो जातीं।  नेहा को हमेशा कुछ अधूरा-सा लगता था। उन्हें लगता कि वह इससे बेहतर कर सकती हैं। लोगों की मदद कर उनका जीवन संवार सकती हैं। इसी बीच उन्होंने महसूस किया कि लंदन में भले ही खान-पान भारत से अलग हो, लेकिन रासायनिक खेती की वजह से होने वाली बीमारियां दोनों देशों में एक जैसी ही हैं। इसी बीच नेहा ने कहीं पढ़ा कि एक स्वस्थ जीवन के लिए आर्गेनिक खेती कितनी जरूरी है। धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी इस क्षेत्र में बढ़ती चली गई। इसी का नतीजा था कि नेहा ने जैविक खेती में एक सर्टिफिकेट कोर्स कर डाला और भारत वापस आ गईं। यहां उन्होंने कुछ सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने लोगों को जागरूक किया और आर्गेनिक खेती से होने वाले फायदों के बारे में बताया। किसानों को जागरूक करने के लिए नेहा ने महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, लेह और लद्दाख आदि प्रदेशों में कैंप लगाया।

महिलाओं की जागरुकता को देख लद्दाख को बनाया कर्मभूमि

किसानों को आर्गेनिक खेती के बारे में जागरूक करने के अपने अभियान के दौरान नेहा जब लद्दाख पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि वहां कैसे गांव की महिलाएं खेत-घर सब जगह काम करतीं हैं। उनमें गजब का उत्साह है नई चीजों को सीखने का। यह सब देखने के बाद नेहा ने लद्दाख के तकमाचिक गांव को ही अपनी कर्मभूमि बनाने का फैसला किया। फिर क्या था उन्होंने यहीं पर अपने इको मॉडल विलेज की नींव रख दी। उन्होंने यहां पर अपने सोशल एंटरप्राइज गुण ऑर्गनिक्स की स्थापना की। इस सोशल एंटरप्राइज के माध्यम से नेहा ग्रामीण इलाकों को स्वावलंबी बना रही हैं। इस काम के लिए उन्होंने अपनी बचत के पैसों को खर्च किया और कड़ी मशक्कत कर यूएनडीपी का एक प्रोजेक्ट भी हासिल किया। इस प्रोजेक्ट से मिले फंड ने नेहा के सपनों के मिशन को काफी मजबूती प्रदान की।

महिलाओं का मिला भरपूर सहयोग 

यह सब करना नेहा के लिए आसान नहीं था। शुरुआत में उन्हें काफी परेशानी हुई, लेकिन जैसे-जैसे लद्दाख की महिलाओं से उनका मेल-जोल बढ़ा, चीजें आसान होती गईं। नेहा बताती हैं- लद्दाख की महिलाएं खेत और घर दोनों जगह काफी मेहनत करतीं हैं। महिलाएं खेतों से लेकर बाजार तक के काम खुद करतीं हैं। यह देख नेहा ने हर परिवार को गुण आर्गेनिक्स से जोड़ने का फैसला किया। इसमें गांव की महिलाओं ने ही उनकी मदद की। नेहा ने महिलाओं का ग्रुप बनाकर गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती के फायदे बताए और किसानों को बिचौलियों के चंगुल से निकल खुद अपनी फसल को प्रोसेस करके उसकी पैकेजिंग करने और बाजार तक पहुंचाने से होने वाले फायदे के बारे में बताया। नेहा ने बताया कि पहाड़ों पर अखरोट, खुबानी काफी अच्छी मात्रा में होता है। मैंने किसानों को यह सभी फसलें जैविक और प्राकृतिक तरीकों से उगाने के लिए प्रेरित किया। सभी को यह बात अच्छा लगी। लोग जब जैविक खेती करने लगे तो यहां के परिवारों को सोलर ड्रॉयर और स्मोकलेस स्टोव की जानकारी देकर इसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया। इसके लिए नेहा ने ग्रामीणों को सोलर ड्रॉयर बनाने का वर्कशॉप भी कराया। यह मुहिम भी रंग लाई और ग्रामीणों ने खुद अपने-अपने हिसाब से सोलर ड्रॉयर तैयार किए। इसकी मदद से उन्हें प्रोसेसिंग के साथ-साथ अपनी घरेलू चीजों को भी ज्यादा समय तक संरक्षित करने में मदद मिल रही है। सोलर ड्रॉयर के बाद परिवारों ने सोलर कुकर का भी इस्तेमाल करना शुरू किया है।

जिस खुबानी के कभी मिलते थे 190 रुपये अब मिल रहे 650 रुपये

नेहा के मुताबिक जैविक खेती और सोलर तकनीक की वजह से आज लद्दाख के लगभग 6 गांवों के 650 किसान अपने उत्पाद का बेहतर दाम हासिल कर पा रहे हैं। साथ ही गुण आर्गेनिक्स की मदद से वह वह किसानों की जैविक खुबानी, खुबानी का तेल, बारले, बकबीट, मशरूम, अखरोट-बादाम को बाजारों तक पहुंचा रहीं हैं। इससे किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा भी हो रहा है। फिलहाल हर महीने तकरीबन 800 ग्राहकों तक इन किसानों के उत्पाद पहुंच रहे हैं। पहले किसानों को जिस खुबानी के प्रति किलो 190 रुपये मिलते थे अब प्रोसेसिंग के बाद उसी के एवज में 650 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। गुण आर्गेनिक्स की टीम जिन गांवों में काम कर रही हैं, वे सभी प्लास्टिक मुक्त भी बन रहे हैं। सभी पैकेजिंग कागज या फिर कांच की बोतलों में होती है।