पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार को सुबह फांसी दे दी गई, इसके साथ ही लगभग साढ़े सात साल तक चली यह लंबी लड़ाई अपने अंतिम परिणाम तक पहुंची।
रंजना कुमारी
निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार और बर्बरता करने वाले चारों दोषियों को शुक्रवार की सुबह तड़के फांसी दे दी गई। इस तरह लगभग साढ़े सात साल से पूरा देश जिस न्याय की गुहार लगा रहा था, वह अंतिम परिणाम तक पहुंचा। हमारी न्याय व्यवस्था ने इन चारों दोषियों को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हर न्यायिक विकल्प उपलब्ध कराए। यहां तक कि फांसी से कुछ घंटे पहले इनमें से एक दोषी पवन गुप्ता के वकील ने फांसी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। रात में ही शीर्ष अदालत ने सुनवाई की और दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद दोषी पक्ष की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद दोषियों को फांसी दी गई। इसके साथ ही निर्भया की मां आशा देवी की अपनी बेटी को न्याय दिलाने की सात साल चली लंबी लड़ाई अपने मुकाम तक पहुंची।
निर्भया के माता-पिता ने जिस परिश्रम, तपस्या और धैर्य के साथ यह न्यायिक लड़ाई लड़ी, वह काबिलेतारीफ है। उन्होंने अपनी बेटी को न्याय दिलाने और अन्य बेटियों के लिए भी न्याय के प्रति लोगों को सजग करने को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था। उनके संघर्ष को पूरे देश ने देखा है, इसलिए देश के लोग भी संतुष्ट हैं, निर्भया के साथ हुई बर्बरता ने पूरे देश को हिला दिया था। जिस घटना को लेकर पूरा देश उद्वेलित था, उसमें न्याय हुआ। लेकिन सोचने की बात है कि आज हमारा समाज ऐसा क्यों बन गया है कि ऐसे जघन्य अपराध होते चले जा रहे हैं और न्याय पाने की लड़ाई इतनी लंबी खिंचती चली जा रही है।
इसके लिए सबसे पहले हमें परिवार के स्तर पर लड़कियों के लिए समान अवसर, समान सम्मान और समान सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करने की जरूरत है। लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव की शुरुआत परिवार से ही शुरू होती है। हम लड़कियों को यह तो सिखाते हैं कि तुम ये करो, ये न करो लेकिन इस तरह की सीख हम लड़कों को नहीं देते हैं। इस सोच को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है और बेटियों के लिए सम्मान और अवसरों की समानता सुनिश्चित करने की जरूरत है। हमें अपने घर के लड़कों को यह सिखाना चाहिए कि वह औरतों का सम्मान करना सीखे ,बेटियों के प्रति न तो अन्याय होने देना है और न ही उसे बर्दाश्त करना है। बेटियों को कभी बोलने का मौका नहीं दिया जाता। इसलिए वह अपने साथ हुए अन्याय का अक्सर जिक्र ही नहीं करती। जबकि परिवार के भीतर भी ऐसे अपराध होते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी बेटियों से संवाद बनाएं। बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें शिक्षित करना बेहद जरूरी है। एक शिक्षित लड़की अपने जीवन के हर मकसद को पूरा कर सकती है और अपने आत्मविश्वास के बल पर कोई भी लड़ाई खुद लड़ सकती है। शिक्षा से उसे अन्याय न सहने और अन्याय के प्रति संघर्ष करने की ताकत मिलती है।
इसके अलावा सरकार को पुलिस और न्याय व्यवस्था में सुधार की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। सरकार क्यों नहीं यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों में तत्काल न्याय हो, ताकि अपराधियों को बच निकलने का मौका नहीं मिले। एक निर्भया को तो न्याय मिल गया, लेकिन एक लाख से ज्यादा बेटियां अभी न्याय का इंतजार कर रही हैं, उन्हें कब न्याय मिलेगा! देश के लोगों को अन्य पीड़िताओं के साथ भी त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाना चाहिए।
निर्भया के साथ हुई बर्बरता के बाद जब पूरे देश में जनांदोलन शुरू हुआ, तथा सख्त कानून की मांग उठी, तो सरकार ने बलात्कार से जुड़े कानून को बेहतर बनाने के लिए सुझाव देने की खातिर जस्टिस जे. एस. वर्मा कमेटी गठित की थी। जस्टिस वर्मा कमेटी ने अन्य सुझावों के साथ-साथ यह सुझाव भी दिया था कि बलात्कार या यौन-शोषण की शिकायत के तत्काल बाद मजिस्ट्रेट के सामने पीड़िता का बयान हो और उसके बाद किसी को भी उससे कुछ पूछने का हक नहीं मिलना चाहिए। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। मौजूदा कानून में बलात्कार के बाद पीड़िता को अपने साथ हुए अपराध को बार-बार बताना होता है। यह मौजूदा न्याय व्यवस्था में एक बड़ी खोट है, जिसमें तत्काल बदलाव की जरूरत है।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर अंकुश तभी लग पाएगा, जब पुलिस सजग और संवेदनशील बने। औरतों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के लिए पुलिस की मानसिकता और प्रशिक्षण में कमी बहुत हद तक जिम्मेदार है। पुलिस अक्सर पीड़िता को ही दोषी ठहराती दिखती है।अपराध रोकने की जिम्मेदारी पुलिस की है। पुलिस कार्रवाई की कमी की वजह से अपराध रुक नहीं रहे हैं। जस्टिस वर्मा कमेटी ने पुलिस की कोताही के खिलाफ कार्रवाई करने का भी सुझाव दिया था, लेकिन उसे भी अमल में नहीं लाया जाता। इसके अलावा पुलिस प्रशिक्षण और फोरेंसिक जांच सुविधाओं की कमी भी ऐसे अपराधों के लिए जिम्मेदार है। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ानी होगी। छोटे-छोटे थानों में महिलाओं की शिकायत पर पुलिस संजीदगी नहीं दिखाती और त्वरित कार्रवाई नहीं करती। इससे भी अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।
आपराधिक न्याय व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए सरकार को पर्याप्त बजट का आवंटन करना होगा, ताकि पुलिस ज्यादा से ज्यादा संसाधनों से लैस हो सके और न्यायालयों में मामले लंबे समय तक लंबित न रहें। इसके साथ ही फांसी की सजा पर भी बहस हो रही है, क्योंकि कई प्रगतिशील देशों में तो इस पर रोक है। इस पर विचार करना होगा कि एक लोकतांत्रिक देश में राज्य को किसी का जीवन लेने का अधिकार किस हद तक दिया जा सकता है, क्योंकि सिर्फ अपराधी को खत्म करने से अपराध खत्म नहीं होंगे। हमें ऐसे अपराधियों की मानसिकता का अध्ययन कर उन कारणों की पड़ताल करनी होगी, जिसके कारण अपराधियों के मन में स्त्री देह का उपभोग करने की विकृत मानसिकता पनपती है, और फिर उसे रोकने के उपाय तलाशने होंगे।
कुल मिलाकर, महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा और अन्याय को रोकने के लिए चौतरफा प्रयास की जरूरत है। इसके लिए परिवार और समाज को जागरूक होना होगा, सरकार को अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी, पुलिस को मुस्तैद रहना होगा और लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ाना होगा।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.