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इंजीनियरिंग का सर्टिफिकेट पाने को रोजी कर रहीं मनरेगा में मजदूरी

Published - Thu 28, Jan 2021

हर किसी का सपना होता है उच्च शिक्षा हासिल करना लेकिन कई बार परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल होती हैं कि आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। इसी का जीता जागता उदाहरण हैं ओडिशा की रहने वाली रोजा बेहेरा। रोजी ने इंजीनियरिंग का डिप्लोमा तो पूरा कर लिया लेकिन कॉलेज का पूरा बकाया न चुकाने के कारण उन्हें सर्टिफिकेट नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में रोजी ने मनरेगा में मजदूरी करने का फैसला किया, जिससे वह कॉलेज की सभी देनदारी पूरी कर सकें।

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नई दिल्ली। ओडिशा के पुरी जिले के गोरडीपीढ़ गांव की रहने वाली 22 साल की रोजी बेहेरा कॉलेज की बकाया फीस देने के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं। उन्होंने 2019 में बरुनेई इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी (बीआईईटी) से सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा की पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन कॉलेज और हॉस्टल का कुल 44,000 रुपयों का बकाया नहीं देने की वजह से कॉलेज ने उन्हें सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया। उन्होंने इधर-उधर से जुगाड़ कर 20,000 चुकाए लेकिन 24,000 अभी भी बाकी हैं। वह बताती हैं, इतनी बड़ी रकम की भरपाई करने का कोई दूसरा उपाय नहीं सूझा तो मैंने और मेरी दो छोटी बहनों ने मजदूरी करना शुरू कर दिया।

सुर्खियों में आने के बाद लोग कर रहे मदद

रोजी को मजदूरी करते तीन हफ्ते से अधिक का समय हो चुका है। ऐसे में उन्हें मेहनाता भले न मिला हो लेकिन उनके खबर सुर्खियों में आने के बाद अब देशभर से उनके लिए मदद की पेशकश होने लगी है। उन्होंने बताया कि, अभी तक उन्हें जिला प्रशासन की ओर से 30,000, अभिनेत्री रानी पंडा की ओर से 25, 000 और चेन्नई के अशोक नाम के किसी व्यक्ति की ओर से 10,000 रुपये मिल चुके हैं और भी कई लोगों ने मदद की पेशकश की है और अकाउंट नंबर लिया है। मदद की पेशकश करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के एक जज भी शामिल हैं। जाहिर है रोजी की मदद के लिए जितनी रकम की पेशकश हो चुकी है या आने वाले दिनों में होने वाली है, वह उनकी आवश्यकता से कहीं ज्यादा है।  

बचे पैसे से करेंगी आगे की पढ़ाई, परिवार की भी है जिम्मेदारी

कॉलेज का देय 24,000 रुपये चुकाने के बाद जो बची रकम का क्या करेंगी। इस पर रोजी कहती हैं कि मैं सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक करना चाहती हूं। जो पैसे आएंगे, उसी के लिए खर्च होंगे। वैसे तो कुछ कॉलेज हैं, जहां शायद मुझे स्कॉलरशिप मिल जाए लेकिन मैं किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से बीटेक करना चाहती हूं, जहां प्रैक्टिकल सहित सभी आवश्यक सुविधाएं मौजूद हों। बीटेक करने के बाद वह सरकारी नौकरी करना चाहती हैं। उनके पिता मिस्त्री का काम करते हैं जबकि उनकी मां खेतों में मजदूरी करती हैं। उनके माता-पिता के पास साधन नहीं है कि वे रोजी को या अपने दूसरे बच्चों को उच्च शिक्षा मुहैया करवा पाएं। रोजी पांच बहनों में सबसे बड़ी हैं। ऐसे में उन पर परिवार की जिम्मेदारी भी है। ऐसे में अपनी पढ़ाई के लिए वे अपने माता-पिता से किसी प्रकार की सहायता की उम्मीद नहीं रख सकती थीं।

कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता

उन्हें मजदूरी के अलावा कोई और काम जैसे कि ट्यूशन आदि क्यों नहीं पढ़ाया। इस पर रोजी कहती हैं, मेरी छोटी बहन ट्यूशन किया करती थी लेकिन एक तो गांव में ट्यूशन से अधिक पैसे नहीं मिलते। ऊपर से समय पर नहीं मिलते थे।  गांव में पहले से ही कई लोग मौजूद हैं जो पेशे से शिक्षक हैं। उन्हें छोड़करकोई हमसे ट्यूशन क्यों पढ़ेगा? वह मानती हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता इसलिए सिर पर मिट्टी ढोने में उन्हें कभी शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई।  मेहनत मजदूरी करके रोजी ने यह साबित कर दिया है कि हौसले बुलंद हो तो कोई भी बाधा रोक नहीं सकती।